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समिति
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पांच समितियों के उदाहरण
शवपरिष्ठापन विधि
साधु के कालगत होते ही, जब तक कि वायू से सारा पडिलेहणा दिसा गंतए य काले दिया य राओ य।। शरीर अकड़ न जाए, उसके हाथ और पैरों को एकदम कुसपडिमा पाणगणियत्तणे य तणसीसउवगरणे ।। सीधे लम्बे फैला दें, मुंह खुला हो तो बंद कर उस पर उठाणणामगहणे पयाहिणे काउसग्गकरणे य । मुखवस्त्रिका बांध दें, पैरों और हाथों के अंगूठों को रस्सी खमणे य असज्झाए तत्तो अवलोयणे चेव ।। से बांध दें, मृतक के अक्षत देह में अंगूली के बीच के पर्व
(आवनि १२७२,१२७३) का कुछ छेदन करें। कालगत मूनि की निर्हरण क्रियाविधि का सोलह साधु के शव को देखकर मुनि विषाद न करें। दष्टियों से विचार किया गया है
आचार्य या गीतार्थ मुनि और इनके अभाव में अगीतार्थ प्रतिलेखना, दिशा, वस्त्र, काल, कुशप्रतिमा, पानक, मुनि जो इस मृतक-क्रियाविधि को जानता हो, वह विधि निवर्तन, तृण, शीर्ष, उपकरण, उत्थान, नामग्रहण, से शव का व्युत्सर्जन करे। स्थंडिलभूमि से उपाश्रय में प्रदक्षिणा, कायोत्सर्ग, क्षपण (तप), अस्वाध्याय और आकर आचार्य के पास कायोत्सर्ग करे। अवलोकन । कछेक का विवरण इस प्रकार है
(विशेष विवरण के लिए देखें-आवचू २ पृ० १०२-तीन महास्थडिला (जहा मृतक का परिष्ठा- १०९ तथा ठाणं ६।३ का टिप्पण।) पित किया जाता है) का निरीक्षण आवश्यक आहार-जल परिष्ठापन विधि । (द्र. आहार) होता है-गांव के नजदीक, बीच में और
६. पांच समितियों के उदाहरण । गांव से दूर। इन तीनों की अपेक्षा इसलिए ५ है कि एक के अव्यवहार्य होने पर दूसरा एगो साहू ईरियासमिईए जुत्तो, सक्कस्स आसणं स्थंडिल काम में आ सके ।
चलितं, वंदति । मिच्छट्ठिी देवो आगतो, मच्छियप्पदिशा-पश्चिमदक्षिण दिशा में स्थंडिल का निरीक्षण माणाओ मंडक्कियाओ विउव्वति। पिट्रओ हत्थिभयं, करना चाहिए । यह समाधि में निमित्त बनता गति न भिंदति, हत्थिणा उक्खिवितुं पाडितो, न सरीरं
पेहति, सत्ता मारिज्जिहित्ति जीवदयापरिणतो। वस्त्र-मृतक को ढाई हाथ लंबे श्वेत और सुगंधित वस्त्र भासासमितीए-एगो साह णगररोहगे भिक्खस्स
से ढंकना चाहिये । उसके नीचे भी वैसा ही निग्गतो। कडगे हिंडतो पुच्छितो केवइया आसा हत्थी एक वस्त्र बिछाना चाहिये। फिर उसको उन एवमादि। भणति-न सुठ्ठ जाणामो"बह सूणेति वस्त्रों सहित एक डोरी से बांधकर, उस डोरी कण्णेहिं"। को ढंकने के लिए तीसरा अति उज्ज्वल वस्त्र एसणासमितीए-नंदीसेणो अणगारो""छट्रक्खमओ ऊपर डाल देना चाहिये। मलिन वस्त्रों से जातो, अभिग्गहं गेण्हति-वेयावच्चं मए कायव्वं.... ढंकने से प्रवचन की अवज्ञा होता है।
तुरितं घेत्तूण पाणगं जातु । नंदिसेणो अपारितो चेव काल-जिस समय साधु कालगत हुआ हो, उसे उसी समय पाणगस्स गाम अतिगतो, भिक्खंतो हिंडतो देवाणभावेणं निकालना चाहिये, फिर चाहे दिन हो या
न लभति, चिरस्स लद्धं"। रात। किन्तु रात्रि में हिम गिरता हो,
अहवा इमं दिट्टिवातियं-पंच संजता""पाणगं हिंसक जानवरों आदि का भय हो, नगर के
मग्गंति, अणेसणं लोगो करेति, न लद्धं, कालगता द्वार बंद हों, मृतक के संबंधियों ने रोकने के लिए कहा हो, मृतक मुनि आचार्य या विशिष्ट
पंचवि। तपस्वी हो-इत्यादि कारणों से मुनि के शव
दिट्ठिवाइगं-सेट्ठिसुतो पन्वइतो। सेहो पंचण्हं को रखना पड़े तो रात्रिजागरण करना
संजतसताणं जो जो एति तस्स तस्स दंडगं गहाय ठवेति... चाहिये। निद्राजयी, उपायकुशल, धैर्यशाली,
उवरि हेद्रा य पमज्जित्ता ठवेति । एवं बहएणवि कालेण शक्तिसम्पन्न और अभय मुनि शव के पास
न परितम्मति । बैठकर धर्मकथा करें।
दिट्ठिवाइगं......."चउव्वीसं उच्चारपासवणभूमीसु
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