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• संयम
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संयम के परिणाम
आवश्यक आदि करणीय कृत्यों के अतिरिक्त सुसमा- जो मनुष्य प्रतिमास दस लाख गायों का दान देता है, हित मुनि कूर्म की तरह गुप्तेन्द्रिय ---सुस्थिर रहता है- उसके लिए भी संयम ही श्रेय है। भले फिर वह कुछ भी यह कायसंयम है।
न दे। १७. उपकरण संयम
थोवाहारो थोवभणिओ य जो होइ थोवनिहो य ।
थोवोवहिउवगरणो तस्स ह देवावि पणमंति ।। उवगरणसंजमो.-पोत्थएस घेप्पतेसू असंजमो महाधणमोल्लेसु वा दूसेसु, वज्जणं तु संजमो।
(आवनि १२६८)
आहारसंयम, वाक्संयम, निद्रासंयम और उपधिकालं पडुच्च चरणकरणळं अव्वोच्छित्तिनिमित्तं
उपकरण संयम करने वाले को देवता भी प्रणाम करते हैं। गेण्हंतस्स संजमो भवति । (दअचू पृ १२) पुस्तकों तथा अधिक मूल्य वाले वस्त्रों का ग्रहण
हत्थसंजए पायसंजए, करना उपकरण असंयम है। उनका वर्जन करना उपकरण
वायसंजए संजइंदिए । संयम है । अवसर को जानकर चारित्र की अनुपालना
अज्झप्परए सुसमाहियप्पा, और श्रत की अव्यवच्छित्ति के निमित्त इनका ग्रहण करना
सुत्तत्थं च वियाणई जे स भिक्खू । भी संयम है।
(द १०।१५) (आवहाव २ पृ १०८ में संयमभेदों के क्रम तथा
जो हाथों से संयत है, पैरों से संयत है, वाणी से नामों में किंचित् अंतर है । वहां उपकरण संयम के स्थान
संयत है, इंद्रियों से संयत है, अध्यात्म में रत है, भलीभांति में अजीव संयम तथा अपहृत्य संयम के स्थान में परिष्ठा
समाधिस्थ है और जो सूत्र और अर्थ को यथार्थरूप से पन संयम का उल्लेख है। समवाओ १७।२ में भी जानता है-वह भिक्षु है। उपकरण संयम के स्थान में अजीव संयम का उल्लेख
५. संयम के परिणाम ३. जीव-अजीव संयम
संजमेणं अणण्हयत्तं जणयइ। (उ २९।२७)
संयम से जीव आश्रव का निरोध करता है। जस्स जीवाजीवपरिण्णा अत्थि सो जीवाजीवसंजमं
सुयनाणम्मिवि जीवो वटतो सोन पाउणइ मोक्खं । वियाणइ, तत्थ जीवा न हंतव्वा एसो जीवसंजमो भण्णइ ।
जो तवसंजममइए जोए न चएइ वोढं जे॥ अजीवावि मंसमज्जहिरण्णादिदव्वा संजमोवघाइया ण घेत्तव्वा एसो अजीवसंजमो, तेण जीवा य अजीवा य
जह छयलद्धनिज्जामओवि वाणियगइच्छियं भूमि । परिणाया जो तेसु संजमइ। (दजिचू पृ १६१, १६२)
वाएण विणा पोओ न चएइ महण्णवं तरिउं ॥ संयम दो तरह का होता है-जीव संयम और अजीव
तह नाणलद्धनिज्जामओवि सिद्धिवसहि न पाउणइ । संयम । किसी जीव को नहीं मारना यह जीव संयम है।
निउणोऽवि जीवपोओ तवसंजममारुअविहूणो । मद्य, मांस, स्वर्ण आदि द्रव्य जो संयम के घातक हैं उनका
(आवनि ९४-९६) परिहार करना अजीव संयम है। जो जीव और अजीव जो जीव तपोयोग और संयमयोग का वहन नहीं कर
उनके प्रति संयत हो सकता है । जो सकता, वह केवल श्रुतज्ञान-शास्त्रों के अध्ययन से मुक्ति जीव-अजीव को नहीं जानता, वह संयम को भी नहीं प्राप्त नहीं कर सकता। जानता, वह उनके प्रति संयम भी नहीं कर सकता ।
जैसे निपूण कर्णधार होने पर भी अनुकूल हवा के ४. संयम की श्रेष्ठता
बिना जहाज महार्णव को पार नहीं कर सकता, वैसे ही जो सहस्सं सहस्साणं, मासे मासे गवं दए। निपुण ज्ञानी निर्यामक होने पर भी जीव रूप पोत, तपतस्सावि संजमो सेओ, अदितस्स वि किंचणं ॥ संयम रूप हवा के बिना सिद्धिस्थान को प्राप्त नहीं कर
(उ ९।४०) सकता ।
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