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अवधिज्ञान
अनानुगामिक अवधिज्ञान अवस्थित पदार्थ का ज्ञान । जहां-जहां पार्वतः अंतगत सब दिशाओं में जानता है, इसलिए मध्यगत अवधिज्ञान अवधिज्ञानी जाता है, वहां-वहां श्रोत्रेन्द्रिय की तरह उभय है। पार्श्व में अवस्थित रूपी पदार्थों को अवधि से जानता- सब आत्मप्रदेशों का क्षयोपशम होने पर भी जो ज्ञान देखता है।
औदारिक शरीर के मध्य भाग से जानता है, वह मध्यगत मध्यगत
अवधिज्ञान है। मझगयं-से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा
सब दिशाओं में अवधिज्ञान से जितना क्षेत्र प्रकाशित चुडलियं वा अलायं वा मणि वा जोइं वा पईवं वा मत्थए
हुआ है, अवधिज्ञानी उस क्षेत्र के मध्य में स्थित है, काउं गच्छेज्जा।
(नन्दी १५)
इसलिए वह मध्यगत अवधिज्ञान है। जैसे कोई एक पुरुष दीपिका, मशाल, अलात, मणि, अंतगत और मध्यगत में अन्तर ज्योति अथवा प्रदीप को मस्तक पर रखकर चलता है,
____ अंतगयस्स मज्झगयस्स य को पइविसेसो ? पुरओ उसे चारों ओर के पदार्थ दिखाई देते हैं। इसी प्रकार
अंतगएणं ओहिनाणेणं पुरओ चेव संखेज्जाणि वा मध्यगत अवधिज्ञानी सब ओर के रूपी पदार्थ जानता
असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ। मग्गओ देखता है।
अंतगएणं ओहिनाणेणं मग्गओ चेव संखेज्जाणि वा ____ मझगतं पुण ओरालियसरीरमझे फड्डगविसुद्धीता
असंखेज्जाणि वा जोयणाइं जाणइ पासइ। पासओ सव्वातप्पदेसविसुद्धीतो वा सव्वदिसोवलंभत्तणतो मझगतो
अंतगएणं ओहिनाणेणं पासओ चेव संखेज्जाणि वा त्ति भण्णति ।
(नन्दीचू पृ १६)
असंखेज्जाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ । मझगएणं औदारिक शरीर के मध्यवर्ती स्पर्धकों की विशुद्धि
ओहिनाणेणं सव्वओ समंता संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि से अथवा सब आत्म-प्रदेशों की विशुद्धि से सब दिशाओं
वा जोयणाइं जाणइ पासइ।
(नन्दी १६) का ज्ञान मध्यगत अवधिज्ञान कहलाता है।
शिष्य ने पूछा-अंतगत अवधिज्ञान और मध्यगत ___मझगतं णाम जं समंततो अत्थग्गाहि। जहा फरि
___ अवधिज्ञान में क्या अन्तर है ? आचार्य ने कहासिदिएणं समंतओ फरिसिए जीवो अत्थे उवलभति, एवं
पुरतः अंतगत अवधिज्ञानी सामने स्थित संख्यात सोवि ओहिणाणी जत्थ-जत्थ गच्छति तत्थ-तत्थ समंतओ
अथवा असंख्यात योजनों को ही जानता-देखता है। पृष्ठतः रूवावबद्धे अत्थे ओहिणा जाणति पासति य।
अंतगत अवधिज्ञानी पीछे-पीछे के संख्यात अथवा असंख्यात (आवच १ पृ५६,५७)
योजनों को ही जानता-देखता है। पार्श्वतः अंतगत अवधिमध्यगत अवधिज्ञानी चारों ओर के पदार्थों को
ज्ञानी पार्श्व भागों में स्थित संख्यात अथवा असंख्यात ग्रहण करता है । जैसे जीव स्पर्शनेन्द्रिय के द्वारा चारों
योजनों को ही जानता-देखता है। मध्यगत अवधिज्ञानी ओर से स्पर्श करके विषय को जान लेता है, उसी प्रकार
चारों ओर के संख्यात अथवा असंख्यात योजनों को वह अवधिज्ञानी जहां-जहां जाता है, वहां-वहां चारों
जानता-देखता है। ओर के रूपी पदार्थों को अवधि से जानता-देखता है। मध्यवर्तिष्वात्मप्रदेशेषु गतं --स्थितं मध्यगतम् । इदं
___७. अनानुगामिक अवधि को परिभाषा च स्पर्द्धकरूपमवधिज्ञानं सर्वदिग्पलम्भकारणं मध्य- से जहानामए केइ पूरिसे एगं महंतं जोइड्राणं काउं वत्तिनामात्मप्रदेशानामवसेयम् ।
तस्सेव जोइदाणस्स परिपेरंतेहि-परिपेरतेहिं परिघोलेमाणेसर्वेषामप्यात्मप्रदेशानां क्षयोपशमभावेऽप्यौदारिक- परिघोलेमाणे तमेव जोइट्राणं पासइ, अण्णत्थ गए न शरीरमध्यभागेनोपलब्धिस्तन्मध्ये गतं मध्यगतम् । पासइ । एवमेव अणाणुगामियं ओहिनाणं जत्थेव समुप्प
तेनावधिज्ञानेन यदुद्योतितं क्षेत्र सर्वासु दिक्षु, तस्य ज्जइ तत्थेव संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा संबद्धाणि मध्यभागे गतं --स्थितं मध्यगतम्, अवधिज्ञानिनः तदु- वा असंबद्धाणि वा जोयणाई जाणइ पासइ, अण्णत्थ गए द्योतितक्षेत्रमध्यवर्तित्वात् । (नन्दीमड़ प ८३,८४) ण पासइ ।
(नन्दी १७) मध्यगत अवधि की व्याख्या के तीन कोण हैं-
जैसे कोई एक पुरुष एक बहुत बड़ा ज्योति कुण्ड यह स्पर्धकरूप अवधिज्ञान मध्यवर्ती आत्मप्रदेशों से बनाकर उसके आस-पास चारों ओर चक्कर लगाता हुआ
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