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श्रुतज्ञान
आभिनिबधिक ज्ञान
द्रव्य आदेशतः सर्व द्रव्यों को जानतादेखता है।
क्षेत्र आदेशत: सर्व क्षेत्रों को जानतादेखता है । आदेशतः सर्व काल को जानतादेखता है ।
भाव आदेशतः सर्व भावों को जानता| देखता है ।
काल
२७. श्रुतस्थान
..... सुयठाणं गणिमाई अहह्वा वायणारियमाई ॥
(पिनि ३१५) गणी (आचार्य), उपाध्याय, वाचनाचार्य, प्रवर्तक आदि-ये श्रुतस्थान हैं । श्रुतनिश्चित मति - मतिज्ञान का एक भेद ।
( द्र. आभिनिबोधिक ज्ञान )
श्रेयांस - ग्यारहवें तीर्थंकर । षट्स्थानपतित- वृद्धि और हानि के छह स्थान ।
( द्र. तीर्थंकर)
वुड्ढी वा हाणी वाणता-संखिज्जासंखभागाणं । संखिज्जासंखिज्जाणंतगुणा चेति छन्भेया ॥ ( विभा ७२९ )
वृद्धि और हानि के छह-छह प्रकार हैंअनन्त भाग हानि असंख्यात भाग हानि संख्यात भाग हानि संख्यात गुण हानि असंख्यात गुण हानि अनन्त गुण हानि ।
अनन्त भाग वृद्धि असंख्यात भाग वृद्धि संख्यात भाग वृद्धि संख्यात गुणवृद्धि असंख्यात गुण वृद्धि अनन्त गुण वृद्धि
१. संख्या के प्रकार
औपम्य संख्या
परिमाण संख्या
श्रुतज्ञान
श्रुतोपयोग अवस्था में सर्व जानता देखता 1 तोपयोग अवस्था में सर्व जानता देखता है । श्रुतोपयोग अवस्था में सर्व जानता-देखता है । श्रुतोपयोग अवस्था में सर्व | जानता देखता है ।
( देखें - भगवई ८।१८४-१८८ का भाष्य )
•
O
० ज्ञान संख्या
• गणना संख्या
*
शीषं प्रहेलिका पर्यंत गणना संख्या २. संख्या का अर्थ
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द्रव्यों को
क्षेत्रों को
काल को
भावों को
५. अनन्त के प्रकार
३. संख्येय के प्रकार
• उत्कृष्ट संख्यात: पल्य का दृष्टांत ४. असंख्येय के प्रकार
• उत्कृष्ट असंख्यात असंख्यात
केवलज्ञान
सर्व द्रव्यों को जानता देखता
है ।
सर्व क्षेत्रों को जानता - देखता
द्रव्यसंख्या - जिसने 'संख्या' यह पद सीख लिया । औपम्यसंख्या - उपमा के माध्यम से वस्तु का बोध । परिमाणसंख्या आगम के ग्रन्थाग्र का ज्ञान ।
संख्या-वस्तु का परिच्छेद और निर्णय । गणना ज्ञानसंख्या - विषयवस्तु के ज्ञान के आधार पर जानने
इसका एक भेद है ।
वाले का ज्ञान ।
1
सर्व काल को जानता - देखता है ।
सर्व भावों को जानता - देखता | है |
• उत्कृष्ट अनन्त अनन्त : एक विमर्श संख्या : भाव प्रमाण का एक भेद
*
संख्या
१. संख्या के प्रकार
संखष्पमाणे अट्ठविहे पण्णत्ते, तं जहा नामसंखा ठवणसंखा दव्वसंखा ओवम्मसंखा परिमाणसंखा जाणणासंखा गणणा संखा भावसंखा । ( अनु ५५८ )
का संख्या नाम
नामसंख्या -- किसी जीव या अजीव करना ।
स्थापनासंख्या - काष्ठाकृति या पुतली आदि में संख्या का रूपांकन या कल्पना करना ।
गणनासंख्या गिनती करना ।
भावसंख्या - जो संख्या पद में उपयुक्त है । औपम्यसंख्या
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( द्र. प्रमाण )
ओवम्मसंखा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा --
१. अस्थि संतयं संतएणं उवमिज्जइ, २ . अस्थि संतयं असंतएण उवमिज्जइ, ३. अस्थि असंतयं संतएणं
(द्र. काल ) | उवमिज्जइ ४. अत्थि असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ ।
( अनु ५६९ )
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