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समिति के उदाहरण
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समिति
तिण्णि कालभूमीओ न पडिलेहेति । भणति - किमेत्थ का आगमन हुआ। नदीसेन उनके पास प्रवजित हो गया। उठो उवविसेज्ज? देवता उद्ररूवेण तत्थ ठिता"पडि- बेले-बेले की तपस्या करने लगा और यह अभिग्रह चोदितो कीस सत्तवीसं न पडिले हिसि ? सम्म पडि- धारण कर लिया कि वह वैयावृत्त्य में सदा व्याप्त वण्णो । एस पारिट्रावणियासमितित्ति ।
रहेगा । देवता ने परीक्षा करनी चाही। एक दिन नंदीसेन
(आवच २ पृ ९३-९५) बेले का पारणा करने बैठा। इतने में ही देव-श्रमण ने १. ईर्या समिति
कहा--तृषा से आकुल-व्याकुल एक मुनि अटवी में बैठा __ एक मुनि ईर्या में उपयुक्त होकर विहरण कर रहे थे। है । तत्काल कोई पानक की व्यवस्था हो । नंदीसेन उठा। इन्द्र ने देवसभा में उनके दृढ़ संकल्प की प्रशंसा की । एक पारणे को वहीं छोड़ गांव में पानक की गवेषणा करने देवता ने परीक्षा करने के निमित्त मूनि के मार्ग में गया। देवमाया से सभी घरों में पानक अनेषणीय था। मक्षिका प्रमाण मेंढकों की विकर्वणा की। सारा मार्ग एक स्थान पर पानक मिला। वह अटवी में गया । कोई मेंढकों से भर गया। मुनि अपने ईर्यापथ का शोधन करते मुनि दृष्टिगोचर नहीं हुआ, तब उसने जोर-जोर से बाल सोमानित हो गई। इतने मेंदी आवाज लगाई । प्रत्युत्तर मिला । उसने देखा मुनि अतिएक हाथी चिंघाड़ता हुआ पीछे से आता-सा प्रतीत हुआ।
सार से पीड़ित हैं और जर्जरित हो गए हैं । नंदीसेन उन्हें मुनि ने अपनी गमन विधि में कोई अन्तर नहीं डाला।
पीठ पर बिठाकर गांव की ओर चला । अतिसार से ग्रस्त हाथी आया। मुनि को संघट्रित किया। मुनि भूमि पर मुनि ने पीठ पर ही मल-मूत्र कर दिया। नंदीसेन गांव गिर पड़े । मूनि ने शरीर पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने की ओर त्वरा से चलने लगा। मुनि ने कहा- तेज गति मन ही मन सोचा-मेरे नीचे गिरने से कितने जीवों से मेरे वेदना होती है, धीरे चल । नंदीसेन अग्लानभाव से की घात हो गई ? उनका मन करुणा से ओतप्रोत हो समतापूर्वक मुनि को गांव की ओर ले जा रहा था । मनि गया।
के समताभाव को देखकर, उसने अपना मूल देवरूप प्रगट २. भाषा समिति
कर क्षमायाचना की। किसी शत्र राजा ने नगर को घेर लिया। बाहर पांच श्रमण साथ-साथ विहार कर रहे थे। अटवी छावनी के पास एक भिक्ष भिक्षा के लिए घूम रहा था। के दीर्घ मार्ग में वे भटक गए। भूख और प्यास से एक सुभट ने पूछा-यहां कितने घोड़े हैं ? कितने हाथी अत्यंत आकुल-व्याकुल होकर वे गतिमान थे। अटवी के हैं ? धान्य-भंडार कितने हैं ? राजा से रुष्ट और अरुष्ट बाहर निकलते ही वे बैताली गांव में पहुंचे और सबसे नागरिक कितने हैं ? तुम हमें बताओ। मुनि बोले- पहले पानक की एषणा करने लगे। वहां के लोगों ने हम तो निरंतर स्वाध्याययोग और ध्यानयोग में निरत अपने सभी घरों में पानक को अनेषणीय कर डाला। रहते हैं। पूरा दिन उसी में बीत जाता है। तब सुभट मुनियों को पानक नहीं मिला। पांचों दिवंगत हो बोला-क्या घूमते हुए कुछ नहीं देखते ? कुछ नहीं गए। सुनते ? यह कैसे संभव हो सकता है ? तब मुनि बोलाभगवान् ने हमें अनुशासना देते हुए कहा है
४. आदान-निक्षेप समिति ___साधु बहुत कुछ देखता है, सुनता है, पर उसका आचार्य के पास एक श्रेष्ठीपुत्र प्रवजित हुआ। वह यह विवेक है कि वह सब कुछ देखा हुआ या सुना हआ पांच सौ साधुओं के उस संघ में सबसे छोटा था। पांच दूसरों को न कहे।'
सौ साधुओं में से कोई भी आता, वह शैक्ष मूनि उनके ३. एषणा समिति
दंड को ग्रहण कर, भूमि का प्रमार्जन कर उसे रखता। ___मगध जनपद में सालिग्राम नाम के नगर में गृहपति इस प्रकार कोई मुनि आता और कोई बाहर जाता। का पुत्र नंदीसेन रहता था। जब वह गर्भ में था तब वह सभी के दंड लेकर व्यवस्थित रखता । यह ध्यानपूर्वक पिता का देहावसान हो गया और जब वह छह महीने का अचपल और अत्वरित होकर वह क्रिया विधिवत् करता। हुआ तब माता मृत्यु की ग्रास बन गई। मामा ने उसका बहुत समय बीत जाने पर भी वह परिक्लान्त नहीं हुआ। पालन-पोषण किया। एक बार वहां नंदीवर्धन अनगार यह आदान-निक्षेप समिति के प्रति उसकी जागरूकता थी।
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