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अवधिज्ञान
वृद्धि-हानि के प्रकार (कुछ कम एक पक्ष) तक देखता है।
द्रव्य क्षेत्र से भी सूक्ष्म होता है। क्योंकि एक भरत जितने क्षेत्र को देवने वाला अर्द्ध मास काल आकाश प्रदेश में भी अनन्त स्कन्धों का अवगाहन हो तक देखता है, जम्बूद्वीप जितने क्षेत्र को देखने वाला सकता है। पर्याय द्रव्य से भी सूक्ष्म हैं। एक ही द्रव्य में साधिक मास (एक महिने से कुछ अधिक) काल तक अनन्त पर्याय होते हैं। द्रव्य और पर्याय की वृद्धि होने
है, मनुष्यलोक जितने क्षेत्र को देखने वाला एक वर्ष पर क्षेत्र और काल की वृद्धि भजनीय है -होती भी है तक देखता है, रुचक द्वीप जितने क्षेत्र को देखने वाला और नहीं भी होती। द्रव्य की वृद्धि होने पर पर्याय की वर्ष-पृथक्त्व (दो से नौ वर्ष) तक देखता है।
वृद्धि निश्चित है। अवधिज्ञानी प्रत्येक द्रव्य के संख्येय संख्येय काल तक देखने वाला संख्येय द्वीप-समुद्र और असंख्येय पर्यायों को जानता है। पर्याय की वृद्धि जितने क्षेत्र को देखता है। असंख्येय काल तक देखने होने पर द्रव्य की वृद्धि की भजना है-वद्धि होती भी वाला असंख्येय द्वीप-समुद्र जितने क्षेत्र को देख सकता है, है और नहीं भी होती। एक द्रव्य में भी पर्याय विषयक पर नियामकता नहीं है।
अवधिज्ञान की वृद्धि होना संभव है। वृद्धि-हानि का नियम
वृद्धि-हानि के प्रकारकाले चउण्ह वुड्ढी, कालो भइयब्बु खेत्तवुड्ढीए। वुड्ढी वा हाणी वा, चउबिहा होइ खित्तकालाणं । वुड्ढीए दव्वपज्जव, भइयव्वा खेत्तकाला उ॥ दव्वेसु होइ दुविहा, छव्विह पुण पज्जवे होइ॥ (नन्दी १८७)
(आवनि ५९) कालवृद्धि के साथ द्रव्य, क्षेत्र और भाव की वृद्धि में
अवधिज्ञान के विषयभूत क्षेत्र और काल में वृद्धिकाल वृद्धि की भजना है। द्रव्य और पर्याय की वृद्धि में हानि चार प्रकार की होती है। द्रव्यों में वृद्धि-हानि दो क्षेत्र और काल की वृद्धि की भजना है।
प्रकार की और पर्यायों में वृद्धि-हानि छह प्रकार की सुहुमो य होइ कालो, तत्तो सुहुमयरयं हवइ खेत्तं। होती है। अंगूलसेढीमित्ते, ओसप्पिणिओ असंखेज्जा॥ पइसमयमसंखिज्जइभागहियं कोइ संखभागहियं ।
(नन्दी १८/८) अन्नो संखेज्जगुणं खित्तमसंखेज्जगुणमण्णो ।। काल सूक्ष्म होता है, क्षेत्र उससे सूक्ष्मतर होता है। पेच्छइ विवड्ढमाणं हायंतं वा तहेव कालं पि । अंगुलश्रेणि मात्र आकाशप्रदेश का परिमाण असंख्येय नाणंतवु ड्ढि-हाणी पेच्छइ जं दो वि नाणते ।। अवसर्पिणी की समय राशि जितना होता है।
(विभा ७३०, ७३१) क्षेत्र ह्यत्यन्तसूक्ष्मम् । कालस्तु तदपेक्षया परि- क्षेत्र और काल की वृद्धि-हानि के चार प्रकार ---- स्थरः, ततो यदि प्रभूता क्षेत्रवद्धिस्ततो वर्द्धते शेषकालं १. असंख्यात भाग वृद्धि १. असंख्यात भाग हानि नेति । द्रव्यपर्यायौ तु नियमतो वर्द्धते ।।
२. संख्यात भाग वृद्धि २. संख्यात भाग हानि द्रव्यं क्षेत्रादपि सूक्ष्म, एकस्मिन्नपि नभःप्रदेशे- ३. संख्यात गुण वृद्धि ३. संख्यात गुण हानि ऽनन्तस्कन्धावगाहनात् । द्रव्यादपि सूक्ष्मः पर्यायः, एक- ४. असंख्यात गुण वृद्धि ४. असंख्यात गुण हानि स्मिन्नपि द्रव्येऽनन्तपर्यायसम्भवात् । ततो द्रव्यपर्याय- दव्वमणतंसहियं अनंतगुणवढियं च पेच्छेज्जा । वद्धौ क्षेत्रकालौ भजनीयावेव भवत: । द्रव्ये च वर्धमाने हायंतं वा भावम्मि छव्विहा वुड्ढि-हाणीओ। पर्याया नियमतो वर्धन्ते, प्रतिद्रव्यं संख्येयानामसंख्येयानां
(विभा ७३२) चावधिना परिच्छेदसंभवात् । पर्यायतो वर्द्धमाने द्रव्यं द्रव्य की वृद्धि-हानि के दो प्रकार -- भाज्यं, एकस्मिन्नपि द्रव्ये पर्यायविषयावधिवृद्धिसम्भ- १. अनन्त भाग वृद्धि १. अनन्त भाग हानि वात् ।
(नन्दीमवृ प ९५) २. अनन्त गुण वृद्धि २. अनन्त गुण हानि । क्षेत्र अत्यन्त सूक्ष्म है । उसकी अपेक्षा काल स्थूल
पर्याय की वद्धि-हानि के छह प्रकारहै । इसलिए यदि अवधिज्ञान की क्षेत्र-वृद्धि प्रचुर मात्रा १. अनन्त भाग वृद्धि १. अनन्त भाग हानि में होती है तो कालवृद्धि होती है, अन्यथा नहीं। २. असंख्यात भाग वृद्धि २. असंख्यात भाग हानि द्रव्य और पर्याय की वृद्धि निश्चित रूप से होती है। ३. संख्यात भाग वृद्धि ३. संख्यात भाग हानि
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