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सामायिक
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सामायिक और लोक
. सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक की प्रति- से होती है। देश विरति सामायिक की प्राप्ति अप्रत्यापत्ति सुषम-सुषमा आदि छहों कालखण्डों में होती है। ख्यानावरण के क्षयोपशम से तथा सर्वविरति सामायिक देश विरति और सर्वविरति सामायिक की प्रतिपत्ति की प्राप्ति प्रत्याख्यानावरण के क्षय, क्षयोपशम अथवा उत्सर्पिणी के दुषम-सुषमा, सुषम-दुःषमा तथा अव- उपशम से होती है। सर्पिणी के सुषम-दुःषमा, दुःषम-सुषमा और दुःषमा इन ६. सामायिक और नय कालखंडों में होती है।
उहिट्ठे च्चिय नेगमनयस्स कत्ताऽणहिज्जमाणो वि । स्थिति
जं कारणमुद्देसो तम्मि य कज्जोवयारो त्ति ।। सम्मत्तस्स सुयस्स य छावटी सागरोवमाई ठिई।
संगह-ववहाराणं पच्चासन्नयरकारणत्तणओ । सेसाण पूवकोडी देसूणा होइ उक्कोसा ।।
उद्दिट्टम्मि तदत्थं गुरुपामूले समासीणो॥ (आवनि ८४९)
उज्जुसुयस्स पढंतो तं कुणमाणो वि निरुवओगो वि । दो बारे विजयाइस गयस्स तिण्णच्चए य छावट्ठी।
आसन्नासाहारणकारणओ सद्द-किरियाणं ।। नरजम्मपुवकोडीपुहुत्तमुक्कोसओ अहिअं॥
सामाइओवउत्तो कत्ता सह-किरियाविउत्तो वि । अंतोमुहुत्तमित्तं जहन्नयं चरणमेगसमयं तु।
सहाईण मणन्नो परिणामो जेण सामइयं ।। उवओगंतमुहुत्तं नानाजीवाण सव्वद्धं ।।
(विभा ३३९१-३३९४) (विभा २७६२, २७६३)
नगम नय के अनुसार सामायिक अध्ययन के लिए सम्यक्त्व और श्रुत सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति
उद्दिष्ट शिष्य यदि वर्तमान में सामायिक का अध्ययन नहीं कुछ अधिक छियासठ सागरोपम की है। देशविरति और
कर रहा है, तब भी वह सामायिक है। सर्वविरति सामायिक की उत्कृष्ट स्थिति देशोन पूर्वकोटि
संग्रहनय और व्यवहारनय के अनुसार सामायिक की है। तेतीस सागर की स्थिति वाले विजय आदि विमानों
अध्ययन को पढने के लिए गुरु चरणों में आसीन शिष्य
सामायिक है । में दो बार उत्पन्न होने पर अथवा बाईस सागर की स्थिति वाले अच्युत विमान में तीन बार उत्पन्न होने पर सम्यक्त ऋजुसूत्र नय के अनुसार अनुपयोगपूर्वक सामायिक और श्रत सामाधिक की स्थिति छियासठ सागर की होती
अध्ययन को पढ़ने वाला शिष्य सामायिक है। है। इन देब-भवों के मध्य में होने वाले मनुष्य भव की
शब्द आदि तीनों नयों के अनुसार शब्द क्रिया से स्थिति मिलाने पर वह कुछ अधिक छियासठ सागर की
वियुक्त सामायिक में उपयुक्त शिष्य सामायिक है। क्योंकि हो जाती है।
इनके अनुसार विशुद्ध परिणाम ही सामायिक है । प्रथम तीन सामायिक की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहुर्त ७. सामायिक और लोक तथा चारित्र सामायिक की स्थिति एक समय की है। उपयोग की दृष्टि से चारों सामायिक की स्थिति जघन्य
सम्म-सुआणं लंभो उड्ढं च अहे अतिरियलोए अ।
विरई मणुस्सलोए विरयाविरई य तिरिएसुं ।। अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट नाना जीवों की अपेक्षा सर्वकाल
पुव्वपडिवण्णगा पुण तीसुवि लोएसु निअमओ तिण्हं ।
चरणस्स दोसु नियमा भयणिज्जा उड्ढलोगम्मि ॥ ५. सामायिक : आवरणक्षय
(आवनि ८०७,८०८) श्रुतसामायिकमपि मति-श्रुतक्षयोपशमाल्लभ्यते, सम्यक्त्व सामायिक और श्रुत सामायिक की प्राप्ति सम्यक्त्व-देश विरति-सर्वविरतिसामायिकानि तदावरणस्य तीनों- ऊर्ध्व, अधः और तिर्यक् लोक में होती है। देशयथासंभवं क्षयतः शमतः-उपशमत इत्यर्थः, अथवोभयतः विरति सामायिक की प्राप्ति केवल तिर्यक लोक में होती क्षयोपशमाद् भवन्ति । (विभामवृ २ पृ ३३०) है। सर्वविरति सामायिक की प्राप्ति मनुष्य लोक में होती
श्रत सामायिक की प्राप्ति मतिज्ञानावरण और श्रुत- है। ज्ञानावरण के क्षयोपशम से होती है। सम्यक्त्व सामायिक श्रुत, सम्यक्त्व और देशविरति सामायिक के पूर्वप्रतिकी प्राप्ति दर्शन सप्तक के क्षयोपशम, उपशम अथवा क्षय पन्नक नियमतः तीनों लोकों में होते हैं । सर्वविरति
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