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ज्ञान-क्रियावाद
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नास्तिकवादी, नास्तिकप्रज्ञ, नास्तिकदृष्टि कहा गया है । देखें सूयगडो १।१२।१ का टिप्पण ) ३. विनयवाद
वैनयिकवादिनो नाम येषां सुरासुरनृपतपस्विकरितुरगहरिण - गोमहिष्यजाविकश्व शृगालजलचरकपोतकाकोलूकचकप्रभृतिभ्यो नमस्कारकरणात् क्लेशनाशोऽभिप्रेतो विनयाच्छु यो भवति नान्यथेत्यध्यवसिताः । ( उशावृ प ४४४ )
जो विनय से ही मुक्ति मानते हैं, वे विनयवादी हैं । उनकी मान्यता है कि देव, दानव, राजा, तपस्वी, हाथी, घोड़ा, हरिण, गाय, भैंस, शृगाल आदि को नमस्कार करने से क्लेश का नाश होता है । विनय से कल्याण होता है, अन्यथा नहीं ।
(विनयवाद का मूल आधार है- विनय । विनयवादियों का अभिमत है कि सबके प्रति विनम्र होना चाहिए । विनयवादियों के बत्तीस प्रकार निर्दिष्ट हैंदेवता, राजा, यति, ज्ञाति, स्थविर, कृपण, माता, पिता-इन आठों का मन से, वचन से, काया से और दान से विनय करना । देखें – सूयगडो १।१२।१ का टिप्पण) ४. अज्ञानवाद
अज्ञानवादिनस्त्वाहु:-अपवर्गं
प्रत्यनुपयोगित्वात् ज्ञानस्य । केवलं कष्टं तप एवानुष्ठेयं, न हि कष्टं विनेष्ट सिद्धिः । ( उशावृ प ४४४ )
जो अज्ञान से ही सिद्धि मानते हैं, वे अज्ञानवादी हैं । उनकी दृष्टि में ज्ञान स्वर्ग की प्राप्ति में अनुपयोगी और अकिंचित्कर है। केवल कष्टप्रद तप का ही अनुष्ठान करना चाहिए। कष्ट के बिना इष्टसिद्धि नहीं होती ।
( अज्ञानवाद का आधार है -अज्ञान । अज्ञानवाद में दो प्रकार की विचारधाराएं संकलित । कुछ अज्ञानवादी आत्मा के होने में संदेह करते हैं। उनका मत है, आत्मा है तो भी उसे जानने से क्या लाभ ? दूसरी विचारधारा के अनुसार ज्ञान सब समस्याओं का मूल है, अत: अज्ञान ही श्रेयस्कर है । देखें - सूयगडो १।१२।१ का टिप्पण)
क्रियावाद के १८०, अक्रियावाद के ८४, अज्ञानवाद के ६७ तथा विनययवाद के ३२ - इस प्रकार प्रावादुकों के ३६३ भेद हैं । (देखें - नन्दीहावृ पृ ७७-७९)
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५. ज्ञानवाद
इहमेगे उ मन्नन्ति, अप्पच्चक्खाय पावगं । आयरियं विदित्ताणं सव्वदुक्खा विमुच्चई ॥ भणंता अकरेन्ता य, बंधमोक्खपइण्णिणो । वायावी रियमेत्तेण, समासासेन्ति अप्पयं ॥ न चित्ता तायए भासा, कओ विज्जाणुसासणं ? विसन्ना पावकम्मेहि, बाला पंडियमाणिणो ॥
वाद
इस संसार में कुछ लोग ऐसा मानते त्याग किए बिना ही आचार को जानने सब दुःखों से मुक्त हो जाता है ।
'ज्ञान से ही मोक्ष होता है' जो ऐसा कहते हैं, पर उसके लिए कोई क्रिया नहीं करते, वे केवल बन्ध और मोक्ष के सिद्धान्त की स्थापना करने वाले हैं, केवल वाणी की वीरता से अपने आपको आश्वासन देने वाले हैं ।
पढमं नाणं तओ दया, एवं अन्नाणी कि काही, किंवा
विविध भाषाएं त्राण नहीं होतीं। विद्या का अनुशासन भी कहां त्राण देता है ? (जो इनको त्राण मानते हैं, वे ) अपने आपको पंडित मानने वाले अज्ञानी मनुष्य प्रायः कर्मों द्वारा विषाद को प्राप्त हो रहे हैं । ६. ज्ञान-क्रियावाद
( उ ६ ८-१० ) हैं कि पापों का मात्र से जीव
पहले ज्ञान फिर दया - इस प्रकार सब मुनि स्थित होते हैं। अज्ञानी क्या करेगा ? वह क्या जानेगा क्या श्रेय है और क्या अश्रेय ?
हयं नाणं कियाहीणं, पासंतो पंगुलो दड्ढो,
चिट्ठइ सव्वसंजए । छेय - पावगं ॥
नाहिइ
(द ४|१० )
जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी न हु चंदणस्स । एवं खु नाणी चरणेण हीणो,
नाणस्स भागी न हु सोग्गईए ॥ हया अन्नाणओ किया ॥ धावमाणो य अंधओ ॥
( आवनि १००, १०१ ) चन्दन का भार ढोने वाला गधा केवल भार का भागी होता है, चन्दन की सुगन्ध का नहीं । उसी प्रकार चरित्रहीन ज्ञानी केवल जान लेता है, सद्गति को प्राप्त नहीं कर सकता ।
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आचारहीन ज्ञान पंगु है और ज्ञानहीन आचार अंधा है। पंगु आग को देखता हुआ भी जल जाता है।
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