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विनय के अन्य प्रकार
चरितविणतो एवं छेदोवट्टावणियचरित्त विणतो परिहारविसुद्धिगचरितविणतो सुहुमसंपरागचरित्तविणतो अधक्खायचरितविणतो । एतेसि पंचहं चरित्ताणं को विणतो ? भण्णति - पंचविधस्स वि चरित्तस्स जा सद्दहणता सद्दहियस्स य कारण फासणया विहिणा य परूवणया एस चरित्तविणयो । ( दअचू पृ १५ )
चारित्र विनय के पांच प्रकार हैं १. सामायिकचारित्रविनय । २. छेदोपस्थापनीयचारित्र विनय ।
३. परिहारविशुद्धिचारित्रविनय ।
४. सूक्ष्म सम्पराय चारित्रविनय । ५. यथाख्यातचारित्र विनय ।
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प्रश्न होता है कि चारित्र का कैसा विनय ? समाधान में कहा है - चारित्र के प्रति सम्यक् श्रद्धा, उसकी सम्यक् अनुपालना और उसकी विधिपूर्वक प्ररूपणा - यही चारित्र का विनय है । मन-वचन विनय
मणविणयो-आयरियादिसु अकुसल मणवज्जणं कुसलमणउदीरणं च । एवं वायाविणओ वि ।
( अचू पृ १५ ) आचार्य, उपाध्याय आदि के प्रति अकुशल मन ( दुश्चिन्तन) का वर्जन और उनके प्रति कुशल मन का प्रवर्तन ( आदरास्पद भावधारा) मन विनय है आचार्य आदि के प्रति अकुशल वचन का वर्जन एवं कुशल वचन का प्रयोग करना वचन विनय है । काय विनय
कायविणतो तेसि चेवाऽऽयरियादीणं अद्धाणवायणातिपरिसंताणं सीसादारब्भ जाव पादतला पयत्तेण विस्सामणं । ( अचू पृ १५ )
आचार्य आदि जब गमनागमन अथवा वाचना देने से परिश्रान्त हो जाएं तो उन्हें सिर से पैर तक चांपना कार्याविनय है ।
औपचारिक विनय
ओवयारियविणतो सत्तविहो, तं जहा -सदा आयरियाण अब्भा से अच्छणं, छंदाणुवत्तणं, कारियनिमित्तकरणं, कतपडिकतिता, दुक्खस्स गवेसणं, देसकालण्णुया, सत्सु अणुलोमया । ( अचू पृ १५ ) लोकोपचार विनय के सात प्रकार हैं१. अभ्यासवृत्तिता - सदा आचार्य के समीप रहना ।
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विनय
२. छन्दानुवृत्तिता - आचार्य के अभिप्राय का अनुवर्तन
करना ।
३. कार्यनिमित्तकरण कार्य की सिद्धि के लिए अनुकूल वर्तन करना, आचार्य में चैतसिक प्रसन्नता उत्पन्न करना ।
४. कृतप्रतिक्रिया -- कृत उपकार के प्रति अनुकूल वर्तन
करना ।
५. दुःख की गवेषणा -- आर्त की गवेषणा करना ।
६. देशकालज्ञता - देश और काल को समझना ।
७. सर्वार्थ- अनुलोमता - सब प्रकार के प्रयोजनों की सिद्धि के लिए अनुकूल वर्तन करना ।
४. विनय के अन्य प्रकार
fare दुविहे गहणविणए, आसेवणाविणए । ( जिचू पृ ३०१ )
विनय के दो प्रकार हैं
१. ग्रहण विनय ज्ञानात्मक विनय । २. आसेवनाविनय क्रियात्मक विनय । लोगोवयारविणयो अत्यणिमित्तं च कामहेउं च । refore मोक्खविणयो विणयो खलु पंचहा होइ || ( दनि २११ )
विनय ( अनुवर्तन) के पांच प्रकार हैं१. लोकोपचार विनय - अनुशासन, शुश्रूषा और शिष्टा
चार पालन ।
२. अर्थविनय - अर्थ के लिए अनुवर्तन करना । ३. कामविनय - काम के लिए अनुवर्तन करना । ४. भयविनय -- भय के लिए अनुवर्तन करना । ५. मोक्षविनय - मोक्ष के लिए अनुवर्तन करना ।
अभुट्ठाणं अंजलि आसणदाणं च अतिधिपूया य । लोगोवयारविणयो देवतपूया य विभवेणं ॥ अब्भासवित्ति छदाणुवत्तणं देस- कालदाणं च । अब्भुट्ठाणं अंजलि आसणदाणं च अत्थकते || एमेव कामविणयो भवे य णेयव्वो आणुपुव्वीए ।... (दनि २१२-२१४) लोकोपचार विनय पांच प्रकार से किया जाता है१. अभ्युत्थान २. अञ्जलिकरण ३. आसनदान ४. अतिथिपूजा और ५. देवपूजा ।
अर्थ की प्राप्ति के लिए छह प्रकार से विनय किया जाता है - - १. अभ्यासवृत्तिता २. छन्दानुवर्तन ३. देशकालदान ४. अभ्युत्थान ५. अञ्जलिकरण ६. आसनदान ।
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