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संयम के सतरह प्रकार
२. संयम के सतरह प्रकार
संजमो सत्तरसविहो, तं जहा पुढविकायसंजमो, आउकाय संजमो, ते काय संजमो, वाउ काय संजमो, वणस्सतिकायसंजमो, बेइंदियसंजमो, तेइं दियसंजमो, चउरदियसंजमो, पंचेंदियसंजमो, पेहासंजमो, उवेहासंजमो, अवहट्टसजमो, पमज्जियसंजमो, मणसंजमो, वतिसंजमो, कायसंजमो, उवगरणसंजमो । ( अचू पृ १२ )
संयम सतरह प्रकार का है – पृथ्वी काय संयम, अकायसंयम, तेजस्कायसंयम, वायुकायसंयम, वनस्पतिकायसंयम, द्वीन्द्रियसंयम, त्रीन्द्रियसंयम, चतुरिन्द्रियसंयम, पंचेन्द्रियसंयम, प्रेक्षासंयम, उपेक्षासंयम, अपहृत्य ( उत्सर्ग ) संयम, प्रमार्जन संयम, मनसंयम, वचनसंयम, काय संयम उपकरणसंयम |
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१९. पृथ्वी काय पंचेन्द्रिय संयम
पुढविकायसंजमो - पुढविकायं तियोगेन ण हिंसतिण हिसावेति हिंसंतं नाणुजाणति । एवं आउक्कायसंजमो जाव पंचेंदियसंजमो । (दअचू पृ १२ ) पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिकाय तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय जीवों की मनसा, वाचा, कर्मणा हिंसा न करना, न करवाना, न अनुमोदन करना क्रमशः पृथ्वीकाय संयम, अष्काय संयम, तेजस्काय संयम, वायुकाय संयम, वनस्पतिकाय संयम, द्वन्द्रिय संयम, श्रीन्द्रिय संयम, चतुरिन्द्रिय संयम और पंचेन्द्रिय संयम है ।
१०. प्रेक्षा संयम
ठाणाइ जत्थ चेए, पुव्वं पडिले हिऊण चेएज्जा । ( ओभा १७१ ) पेहासंजमो- - जत्थ ठाण-नीसीयण तुयट्टणं काउकामो तं पडिलेहिय पमज्जिय करेमाणस्स संजमो भवति । (दअचू पृ १२ ) स्थान ( कायोत्सर्ग), निषीदन और शयन के स्थान का प्रतिलेखन (चक्षु से निरीक्षण) और प्रमार्जन करना प्रेक्षा संयम है ।
प्रतिलेखन विधि और क्रम (द्र प्रतिलेखना)
११. उपेक्षा संयम
..... संजय गिहिचोयणऽचोयणे य वावारओवेहा |
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संयम
संयमी को प्रेरित करना, असंयमी के कार्य में उदासीन रहना उपेक्षा संयम है ।
उवेहा संजमो -संजमवतं संभोइयं पमायंतं चोदेंतस्स संजमो । असंभोइयं चोयंतस्स असंजमो । पावयणीए कज्जे चियत्ता वा से पडिचोयण त्ति अण्णसंभोइयं प चोएति । गिहत्थे कम्मायाणेसु सीदमाणे उपेहंतस्स संजमो, वावारितस्स असंजमो । ( अचू पृ १२ )
उपेक्षा संयम के दो प्रकार हैं
१. प्रमत्त सांभोजक साधु को अप्रमाद के प्रति प्रेरित करना उपेक्षा संयम है । असांभोजिक को प्रेरित करना असंयम है । प्रवचन की प्रभावना के लिए प्रीतिकारक प्रेरणा से अन्य सांभोजिक को भी प्रेरित किया जा सकता है ।
२. गृहस्थ के सावध व्यापार के प्रति उदासीन रहना उपेक्षा संयम है, सावध व्यापार में व्यापृत होना असंयम है । १२. अपहृत्य संयम
अवहट्ठ संजमो अतिरेगोवगरणं विगिवंतस्स संजमो । पाणजातीए य आहारादिसु असुद्धोवहिमादीणि परिति । ( अचू पृ १२ ) अतिरिक्त उपकरणों का परित्याग करना, सचित आहार आदि तथा अशुद्ध उपधि आदि का परिष्ठापन करना अपहृत्य संयम है ।
परिष्ठापन की विधि ( द्र समिति )
१३. प्रमार्जन संयम
..... सागारिएपमज्जए संजम सेसे पमज्जणया ||
( ओभा १७२ )
न करना संयम प्रमार्जन करना संयम
गृहस्थ के सामने पैरों का प्रमार्जन है । गृहस्थ न हो उस स्थिति में है ।
१४- १६. मन-वचन- शरीर संयम
मणसंजमो - अकुसलमणनिरोहो वा कुसलमणउदीरणं
वा । वतिसंजमो - अकुसलवइनिरोहो वा कुसलवतिउदीरणं वा । कायसंजमो अवस्सकरणीयवज्जं सुसमाहियस्स कुम्म इव गुत्तिदिय चिट्ठमाणस्स संजमो । (दअचू पृ १२ ) अकुशल मन और वचन का निरोध तथा कुशल मन ( ओभा १७१ ) और वचन का प्रवर्तन मन संयम और वचन संयम है ।
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