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व्याकरण
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व्युत्सर्ग
वा।
पंचनाम (पद) पांच प्रकार का है
इसलिए पवन है। १. नामिक -धातु, विभक्ति और वाक्य को छोड़कर २. नोगौण-गुणशून्य नाम । मुद्ग युक्त न होने पर कोई भी अर्थवान् शब्द नाम कहलाता है । यथा
भी पेटी का नाम समुद्ग है । इन्द्र की रक्षा अश्व ।
न करने पर भी एक कीट का नाम इन्द्रगोपक २. नैपातिक-अमुक-अमुक अर्थों को व्यक्त करने के लिए निश्चित किये गये वे पद, जो सब विभक्तियों ३. आदानपद-आदि पद से होने वाला नाम । और लिंगों में समान होते हैं । यथा-खलु, च, आवंती-आयारो का पांचवां अध्ययन ।
४. प्रतिपक्षपद-प्रतिपक्ष के आधार पर किया जाने ३. आख्यातिक -धातु के आगे प्रत्यय लगाकर जो वाला नाम । अशिवा (सियारिन) को शिवा रूप निष्पन्न किया जाता है। यथा-धावति ।
कहना। ४. औपसगिक-निपातसंज्ञक शब्दों के अन्तर्गत ५. प्रधान -जिन वस्तुओं की प्रधानता होती है
आए कुछ शब्द क्रिया के योग में उपसर्ग संज्ञा उसके आधार पर होने वाला नाम । अशोकवन । प्राप्त कर लेते हैं। यथा-प्र, परि आदि।
६. अनादिसिद्धान्त -अनादि सिद्धान्त से होने वाला ५. मिश्र-उपसर्ग, धातु, प्रत्यय आदि के योग से नाम । धर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय।। जो शब्दरूप बनते हैं । यथा-संयत ।
७ नाम-किसी पूर्वज के नाम के आधार पर होने पयमत्यवायगं जोयगं च ..... :(विमा १००३)
वाला नाम । नौ नंद, विक्रमादित्य ।
८. अवयव--अवयव के आधार पर होने वाला पद के दो प्रकार हैं
नाम । शृंग के आधार पर बारहसिंगा। १. अर्थवाचक-वक्षः, तिष्ठति आदि ।
९. संयोग-संयोग के आधार पर होने वाला २. द्योतक-प्र आदि, च आदि ।
नाम । हल से व्यवहार करने वाला हालिक । ६. नाम की परिभाषा
१०. प्रमाण-प्रमाण से होने वाला नाम। जं वत्थुणोऽभिहाणं पज्जवभेदाणुसारि तं णामं । व्युत्सर्ग-शरीर, कषाय आदि का विसर्जन । पतिभेतं यण्णमते पडिभेदं जाति जं भणितं ।
सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्ख न वावरे । दव्वं गुणं पज्जवं णामेति --आराधयति त्ति णाम ।
कायस्स विउस्सग्गो, छद्रो सो परिकित्तिओ। (अनुचू पृ ४१)
(उ ३०।३६) पर्यवभेदों के अनुसार वस्तु का जो अभिधान है, वह
सोने, बैठने या खड़े रहने के समय जो भिक्षु व्यापृत नाम है।
नहीं होता, उसके काया की चेष्टा का जो परित्याग जो प्रत्येक भेद का अनुगमन करता है, वह ताजसेव्यत्सर्ग कट जाता है। वह आध्यान्तर तप नाम है।
का छठा प्रकार है।
(द्र. तप) जो द्रव्य, गुण और पर्याय का--प्रसाधन-प्रतिपादन
व्युत्सर्ग के प्रकार करता है, वह नाम है ।
दव्वविउस्सग्गो गणउवधिसरीरभत्तपाणाण विउप्रकार
स्सग्गो, जो वा धम्माणुढाणपवत्तो काउस्सग्गादिट्टितो दसनामे दसविहे पण्णत्ते, तं जहा--१. गोण्णे २.। अट्टवसट्टो तस्सवि दव्वविउस्सग्गो, अणुवउत्तो वा। भावनोगोणे ३. आयाणपएणं ४. पडिवक्खपएणं ५. पाहण्ण- विउस्सग्गो मिच्छत्तअन्नाणअविरतीणं, अहवा कसायसंसारयाए ६ अणाइसिद्धतेणं ७. नामेणं ८. अवयवेणं ९. कम्माण वा विउस्सग्गो। (आवच १५६१६) संजोगेणं १० पमाणेणं ।
(अनु ३१९) द्रव्यव्युत्सर्ग: आर्तध्यानादिध्यायिनः कायोत्सर्गः । नाम के दश प्रकार--
भावव्युत्सर्गस्त्वज्ञानादिपरित्याग: अथवा धर्मशुक्लध्या१. गौण —गुणनिष्पन्न नाम । पावन करता है यिनः कायोत्सर्गः । (आवहाव १ पृ ३२५)
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