________________
अवगाहना वर्गणा
अवधिज्ञान
. सिद्धों की अवगाहना।
(द्र. सिद्ध)
११. प्रतिपाति अवधि अवगाहना वर्गणा-(द्र. भाषा)
१२. अप्रतिपाति अवधि अवग्रह-इन्द्रिय और पदार्थ के संयोग से होने | १३. स्पर्धक अवधि की परिभाषा वाला सामान्य अवबोध ।
. स्पर्धक अवधि : आनुगामिक आदि (. आभिनिबोधिक ज्ञान)| . स्पर्धक : तीव्र, मंद, मिश्र
• स्पर्धकों के स्थान अवधिज्ञान -इन्द्रिय और मन की सहायता के |
१४. बाह्य लब्धि-आभ्यंतर लब्धि अवधि बिना आत्मा से होने वाला मूर्त |
१५. संबद्ध-असंबद्ध अवधि पदार्थों का ज्ञान ।
१६. अवधिज्ञान की असंख्येयता-अनंतता . ज्ञेय वस्तु में अवधान—एकाग्रता से
१७. अवस्थित-अनवस्थित अवधि होने वाला अतीन्द्रिय ज्ञान ।
१८. अवधिज्ञान के संस्थान १. अवधिज्ञान : निर्वचन और परिभाषा
१९. अवधिज्ञान और क्षेत्रमर्यादा | २. अवधिज्ञान का विषय
० वैमानिक देवों का अवधिक्षेत्र ३. अवधिज्ञान के दो प्रकार
• देवों का आयुष्य और अवधिक्षेत्र . भवप्रत्ययिक
• नारकों का अवधिक्षेत्र ..क्षायोपशमिक
२०. तिथंच : उत्कृष्ट-जघन्य अवधि
२१. अवधिज्ञान और देशविरति सामायिक ४. अवधिज्ञान के निकोप
२२. अवधिज्ञान की पूर्वप्रतिपन्नता ५. अवधिज्ञान के छह प्रकार
२३. अवधिज्ञान के प्राप्ति-स्थान आनुगामिक अवधि की परिभाषा
२४. अवधिज्ञान के पश्चात् अवधिदर्शन ० प्रकार-अंतगत, मध्यगत । ० अंतगत की परिभाषा
२५. मति-श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में साधर्म्य ।
* मनःपर्यवज्ञान और अवधिज्ञान में साधर्म्य तथा अंतर ० प्रकार-पुरतः, पृष्ठतः, पार्वतः
(द्र. मनःपर्यवज्ञान) ० मध्यगत की परिभाषा
* अवधिज्ञान और केवलज्ञान में साधर्म्य • अंतगत और मध्यगत में अंतर
(द्र. केवलज्ञान) ७. अनानुगामिक अवधि की परिभाषा
* अवधिज्ञान : ज्ञान का एक भेद (द्र. ज्ञान) • आनुगामिक और अनानुगामिक के अधिकारी
* अवधिज्ञान स्वार्थ
(द्र. ज्ञान) ८. वर्धमान अवधि की परिभाषा
* विभंगज्ञान
(द्र. अज्ञान) ० वर्धमान अवधि : द्रव्यचतुष्टयी की वृद्धि-हानि
* अवधिदर्शन
. (द्र. दर्शन) • वृद्धि-हानि का नियम ० वृद्धि हानि के प्रकार
१. अवधिज्ञान : निर्वचन और परिभाषा ० वर्धमान अवधि का जघन्य क्षेत्र : पनक का
तेणावहीयए तम्मि वाऽवहाणं तओऽवही सो य मज्जाया। दृष्टांत
जं तीए दवाइ परोप्पर मुणइ तओऽवहित्ति ।। ९. वर्धमान अवधि (परमावधि) का उत्कृष्ट क्षेत्र:
(विभा ८२) अग्नि जीवों का दृष्टांत
.. जो अवधान से जानता है, वह अवधिज्ञान है। • परमावधि का विषय . परमावधि नौ पूर्वजन्मों को जानता है
अंगुल के असंख्येय भाग क्षेत्र को जानने वाला अवधि. परमावधि की परिणति-कैवल्य प्राप्ति
ज्ञानी आवलिका के असंख्येय भाग तक जानता है
इस प्रकार जो परस्पर नियमित द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि | १०. हीयमान अवधि
को जानता है, वह अवधिज्ञान है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org