________________
शिक्षा
६०६
कैसे सीखें?
शिक्षा- अध्ययन । अभ्यास ।
विमर्श-पुनः विचार-विमर्श करना। १. शिक्षा के प्रकार
प्रसंगपारायण-सुने हुए श्रुतप्रसंग का पारायण
करना। २. श्रवणविधि
परिनिष्ठा-तत्त्वनिरूपण में पारगामिता प्राप्त ३. शिक्षाग्रहण की विधि
करना। ४. कैसे सीखें ?
इस श्रवण-विधि से श्रुत की समीचीन प्राप्ति होती है। ५. श्रुत-अध्ययन के उद्देश्य
श्रुतग्रहण की प्रक्रिया ६. शिक्षा की अर्हता
(द्र. बुद्धि)
३. शिक्षाग्रहण की विधि __ * योग्य-अयोग्य श्रोता : मुद्गशैल आदि दृष्टांत
(द्र. परिषद)
सिक्खयमंतं नीयं हिययम्मि ठियं जियं दुयं एइ । ७. अयोग्य को वाचना वेने से हानि
संखियवण्णाइ मियं परिजियमेतुक्कमेणं पि ।। ८. शिक्षाशील के लक्षण
जह सिक्खियं सनामं तह तं पितहा ठियाइ नामसमं । ९. शिक्षा के बाधक तत्त्व
गुरुभणियघोसस रिसं गहियमुदत्तादओ ते य॥
(विभा ८५१, ८५२) १. शिक्षा के प्रकार
ग्रहण-विधि के सात सूत्रसिक्खा दुविहा, तं जहा-गहणसिक्खा आसेवणसिक्खा शिक्षित - सीख लेना, कण्ठस्थ कर लेना । य । गहणसिक्खा नाम सुत्तत्थाणं गहणं । आसेवणासिक्खा स्थित --अप्रच्युत बना लेना, हृदय में व्यवस्थित कर नाम जे तत्थ करणिज्जा जोगा तेसिं काएणं संफासणं, लेना। अकरणिज्जाण य वज्जणया। (दजिच पृ २०९) चित -- शीघ्र याद आ जाना। शिक्षा के दो प्रकार हैं
मित-वर्ण आदि का संख्या-परिमाण जान लेना। १. ग्रहण शिक्षा-सूत्र और अर्थ को ग्रहण करना। परिचित-उत्क्रम या प्रतिलोम पद्धति से दोहरा लेना। २. आसेवन शिक्षा-जो करणीय अनुष्ठान हैं, उनका नामसम--- अपने नाम के समान सदा स्मृति में अवस्थित काया से संस्पर्श करना- आचरण करना और रखना। जो अकरणीय हैं, उनका वर्जन करना ।
घोषसम-वाचनाचार्य द्वारा कृत उदात्त-अनुदात्त-स्वरित आसेवणसिक्खा जथा ओहसामायारीए पयविभाग- घोष के समान घोष ग्रहण करना। सामायारीए य वणितं । गहणसिक्खाइ सुयं जथा ४.कैसे सीखें? भगवता थलभद्दसामिणा गहितं अणिविण्णणं होतूण।
न विहीणक्खरमहियक्खरं च वोच्चत्थ रयणमाल व्व । (आव २ पृ १५७, १५८)
वाइद्धक्ख रमेवं वच्चासियवण्णविण्णासं ।। जो ओघ सामाचारी और पदविभाग सामाचारी में
न खलियमुवलहलं पिव, न मिलियमसरूव धण्णमेलो व्व । वणित है, वह आसेवन शिक्षा है । भगवान् स्थूलभद्रस्वामी
वोच्चत्थगंथमहवा अमिलियपय-वक्कविच्छेयं ।। ने अश्रांतभाव से (आचार्य भद्रबाहु से) जो श्रुत ग्रहण
न य विविहसत्थपल्लवविमिस्समट्ठाणच्छिन्नगहियं वा । किया, वह ग्रहण शिक्षा है ।
विच्चामेलिय कोलिय पायसमिव भेरिकंथ व्व ।। २. श्रवण-विधि
मत्ताइनिययमाणं
छंदसाहवऽत्थेणं । मूअं हुंकारं वा, बाढक्कार पडिपूच्छ वीमंसा।
नाकंखाइसदोसं
पुण्णमुदत्ताइघोसेहिं । तत्तो पसंगपारायणं परिणिट्र सत्तमए । कंठोडविप्पमुक्कं नाव्वत्तं बाल-मूयभणियं व ।
(नन्दी १२७।४)
गुरुवायणोवयातं न चोरियं पोत्थयाओ वा ।। श्रवण-विधि के सात अंग--
(विभा ८५३-८५७) मूक - मूक, मौन भाव से सुनना।।
सीखने के दस सूत्रहुंकार ---'हं' ऐसा कहकर स्वीकार करना ।
अहीनाक्षर-अक्षर हीन न हो । वाढंकार . ऐसा ही है अन्यथा नहीं है, ऐसे कहना। अनत्यक्षर-अक्षर अधिक न हो। प्रतिपृच्छा --प्रश्न करना ।
अव्याविद्धाक्षर ... जिसका वर्णविन्यास ग्रामीण अहीरन के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org