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सामायिक का निर्गम
सामायिक
कर्ता
८. तेतलीपुत्र
चारित्र सामायिक के दो भेद हैं - अगार सामायिक तेतलीपूर नगर के राजामात्य का नाम तेतलीपत्र (देशविरति) और अनगार सामायिक (सर्वविरति)। . था। उसकी पत्नी पोटिला कालान्तर में प्रव्रजित
अध्ययन-श्रुत सामायिक के तीन भेद हैं-सूत्र होकर समाधि मृत्यु को प्राप्त कर देवलोक में देव सामायिक, अर्थ सामायिक तथा तदुभय सामायिक । . रूप में उत्पन्न हई। एक बार अमात्य तेतलीपुत्र ४. सामायिक का निर्गम राजा द्वारा अवमानित होकर दुर्ध्यान में दिन बिताने
वइसाहसुद्धएक्कारसीए पूव्वण्हदेसकालंमि । लगा। उसने आत्महत्या के नानाविध प्रयत्न किए,
महसेणवणज्जाणे अणंतरं परंपर सेसं ।।। पर सब व्यर्थ । वह चिन्ताग्रस्त होकर बैठा था।
(आवनि ७३४) उस समय उसकी स्वर्गस्थ पत्नी पोट्टिला, जो देव
वैशाख शुक्ला एकादशी, पूर्वाह्न काल, महासेनवन बनी थी, वह मूलरूप में वहां आई और अपनी
उद्यान में भगवान महावीर ने (पहली बार) सामायिक कृत्रिम व्यथा प्रगट करती हुई बोली-तेतली! मैं
का निरूपण किया। चारों ओर से आपदाओं से घिर गई हूं। अब बताओ, मैं कहां जाऊं? तब तेतली बोला'पोट्टिले ! भीयस्स खलु भो! पव्वज्जा""सहाय- केण कयं ति य ववहारओ जिणिदेण गणहरेहिं च । किच्चं'--भयभीत के लिए प्रव्रज्या ही सरण है।'
तस्सामिणा उ निच्छयनयस्स तत्तो जओऽणन्नं ।। पोट्रिलारूपी देव ने कहा- तुम स्वयं प्रव्रज्या ग्रहण
(विभा ३३८२) करो। इतना कहकर देव अदश्य हो गया। तेतली- व्यवहार दृष्टि में सामायिक का प्रतिपादन तीर्थङ्कर पुत्र चिन्तन की गहराई में उतरा। शुभ अध्यवसाय और गणधरों ने किया। निश्चय नय के अनुसार सामायिक से उसे जातिस्मति ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसने अपना का कर्ता है सामायिक का अनुष्ठान करने वाला । क्योंकि पूर्वभव देखा और यह जान लिया कि उसने पूर्वजन्म
सामायिक का परिणाम उसके अनुष्ठाता से अन्य नहीं है। में श्रामण्य का पालन किया था। वह और गहराई लक्षण में गया। उसने उसी पथ पर जाने का निश्चय
नाणेण जाणई भावे दंसणेण य सद्दहे । किया। तत्क्षण पूर्व-अधीत सारा श्रुत उसके स्मृति
चरित्तेण निगिण्हाइ'. "" ""॥ पटल पर नाचने लगा। उसने देवता द्वारा प्रतिबुद्ध होकर सर्व सावध योगों का प्रत्याख्यान कर लिया
(उ २८।३५) और उस प्रत्याख्यान में वह दृढ़ रहा । उसी की यह
जीव ज्ञान से पदार्थों को जानता है, दर्शन से श्रद्धा फलश्रुति थी कि वह केवली, सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो करता है और चारित्र से निग्रह करता है। गया ।
सद्दहइ जाणइ जओ पच्चक्खायं तओ जओ जीवो।"" (देखें-आवनि ८६५-८७९ हावृ १ पृ २४३-२५०;
..."सद्धेय-नेय-किरिओवओगओ सव्वदव्वाई।। आवचू १ ४९१-५०१)
(विभा २६३५, २६३६) ३. सामायिक के प्रकार
सम्यक्त्व सामायिक का लक्षण है-तत्त्वश्रद्धा।
श्रुत सामायिक का लक्षण है - तत्त्वपरिज्ञान । सामाइयं च तिविहं सम्मत्त सूयं तहा चरित्तं च ।
चारित्र सामायिक का लक्षण है--- सावद्ययोगदविहं चेव चरित्तं अगारमणगारियं चेव ॥ विरति ।
(आवनि ७९६) अज्झयणं पि य तिविहं सुत्ते अत्थे अ तदुभए चेव ।
(विभा २६७४) सम्मत्तस्स सुयस्स य पडिवत्ती छविहे वि कालम्मि । सामायिक के तीन भेद हैं -सम्यक्त्व सामायिक, विरई विरयाविरइं पडिवज्जइ दोसु तिसु वावि ।। श्रत सामायिक तथा चारित्र सामायिक ।
(आवनि ८११)
काल
एचव।
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