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संयम
संयम के सतरह प्रकार
संज्ञा भी नहीं हो सकती । किन्तु ये संज्ञाएं उनमें हैं।
• अपहृत्य संयम जिसमें यह अध्यवसाय होता है कि अमुक पुष्टिकारक • प्रमार्जन संयम वस्तु मुझे मिल जाये तो अच्छा रहे-यह शब्दार्थ के ० मन-वचन-शरीर संयम उल्लेख से अनुविद्ध तथा स्वपुष्टि में निमित्तभूत पदार्थ का ० उपकरण संयम अध्यवसाय श्रुत ही है । श्रुत शब्द और अर्थ का पर्या- ३. जीव-अजीव संयम लोचन करता है। शब्द अन्तर्जल्पाकार होने पर भी ४. संयम की श्रेष्ठता विवक्षित अर्थ के वाचक होते हैं । श्रुत का भी यही लक्षण | ५. संयम के परिणाम
६. मन-वचन-शरीर संयम के परिणाम
७. संयमी की जीवन-शैली वनस्पति में आहार आदि चारों संज्ञाएं
• संयम-रमण : सुर-सुख दृश्यते हि जलाद्याहारोपजीवनाद वनस्पत्यादीनामाहार- * संयम-आचरण को दुर्लभता (द्र. मनुष्य) संज्ञा, संकोचनवल्ल्यादीनां तु हस्तस्पर्शादिभीत्याऽवयव- * श्रुति संयम और चक्षु संयम (5. ब्रह्मचर्य) संकोचनादिभ्यो भयसंज्ञा, विरहक-तिलक-चम्पक-केशरा- * इन्द्रिय संयम के परिणाम (द्र. इन्द्रिय) शोकादीनां तु मैथुनसंज्ञा दशितव, बिल्वपलाशादीनां तु *संयम में स्थिरता के आलम्बन (द्र. चारित्र) निधानीकृतद्रविणोपरि पादमोचनादिभ्यः परिग्रहसंज्ञा । न चैताः संज्ञा भावतमन्तरेणोपपद्यन्ते।
१. संयम की परिभाषा
(विभाम१पृ ५९) संजमो समिति-गुत्तीसु उवरमो ।""सव्वावस्थवनस्पति जीवों में आहार आदि चारों संज्ञाएं पाई महिसोवकारी संजमो।
(दअचू पृ९) जाती हैं। सभी प्रकार के वनस्पतिजीव जल आदि को संयम का अर्थ है-समिति और गुप्ति का पालन ग्रहण कर जीवित रहते हैं, अतः उनमें आहार संज्ञा है। करना। जो सर्वत्र अहिंसा का उपकारी है, वह संयम कुछेक लताएं और वल्लियां हाथ का स्पर्श होते ही है। भयभीत होकर सिकुड़ जाती हैं। उनमें भयसंज्ञा है। संजमो नाम उवरमो, रागहोसविरहियस्स एगीभावे तिलक, चंपक आदि वृक्ष स्त्रियों के पादाघात, आलिंगन भनी
(दजिचू पृ १५) आदि से पुष्पित और फलित होते हैं। यह उनमें मैथुन
संयम का अर्थ है-उपरति । राग-द्वेष से शून्य होकर संज्ञा का प्रतीक है । बिल्व, पलाश आदि वृक्षों की जड़े भूमि में गड़े हुए धन पर छितर जाती हैं । यह उनमें एकीभाव में स्थित होना संयम है। परिग्रहसंज्ञा का द्योतक है । ये चारों संज्ञाएं भावश्रुत के
संयमः आश्रवद्वारोपरमः । “संयमस्याहिंसाया एव बिना उत्पन्न नहीं होती, अतः उन एकेन्द्रिय जीवों में उपग्रहकारित्वात्, संयमिन एव भावतः खल्वहिंसकत्वात् । भावश्रुत होता ही है।
(दहाव प २१, २६) संभव-तीसरे तीर्थंकर। (द्र. तीर्थंकर)
संयम का अर्थ है--हिंसा आदि आश्रवद्वारों से
विरति । संयम अहिंसा का ही आलंबन है। संयमी के ही संयम-उपरति । निग्रह । नियंत्रण ।
भावत: सम्पूर्ण अहिंसा हो सकती है। १. संयम की परिभाषा
संयम के एकार्थक ० संयम के एकार्थक
दया य संजमे लज्जा, दुगुंछाऽछलणा इअ । २. संयम के सतरह प्रकार
तितिक्खा य अहिंसा य, हिरि एगट्टिया पया ।। • पृथ्वीकाय"संयम
(उनि १५८) प्रेक्षा संयम
दया, संयम, लज्जा, जुगुप्सा, अछलना, तितिक्षा, ० उपेक्षा संयम
| अहिंसा और ह्री-ये संयम के एकार्थक हैं।
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