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अनुयोग
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अपृथक्त्व अनुयोग
उद्देश, निर्देश, निर्गम, क्षेत्र, काल, पुरुष, कारण, ये चारों क्रमश: महद्धिक (प्रतिपादन की अपेक्षा प्रत्यय, लक्षण, नय, समवतार और अनुमत तथा क्या, प्रधान) हैं। कितने प्रकार का, किसका, कहां, किनमें, कैसे, कितने
चरणानयोग का प्राधान्य काल तक, कितने, अन्तर काल, अविरह काल, भव,
सविसयबलवत्तं पुण जुज्जइ तहवि अमहिड्ढि चरणं । आकर्ष, स्पर्शन, निरुक्ति --इन २६ हेतुओं से उपोद्घात
चारित्तरक्खणट्ठा जेणिअरे तिन्नि अणुओगा । नियुक्ति-अनुगम जाना जाता है ।
(ओभा ६) सूत्रस्पशिक नियुक्ति-अनुगम
ये चारों अनुयोग अपने-अपने विषय में सर्वशक्ति.."सुत्तफासियनिज्जुत्तिअणुगमे सूत्तं उच्चारेयव्वं सम्पन्न है। फिर भी चरणानुयोग इन सबमें मद्धिक
1 है । चारित्र की सुरक्षा के लिए ही ये शेष तीन अनुयोग अक्खलियं अमिलियं अवच्चामेलियं पडिपूण्णं पडिपूण्णघोसं कंठोविप्पमुक्कं गुरुवायणोवगयं । तओ नज्जिहिति
चरणपडिवत्तिहेउं धम्मकहा कालदिक्खमाईआ। ससमयपयं वा परसमयपयं वा बंधपयं वा मोक्खपयं वा सामाइयपयं वा नोसामाइयपयं वा"। (अनु ७१४)
दविए दसणसुद्धी दंसणसुद्धस्स चरणं तु ।। सूत्रस्पशिक नियुक्ति-अनुगम में अस्खलित, अन्य
(ओभा ७)
तीनों अनुयोग चारित्र की प्राप्ति के कारण हैं - वर्णों से अमिश्रित, अन्य ग्रंथों के अंशों से अमिश्रित,
१. धर्मकथानुयोग-आक्षेपणी आदि धर्म कथा को प्रतिपूर्ण, प्रतिपूर्ण घोषयुक्त, कण्ठ और होठ से निकला
सुनकर जीव चारित्र प्राप्त करता है। हुआ, गुरु की वाचना से प्राप्त सूत्र का उच्चारण करना
२. कालानुयोग (गणितानुयोग)----शुभरि चाहिए। इससे स्वसमय पद, परसमय पद, बन्ध पद,
नक्षत्र आदि में दीक्षा दी जाती है। मोक्षपद, सामायिक पद और नो-सामायिक पद-ये सब
३. द्रव्यानुयोग से दर्शन की विशुद्धि होती है। दर्शन जाने जाते हैं।
विशुद्धि से ही चारित्र की प्राप्ति होती है । .."संहिता य पदं चेव, पदत्थो पदविग्गहो।
अनुयोग और श्रुतग्रंथ चालणा य पसिद्धी य, छव्विहं विद्धि लक्खणं ।।...
(अनु ७१४)
जं च महाकप्पसुयं जाणि अ सेसाणि छेअसुत्ताणि ।
चरणकरणाणुओगो त्ति कालियत्थे उवगयाणि ।। व्याख्या के छह लक्षण हैं --
(आवनि ७७७) १. संहिता-अस्खलित पदोच्चारण ।
कालियसुयं च इसिभासियाई तइओ य सूरपन्नत्ती । २. पद-एक-एक पद का निरूपण ।
सव्वो य दिट्ठिवाओ चउत्थओ होइ अणुओगो ॥ ३. पदार्थ -प्रत्येक पद का अर्थ ।
(आवभा १२४) ४. पदविग्रह ---समस्त पदों में समास विग्रह ।
१. चरणकरणानुयोग-कालिकश्रुत, महाकल्पसूत्र, . ५. चालना सूत्र के अर्थ में प्रश्न उपस्थित करना।
छेदसूत्र । ६. प्रसिद्धि-युक्ति पुरस्सर अर्थ की स्थापना।
२. धर्मकथानुयोग--ऋषिभाषित । ५. अनुयोग के चार विभाग
३. गणितानुयोग - सूर्यप्रज्ञप्ति । चत्तारि उ अणुओगा चरणे धम्मगणियाणुओगे य ।
४. द्रव्यानुयोग-दृष्टिवाद। दवियणुओगे य तहा अहक्कम ते महिड्ढीया ॥ ६. अपृथक्त्व अनुयोग
(ओभा ५)
अपहत्तमेगभावो सुत्ते सूत्ते सवित्थर जत्थ । अनुयोग के चार विभाग हैं
भण्णंतअणुओगा चरण-धम्म-संखाण-दव्वाणं ।। १. चरणानुयोग ३. गणितानुयोग
(विभा २२८१) २. धर्मकथानुयोग ४. द्रव्यानुयोग ।
अपृथक्त्व का अर्थ है एकीभाव-अविभाग।
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