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________________ सम्यक्त्व ६८२ सम्यक्त्व : आयुबंध... करना निर्विचिकिकारना और मैल अथ सम्यक्दृष्टि जीवन तत्त्व के प्रति अंशत: या सर्वतः संदेह न होना ३. विचिकित्सा-लक्ष्यपूर्ति के साधनों के प्रति संशयनिशंकित (सम्यक्त्व का प्रथम अंग) है। शीलता। २. निष्कांक्षित-बौद्ध, वैशेषिक आदि दर्शन भी युक्ति ४. परपाषण्डप्रशंसा-लक्ष्य के प्रतिकूल चलने वालों की युक्त हैं, अहिंसा के व्याख्याता हैं, इसलिए ये भी प्रशंसा । सुन्दर हैं-इस प्रकार अन्यान्य दर्शनों के अभिमत ५. परपाषण्डसंस्तव-लक्ष्य के प्रतिकूल चलने वालों का को ग्रहण करने की इच्छा कांक्षा है और उसका परिचय। अभाव निष्कांक्षा है। . १५. सम्यक्त्व : आयुबंध और गति ३. निविचिकित्सा-विचिकित्सा के दो अर्थ हैं१. धर्म के फल में संदेह, जैसे-इस कष्टमयी सम्मद्दिट्ठी जीवो विमाणवज्ज ण बंधए आउं । साधना का फल होगा या नहीं? । जइवि ण सम्मत्तजढो अहव ण बद्धाउओ पूवि ।। (दहावृ प ११३) २. जुगुप्सा, निन्दा-इन मुनियों के शरीर पर मैल क्यों है ? प्रासुक जलस्नान में क्या दोष है ? सम्यकदष्टि जीव यदि सम्यक्त्व से च्युत न हुआ हो इस प्रकार धर्मफल में सन्देह न करना और मल अथवा पूर्वबद्धायु न हो तो वह वैमानिक देव के सिवाय आदि से घणा न करना निर्विचिकित्सा है। अन्य आयुष्य का बंध नहीं करता। ४. अमूढदृष्टि-ऋद्धि संपन्न कुतीथिकों को देखकर भी विराधितसम्यक्त्वो हि षष्ठपृथ्वीं यावद् गृहीतेनाऽपि जिसकी बुद्धि मूढ/विपर्यस्त नहीं होती, वह अमृढ- सम्यक्त्वेन सैद्धान्तिकमतेन कश्चिदत्पद्यते । कार्मगथिकदृष्टि है। मतेन तु वैमानिकदेवेभ्योऽन्यत्र तिर्यङ मनुष्यो वान्तेनंव ५. उपबंद्रण-जो दर्शन आदि गुणों से संपन्न हैं उन क्षायोपश मिकसम्यक्त्वेनोत्पद्यते, न गृहीतेन । सप्तमपृथिव्यां व्यक्तियों के गुणों का उपबंहण-संवर्धन या संकीर्तन पुनरुभयमतेनाऽपि वान्तेनैव तेनोपजायते। करते हुए कहना-आपका जन्म सुलब्ध है। आप (विभामवृ १ पृ २०८) जैसे व्यक्तियों के लिए यह उचित है, यह उपबंहण । सम्यक्त्व की विराधना करने वाला कोई जीव छठी नरकभूमि तक सम्यक्त्व लेकर भी जा सकता है-यह ६. स्थिरीकरण-धर्ममार्ग से विचलित हो रहे व्यक्तियों सैद्धांतिक मान्यता है। कर्मग्रन्थ के अभिमत में वैमानिक देवों को छोड़कर तिर्यंच और मनुष्य क्षयोपशम सम्यक्त्व को पुनः स्थिर करना स्थिरीकरण है। के वान्त होने पर ही छठी नरक भूमि तक उत्पन्न हो ७. वात्सल्य -सामिक व्यक्तियों को यथायोग्य आहार, सकते हैं, सम्यक्त्व को साथ लेकर वे वहां उत्पन्न नहीं वस्त्र, पानी आदि देना, गुरु, ग्लान तथा शैक्ष हो सकते । सातवीं नरक में वान्त सम्यक्त्वी ही जा सकते साधुओं की विशेष सेवा करना वात्सल्य है। हैं - यह उभयमत सम्मत है। ८. प्रभावना --तीर्थ की उन्नति में हेतुभूत चेष्टा करना कोऽपि सम्यग्दृष्टिः श्रुतज्ञानी पूर्व नरके बतायुष्कः प्रभावना है। पश्चाद् विराधितात्यक्तसम्यक्त्वः षष्ठप्रथिव्यामिलिकागत्या १४. सम्यक्त्व के अतिचार समुत्पद्यमानो लोकस्य पञ्च चतुर्दशभागान स्पशति । सम्मत्तस्स ....." इमे पंच अइयारा जाणियव्वा....." (विभामवृ २ पृ १७४, १७५) तं जहा-संका कंखा वितिगिच्छा परपासंडपसंसा, पर- जो सम्यग्दृष्टि श्रुतज्ञानी नरक आयुष्य का बंध पासंडसंथवो। (आवहाव २ पृ २१४) करने के पश्चात् सम्यक्त्व प्राप्त करता है, वह सम्यक्त्व सम्यक्त्व के पांच अतिचार हैं की विराधना कर सम्यक्त्व सहित जब इलिका गति से १. शंका-लक्ष्य के प्रति संदेह । छठी नरकभूमि में उत्पन्न होता है, तब वह चौदह २. कांक्षा–लक्ष्य के विपरीत दृष्टिकोण के प्रति रज्जु वाले लोकाकाश के पांच रज्जु-प्रमाण भाग का स्पर्श अनुरक्ति । करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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