________________
पार्श्वतः अंतगत
आनुगामिक अवधि के दो प्रकार हैं
१. अंतगत - शरीर के पर्यंत भागवर्ती चैतन्यकेन्द्रों से होने वाला अवधिज्ञान ।
२. मध्यगत- शरीर के मध्यभागवर्ती चैतन्यकेन्द्रों से होने वाला अवधिज्ञान ।
अंतगत अवधिज्ञान
आत्मनोऽन्ते --- पर्यन्ते स्थितमितिकृत्वा अन्तगतमित्युच्यते । तैरेव पर्यन्तवत्तिभिरात्मप्रदेशः साक्षादवधिरूपेण ज्ञानेन ज्ञानात् न शेषैरिति ।
औदारिकशरीरस्यान्ते गतं स्थितं अन्तगतं, कयाचिदेकदिशोपलम्भात् । इदमपि स्पर्द्धकरूपमवधिज्ञानम् ।
सर्वेषामप्यात्मप्रदेशानां क्षयोपशमभावेऽपि औदारिकशरीरान्तेनैकया दिशा यद्वशादुपलभ्यते तदप्यन्तगतम् । ( नन्दीमवृप ८३ ) अंतगत अवधिज्ञान की व्याख्या तीन प्रकार से की जा सकती है
जो पर्यन्तवर्ती आत्मप्रदेशों से साक्षात् जानता है, वह अन्तगत अवधिज्ञान है ।
जो औदारिक शरीर के अन्त किसी एक भाग से जानता है, वह स्पर्धक रूप अवधिज्ञान है ।
सब आत्मप्रदेशों का क्षयोपशम होने पर भी जो ज्ञान औदारिक शरीर के एक भाग से एक दिशा में जानता है, वह अन्तगत अवधिज्ञान है । अंतगत के भेद
४९
अंतगयं तिविहं पण्णत्तं तं जहा -- पुरओ अंतगयं, मग्गओ अंतगयं, पासओ अंतगयं । ( नन्दी ११ ) अंतगत अवधिज्ञान तीन प्रकार का है-१. पुरत: अंतगत, २. पृष्ठत: अंतगत, ३. पार्श्वतः
अंतगत ।
पुरतः अंतगत
पुरओ अंतगयं ---से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चुडलियं वा अलायं वा मणि वा जोई वा पईवं वा पुरओ काउं पणोल्लेमाणे- पोल्लेमाणे गच्छेज्जा । ( नन्दी १२ )
जैसे कोई एक पुरुष उल्का (दीपिका), मशाल ( पर्यन्त भाग में ज्वलित तृणपूलिका), अलात (अग्रभाग में ज्वलित काष्ठ), मणि, ज्योति (शराव आदि में स्थित अग्नि ) अथवा प्रदीप को आगे करके उसे प्रदीप्त रखता हुआ
Jain Education International
अवधिज्ञान
चलता है, उसे आगे के पदार्थ दिखाई देते हैं । इसी प्रकार पुरतः अंतगत अवधिज्ञानी अपने सामने के रूपी पदार्थों को जानता - देखता है ।
पुरतो अंतगयं णाम तमोहिणाणि पडुच्च चक्खिदियमिव अग्गतो दरिसणसामत्थजुत्तं । जत्थ जत्थ ओहिणाणी गच्छ तत्थ तत्थ पुरतो अवट्टिया रूवावबद्धा अत्था जाणति पासति य । ( आवचू १ पृ ५६ ) पुरतः अंतगत अवधिज्ञानी चक्षुइन्द्रिय की तरह सामने के पदार्थों को देखने में समर्थ होता है । वह अवधिज्ञानी जहां-जहां जाता है, वहां-वहां सामने अवस्थित मूर्त पदार्थों को जानता देखता है । पृष्ठतः अंतगत
मग्गओ अंतगयं - से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं या चुडलियं वा अलायं वा मणि वा जोई वा पईवं वा मग्गओ काउं अणुड्डेमा अणुकड् ढेमाणे गच्छेज्जा |
जत्थ जत्थ सो ओहिण्णाणी संफरिसिया फासिंदियमिव पितो अत्था ओहिणा जाणति पासति ।
( नन्दी १३ ) गच्छति तत्थ तत्थ अवट्टिता रूवावबद्धा ( आवचू १ पृ ५६ ) जैसे कोई एक पुरुष दीपिका, मशाल, अलात, मणि, ज्योति अथवा प्रदीप को पीठ पीछे करके चलता है, उसे पीठ पीछे के पदार्थ दिखाई देते हैं । इसी प्रकार पृष्ठत: अंतगत अवधिज्ञानी जहां-जहां जाता है, वहां-वहां पीठ पीछे के रूपी पदार्थों को स्पर्शनइन्द्रिय से स्पृष्ट की तरह जानता देखता है । पार्श्वतः अंतगत
पासओ अंतगयं से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं वा चुडलियं वा अलायं वा मणि वा जोई वा पईवं वा पासओ काउं परिकड्ढेमाणे- परिकड्ढेमाणे गच्छेज्जा । ( नन्दी १४)
जैसे कोई एक पुरुष दीपिका, मशाल, अलात, मणि, ज्योति अथवा प्रदीप को दक्षिण पार्श्व और वाम पार्श्व में करके चलता है तो उसे पार्श्व भाग के पदार्थ दिखाई देते हैं। इसी प्रकार पार्श्वतः अंतगत अवधिज्ञानी पार्श्ववर्ती भाग के रूपी पदार्थों को जानता देखता है ।
पासतो अंतगयं णाम वामतो दाहिणतो वत्ति । जत्थ जत्थ सो ओहिणाणी गच्छति तत्थ तत्थ सोइंदिणमिव पासतो अवत्थिता रूवावबद्धा अत्था ओहिणा जाणति पासति य । ( आवचू १ पृ ५६ ) पार्श्वत: अंतगत से तात्पर्य है - बांयें दायें भाग में
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org