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संख्या
६४६
संख्या का अर्थ
औपम्यसंख्या के चार प्रकार हैं
हो जाओगे । यह बात गिरता हुआ पीला पत्ता किशलयों १. सत् को सत् से उपमित किया जाता है । से कहता है। २. सत् को असत् से उपमित किया जाता है।
किशलयों और पीले पत्तों में न कभी वार्तालाप ३. असत् को सत् से उपमित किया जाता है। हआ और न होगा। भव्यजनों को बोध देने के लिए यह ४. असत् को असत् से उपमित किया जाता है। उपमा दी गई है। १. सत् सत् से उपमित--
४. असत् असत् से उपमितसंतयं संतएणं उवमिज्जइ, जहा--संता अरहंता
असंतयं असंतएणं उवमिज्जइ-जहा खरविसाणं संतएहिं पुरवरेहिं, संतएहि कवाडेहिं संतएहिं वच्छेहिं तहा ससविसाणं ।
. (अनु ५६९) उवमिज्जति, जहा
जैसे गधे का सींग वैसे खरगोश का सींग। पुरवर-कवाड-वच्छा, फलिहभुया दुंदुहि-त्थणियघोसा। परिमाणसंख्या सिरिवच्छंकियवच्छा, सव्वे वि जिणा चउव्वीसं ।।
परिमाणसंखा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-कालियसुय
परिमाणसंखा दिट्टिवायसुयपरिमाणसंखा य । सत् अर्हत् का वक्ष सत् पुरवर के कपाट से उपमित
(अनु ५७०) किया जाता है-चौबीस तीर्थकर पूरवर कपाट के समान
परिमाणसंख्या के दो प्रकार हैंवक्ष, परिघ के समान भुजा और दुन्दुभि एवं मेघगर्जन
१. कालिकश्रुत परिमाणसंख्या ।। के समान घोष वाले तथा श्रीवत्स से अंकित वक्ष वाले
२. दृष्टिवादश्रुत परिमाणसंख्या । (द्र. संबद्ध नाम) होते हैं।
ज्ञानसंख्या २. सत् असत् से उपमितसंतयं असंतएणं उवमिज्जइ, जहा~संताई नेरइय
जाणणासंखा-जो जं जाणइ, तं जहा-सह सहिओ, तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवाणं आउयाइं असंतएहिं
गणियं गणियओ, निमित्तं नेमित्तिओ, कालं कालनाणी, पलिओवम-सागरोवमेहि उवमिज्जति। (अनु ५६९)
वेज्जयं वेज्जो।
(अनु ५७३)
जो जिसे जानता है (वह उसे जानने के कारण सत् नैरयिक, तिर्यग्योनिक, मनुष्यों और देवों का आयुष्य असत् पल्योपम और सागरोपम से उपमित किया
अभेदोपचार से ज्ञानसंख्या है) जैसे-शब्द को जानने जाता है।
वाला शाब्दिक, गणित को जानने वाला गणितज्ञ,
निमित्त को जानने वाला नैमित्तिक, काल को जानने ३. असत् सत् से उपमित
वाला कालज्ञानी, वैद्यक को जानने वाला वैद्य होता है। असंतयं संतएणं उवमिज्जइ, जहापरिजरियपेरंतं, चलंतबेटे पडतनिच्छीरं ।
गणनासंख्या पत्तं वसणप्पत्तं, कालप्पत्तं भणइ गाहं ॥
गणणासंखा-एक्को गणणं न उवेइ, दुप्पभिइ जह तुब्भे तह अम्हे, तुम्हे वि य होहिहा जहा अम्हे। संखा, तं जहा -संखेज्जए असंखेज्जए अणंतए । अप्पाहेइ पडतं, पंड्यपत्तं किसलयाणं ॥
(अनु ५७४) नवि अस्थि न वि य होही, उल्लावो किसल-पंडपत्ताणं । 'एक' यह गणना संख्या में नहीं है। वह 'दो' से उवमा खलू एस कया, भवियजण-विबोहणटाए । आगे बढ़ती है । उसके तीन प्रकार हैं-संख्येय, असंख्येय. .
(अनु ५६९) अनन्त । जिसका पर्यन्त भाग जीर्ण और वन्त विचलित हो २. संख्या का अर्थ गया है, जो वृक्ष से गिरने वाला है, जिसका दूध सूख संख्यानं संख्या-परिच्छेदो वस्तुनिर्णय इत्यर्थः । गया है, वह कष्ट में पड़ा हुआ पका पत्ता (किशलयों से आदानसमर्पणादिव्यवहारकाले एक वस्तु प्रायो न निम्न निर्दिष्ट) गाथा कहता है
कश्चिद् गणयत्यतोऽसंव्यवहार्यत्वादल्पत्वाद् वा नको . जैसे तुम हो वैसे ही हम थे, जैसे हम हैं वैसे ही तुम गणनासंख्यामवतरति । (अनुमत् प २१४, २१७)
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