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विनय
विनय की निष्पत्ति
इसी प्रकार काम और भय के निमित्त भी इन छह अब्भद्राणं अंजलि आसणदाणं अभिग्गह किती य । प्रकारों मे विनय किया जाता है।
सुस्सूसण मणुगच्छण संसाधण काय अट्ठविहो । (धन के लिए राजा आदि के पास रहना, उनके हित मित अफरुसभासी अणुवीतिभासि वायियो विणओ। अभिप्राय को समझना, अपेक्षा होने पर धन आदि से अकुसलमणोनिरोहो कुसलमणउदीरणा चेव ॥ उनका सहयोग करना अर्थविनय है। काम के निमित्त
(दनि २२१-२२३) स्त्री आदि के पास रहना, मधुर वचनों से उसे आश्वस्त प्रतिरूपयोगविनय के तीन प्रकार हैंकरना, वस्त्र आदि देना कामविनय है। दास, भूतक १. कायिक विनय-अभ्युत्थान, अञ्जलिकरण, आसनआदि भय से अपने स्वामी के पास रहते हैं, उनकी आज्ञा दान, अभिग्रह, कृतिकर्म, शुश्रूषा, अनुगमन और का अनुवर्तन करते हैं...-यह भयविनय है। देखें-दजिच संसाधन (पहुंचाने जाना)। पृ २९५,२९६)
२. वाचिक विनय-हित, मित, अपरुष और विमर्श६. मोक्ष विनय
पूर्वक बोलना ।
३. मानसिक विनय-अकुशल मन का निरोध और दंसण नाण चरिते तवे य तह ओवयारिए चेव । एसो उ मोक्खविणयो पंचविहो होइ णायव्यो ।।
कुशल मन का प्रवर्तन । दव्वाण सव्वभावा उवदिट्रा जे जहा जिणवरेहिं ।
पडिरूवो खलु विणयो पराणवत्तीपरो मुणेयब्वो । ते तह सद्दहति णरो दंसणविणयो भवति तम्हा ।।
अप्पडिरूवो विणयो णायव्वो केवलीणं त्॥ नाणं सिक्खति नाणं गुणे ति णाणेण कुणति किच्चाणि।
(दनि २२४) नाणी ण ण बंधति नाणविणीयो भवति तम्हा ॥
छद्मस्थ के प्रतिरूपविनय होता है, क्योंकि वे अट्ठविधं कम्मचयं जम्हा रित्तं करेति जयमाणो।
परानुवृत्तिपरायण होते हैं। केवली के अप्रतिरूपविनय
होता है। णवमण्णं च ण बंधति चरित्तविणयो भवति तम्हा ।। अवणेति तवेण तम उवणेति य मोक्खमग्गमप्पाणं । अनाशातनाविनय तवणियमणिच्छितमती तवोविणयो भवति तम्हा ।। तित्थकर सिद्ध कूल गण संघ किरिय धम्म नाण नाणीणं । अध ओवगारिओ पूण दुविधो विणओ समासतो होति। आयरिय थेरुवज्झाय गणीणं तेरस पदाणि ॥ पडिरूवजोगजंजणओऽणच्चासातणाविणओ ॥ अणसातणा य भत्ती बहमाणो तह य वण्णसंजलणा ।
__ (दनि २१५-२२०) तित्थगरादी तेरस चतुग्गुणा होंति बावण्णा ।। मोक्षविनय के पांच प्रकार हैं
(दनि २२६-२२७) १. दर्शनविनय-जिनप्रवचन में श्रद्धा ।
अनाशातनाविनय के बावन प्रकार हैं२. ज्ञानविनय-ज्ञानपदों को सीखना, उनका अभ्यास अनाशातना, भक्ति, बहुमान और वर्ण-संज्वलनकरना, नये कर्मों का बंध न करना।
इन चार प्रकारों से अर्हतों का विनय होता है। इसी ३. चारित्रविनय-अष्टविध कर्मोपचय से रिक्त होना प्रकार सिद्ध, कुल, गण, संघ, क्रियावाद, धर्म, ज्ञान, तथा नये कर्मों का बंध न करना ।
ज्ञानी, आचार्य, स्थविर, उपाध्याय एवं गणी-इन तेरह ४. तपविनय--अनशन आदि बारह प्रकार के तप से के साथ अनाशातना, भक्ति, बहमान और वर्ण संज्वलनअज्ञान आदि रूप तम को क्षीण कर मोक्ष के निकट इन चारों का गुणन करने पर बावन प्रकार बनते हैं। पहुंचना।
६. विनय की निष्पत्ति ५. उपचारविनय-गुरु आदि का सत्कार-बहुमान करना।
विणओ सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे । उपचारविनय के दो प्रकार हैं-१. प्रतिरूपयोग
विणयाउ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो कोतवो।। विनय २. अनाशातनाविनय ।
(आवनि १२१६) प्रतिरूपयोगविनय
विनय शासन (द्वादशाङ्ग) का मूल है। विनीत पडिरूवो खलु विणयो कायियजोगे य वाय माणसिओ। संयत होता है। जो विनय से शून्य है, उसके कहां धर्म अट्ठ चउव्विह दुविहो परूवणा तस्सिमा होति ॥ और कहां तप ?
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