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अवधिज्ञान
आनुगामिक अवधि
गुणाः---मूलगुणादयस्तैः प्रतिपन्न:-गृहीतो गुण- ३. संस्थान क्षेत्र के आधार पर अवधिज्ञान के प्रतिपन्न इति। अनेन अतिशयपात्रतामाह"तस्य संस्थान । प्रशस्ताध्यवसायस्य तदावरणकर्मक्षयोपशमे सत्यवधिज्ञानं ४. आनुगामिक - आनुगामिक - अनानुगामिक - मिश्र समुत्पद्यते ।
(नन्दीहावृ पृ २२) अवधि । गुणप्रतिपन्न का अर्थ है मूलगुण और उत्तरगुणों से ५. अवस्थितलब्धि और उपयोग की अपेक्षा से अवधि प्रतिपन्न । यह अवधिज्ञान की अतिशयपात्रता है। जो
का अवस्थान। इससे संयुक्त और प्रशस्त अध्यवसाय (भावधारा) वाला
६. चल-वर्धमान-हीयमान अवधि । होता है, उसको अवधिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम
७. तीव्र-मंद-विशुद्ध-अविशुद्ध अवधि । होने पर अवधिज्ञान की प्राप्ति होती है।
८. प्रतिपात-उत्पाद -एक समय में अवधि की उत्पत्ति खयोवसमो गुणमंतरेण गुणपडिवत्तितो वा भवति ।
और विनाश। गुणमंतरेण जहा गगणब्भच्छादिते अहापवत्तितो छिद्देणं दिणकरकिरण व्व विणिस्सिता दव्वमुज्जोवंति तहाऽवधि- १०. दर्शन- अवधिदर्शन । आवरणखयोवसमे अवधिलंभो अधापवत्तितो विण्णेतो। ११. विभंग --मिथ्यात्वी का अवधिज्ञान । गुणपडिवत्तितो-उत्तरुत्तरचरणगुणविसुज्झमाणमवेक्खातो या देशा-सर्व शांपिक-सम्पर्ण अभिज्ञान अवधिणाणदंसणावरणाण खयोवसमो भवति। तक्खयो
१३. क्षेत्र-संबद्ध-असंबद्ध आदि क्षेत्रसंबंधी अवधि । वसमे य अवधी उप्पज्जति ।
(नन्दीचू पृ १५) १४. गति -गति, इन्द्रिय, काय, लेश्या आदि के आधार क्षयोपशम दो तरह से होता है
पर अवधि का प्रतिपादन । १. गुण की प्रतिपत्ति के बिना होने वाला क्षयोपशम
१५. ऋद्धि-अवधिज्ञान-ऋद्धि के प्रसंग में अन्य ऋद्धियों जैसे बादलों से आच्छन्न आकाश में कोई छिद्र रह
छिद्र रह का वर्णन । जाये, उस छिद्र में से स्वाभाविक रूप से निःसृत
५. अवधिज्ञान के छह प्रकार सूर्य की किरण द्रव्य को प्रकाशित करती है, वैसे ही अवधिज्ञानावरण का क्षयोपशम होने पर यथाप्रवृत्त
तं समासओ छव्विहं पण्णत्तं, तं जहा-आणुगामियं अवधिज्ञान की प्राप्ति होती है।
अणाणुगामियं वड्ढमाणयं हायमाणयं पडिवाइ अप्पडिवाइ। २. गुण की प्रतिपत्ति से होने वाला क्षयोपशम----
___ (नन्दी ९) उत्तरोत्तर चरणगुण की विशुद्धि से अवधिज्ञानदर्शना
अवधिज्ञान के छह प्रकार हैं-आनुगामिक, अनानुवरण का क्षयोपशम होने पर अवधिज्ञान की प्राप्ति
गामिक, वर्धमान, हीयमान, प्रतिपाति, अप्रतिपाति । होती है।
६. आनुगामिक अवधि की परिभाषा ४. अवधिज्ञान के निक्षेप
अणुगामिओऽणुगच्छइ गच्छंत लोयणं जहा पुरिसं । ओही खेत्तपरिमाणे संठाणे आणुगामिए ।
(विभा ७१५) अवट्रिए चले तिव्व-मंदपडिवाउप्पाई य॥
अणुगमणसीलो अणुगामितो तदावरणखयोनाण-दंसणविभंगे देसे खित्ते गई इय ।
वसमाऽऽतप्पदेसविसुद्धगमणत्तातो लोयणं व।
(नन्दीचू पृ१५). इड्ढीपत्ताणुओगे य एमेया पडिवत्तीओ।।
अवधिज्ञानावरण के क्षयोपशम से आत्मप्रदेशों की (आवनि २७,२८)
विशुद्धि हो जाने पर जो ज्ञान एक स्थान से दूसरे स्थान पन्द्रह निक्षेपों (दृष्टियों) के आधार पर अवधिज्ञान की मीमांसा की गई है --
पर जाते हुए अपने स्वामी का आंख की तरह अनुगमन
करता है, वह आनुगामिक अवधिज्ञान है। १. अवधि...नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव, भाव ।
आनुगामिक अवधि के प्रकार २. क्षेत्र-परिमाण--अवधि का जघन्य-मध्यम-उत्कृष्ट आणुगामियं ओहिनाणं दुविहं पण्णत्तं, तं जहाक्षेत्र-परिमाण ।
अंतगयं च मझगयं च ।
(नन्दी १०)
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