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पद
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व्याकरण
तद्धित
आकारंता माला, ईकारंता सिरी य लच्छी य तद्धितए अट्टविहे पण्णत्ते, तं जहा
ऊकाग्ता जंबू. बहू य अंता उ इत्थीणं ।। कम्मे सिप्प सिलोए, संजोग समीवओ य सजहे। अंकारंतं धन्नं, इंकारंतं नपुंसगं अच्छि । इस्सरिया वच्चेण य, तद्धितनामं तु अढविहं ॥ उंकारंत पील, महुं च अंता नपुंसाणं ।। (अनु ३५८)
(अनु २६४।२-६) तद्धित के आठ प्रकार
लिंग के तीन प्रकार१. कर्म--सौत्रिक, कासिक आदि ।
पूल्लिग-पुल्लिगवाची शब्दों के अन्त में आ ई ऊ २. शिल्प-तुन्नवाय, तन्तुवाय आदि ।
और ओ--ये चार प्रत्यय होते हैं । यथा ३. श्चोक - श्रमण, माहण आदि ।
राया, गिरी, विण्हू, दुमो। ४. संयोग--राजा का श्वसुर, राजा का दामाद स्त्रीलिंग - स्त्रीलिंग शब्दों के अन्त में ओकार को आदि ।
छोड़कर आ, ई, ऊ तीन प्रत्यय होते हैं। ५. समीप-गिरिनगर (गिरि के समीप का नगर)
यथा-माला, लच्छी, बहू । वैदिश (विदिशा के समीप का नगर) आदि ।
नपंसकलिंग-नपंसकलिंगवाची शब्दों के अन्त में ६. संयूथ -"तरंगवतीकार, मलयवतीकार आदि ।
अं इं और उं ये तीन प्रत्यय होते हैं। ७. ऐश्वर्य राजा, ईश्वर, कोटवाल आदि ।
यथा-धन्न, अच्छि, पीलं । ८. अपत्य --अपत्य के कारण होने वाला नाम --- ४. सन्धि अर्हत्माता, चक्रवर्तीमाता आदि।
चउनामे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा-आगमेणं लोवेणं यहां तद्धित शब्द के द्वारा तद्धित प्रत्यय के हेतुभूत द्धत शब्द कद्वारा तद्धित प्रत्यय क हदभूत पयईए विगारेणं ।
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(अनु २६५) अथं का ग्रहण करना चाहिए। तुन्नवाय, तंतुवाय जैसे
चतुर्नाम के चार प्रकार-- शब्दों में तद्धित का प्रत्यय नहीं है फिर भी उसका हेतु
आगम--शब्द में किसी वर्ण का आगमन । यथा भूत अर्थ यहां विद्यमान है इसलिए उन्हें तद्धित माना
पयांसि । (यहां पयस् शब्द में नुम् का आगम हुआ गया है।
इस व्याख्या के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि सूत्रकार द्वारा उदाहृत नामों में कुछ नाम तद्धित प्रत्यय
लोप - पदान्त में स्थित एकार और ओकार के आगे युक्त हैं और कुछ नाम तद्धित प्रत्ययों के अर्थ से युक्त
अकार का लोप हो जाता है। यथा-पटोऽत्र । हैं। तरंगवतीकार आदि नाम कृदन्त प्रत्यय वाले हैं प्रकृति-प्रकृति भाव संधि में द्विवचनान्त ईकारान्त, फिर भी उन्हें तद्धित नामों के साथ प्रस्तुत किया गया ऊकारान्त और एकारान्त शब्दों में संधि नहीं होती। है। इसका कारण चूर्णिकार द्वारा किया गया व्यापक वे अपनी प्रकृति में स्थित रहते हैं । यथा- अग्नी+ अर्थ है। (देखें-अणुओगदाराई ३५८ का टिप्पण) एतौ । ३. लिंग
विकार-विकार से होने वाला नाम । यथा -
मधु+उदकम् --- मधूदकम् । तत्थ पुरिसस्स अंता, आ ई ऊ ओ हवंति चत्तारि । ते चेव इत्थियाए, हवं ति ओकारपरिहीणा ॥ ५. पद अंति य इति य उ ति य , अंता उ नपंसगस्स बोद्धव्वा । पंचनामे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा ...नामिक, एएसि विण्हपि य, वोच्छामि निदसणे एत्तो।। नैपातिक, आख्यातिकं, औपसगिकं, मित्रम् । अश्व इति आकारंतो राया, ईकारंतो गिरी य सिहरी य। नामिकम । खल्विति नैपातिकम। धावतीत्याख्यातिकम् । ऊकारंतो विण्हू, दुमो ओअंतो उ पुरिसाणं ॥ परीत्यौपसर्गिकम । संयत इति मिश्रम् । (अनु २७०)
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