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शिष्य
सुविनीत शिष्य कौन?
वसे गुरुकूले निच्चं, जोगवं उवहाणवं । अविद्वान-विवेकहीन व्यक्ति का ऐश्वर्य उसी के विनाश पियंकरे पियंवाई, से सिक्खं लद्धमरिहई ।। के लिए होता है।
(उ ११११४) ८. शिक्षाशील के लक्षण जो सदा गुरुकुल में वास करता है, जो एकाग्र होता
अह अहिं ठाणे हिं, सिक्खासीले त्ति वच्चई। है, जो उपधान-तप करता है, जो प्रिय व्यवहार करता
अहस्सिरे सया दंते, न य मम्ममुदाहरे । है, जो प्रिय बोलता है वह शिक्षा प्राप्त कर सकता है। नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुए। ७. अयोग्य को वाचना देने से हानि
अकोहणे सच्चरए, सिक्खासीले त्ति वच्चई ।। आयरिए सुत्तम्मि य परिवाओ सुत्तअत्थपलिमंथो ।
(उ ११।४,५)
शिक्षाशील व्यक्ति के आठ लक्षणअन्नेसि पि य हाणी पुट्ठा वि न दुद्धया वंझा ॥
१. जो हास्य नहीं करता। २. जो सदा इन्द्रियों (विभा १४५७)
और मन पर नियंत्रण रखता है। ३. जो मर्म का प्रकाजो एक अर्थपद को भी यथार्थ रूप से ग्रहण नहीं कर
शन नहीं करता। ४. जो चरित्र से हीन नहीं है। पाता, ऐसे अयोग्य शिष्य को वाचना देने से आचार्य और
५. जिसका चरित्र दोषों से कलुषित नहीं है। ६. जो श्रुत का अवर्णवाद होता है। कोई कहता है-आचार्य
रसों में अतिलोलुप नहीं है । ७. जो क्रोध नहीं करता। कुशल नहीं है, उनमें प्रतिपादन की क्षमता नहीं है । कोई
८. जो सत्यनिष्ठ है। कहता है--श्रुतग्रंथ परिपूर्ण अथवा उपयुक्त नहीं है।
९. शिक्षा के बाधक तत्त्व उस शिष्य को वाचना देने में समय अधिक बीत अह पंचहि ठाणेहि, जेहिं सिक्खा न लब्भई। जाता है, इससे आचार्य सूत्र और अर्थ का परावर्तन नहीं थंभा कोहा पमाएणं, रोगेणाऽलस्सएण य ।। कर सकते, अन्य योग्य शिष्यों को पूर्ण वाचना नहीं दे
(उ ११२३) सकते । इस प्रकार सूत्र और अर्थ की परिहानि होती है। . अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य-इन
जैसे वन्ध्या गाय सस्नेह आस्फालन करने पर भी पांच हेतुओं से शिक्षा प्राप्त नहीं होती। दूध नहीं देती, वैसे ही मूढ शिष्य कुशल गुरु से एक शिष्य- अनुशासन में रहने वाला। अक्षर भी ग्रहण नहीं कर सकता। अयोग्य को वाचना देने
१. सुविनीत शिष्य कौन ? वाला क्लेश का अनुभव करता है और प्रायश्चित्त का
२. अनुशासन और शिष्य भामी होता है।
३. शिष्य का कर्तव्य थंमा व कोहा व मयप्पमाया .
४. आचार्य के समीप बैठने की विधि गुरुस्सगासे विणयं न सिक्खे । ५. आचार्य के साथ वार्तालाप की विधि सो चेव उ तस्स अभूइभावो
६. विनीत शिष्य की उपलब्धियां फलं व कीयस्स वहाय होइ ! ७. बिनीत शिष्य और अश्व
(द ९।१११) ८. अविनीत शिष्य कौन ? जो मुनि गर्व, क्रोध, माया या प्रमादवश गुरु के
९. अविनीत शिष्य का स्वभाव समीप विनय की शिक्षा नहीं लेता, वही विनय की | १०. अविनीत शिष्य : कुछ उपमाएं अशिक्षा उसके विनाश के लिए होती है। जैसे कीचक
| ११. अविनय का परिणाम (बांस) का फल उसके वध के लिए होता है।
* आचार्य की आशातना के परिणाम (द. आचार्य) पक्षाः पिपीलिकानां, फलानि तलकदलीवंशपत्राणाम ।
* विनीत शिष्य: शिक्षा की अर्हता (5. शिक्षा) ऐश्वर्यञ्चाविदुषामुत्पद्यन्ते विनाशाय ।। १. सुविनीत शिष्य कौन ?
(दअचू पृ २०६) अह पन्नरसहि ठाणेहि, सुविणीए त्ति वुच्चई । चींटियों के पर, ताड़, कदली और बांस के फल तथा नीयावत्ती अचवले, अमाई अकुऊहले ॥
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