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वाद
वण-रस-गंध-फरसाण होंति वीसं समासभेएणं । गुरुलहु-अगुरुलहूणं बायर - सुहुमाण दो वग्गा ॥ (विभा ६५१-६५३)
एक गुण (वर्ण, गंध, रस, स्पर्श) वाले परमाणुओं और स्कंधों की एक वर्गणा होती है। एक-एक गुण की वृद्धि होने पर संख्येय गुण वाले द्रव्यों की संख्येय वर्गणाएं, असंख्येय गुण वाले द्रव्यों की असंख्येय वर्गणाएं और अनन्त गुण वाले द्रव्यों की अनन्त वर्गणाएं होती हैं ।
संक्षेप में भाव वर्गणा के बीस प्रकार हैं- पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श – इनमें से प्रत्येक की एक गुण वाले द्रव्य की एक वर्गणा यावत् अनन्त गुण वाले द्रव्यों की अनन्त वर्गणाएं हैं ।
गुरुलघुपर्याय वाले स्थूलपरिणामी द्रव्यों की एक वर्गणा है । अगुरुलघु पर्याय वाले सूक्ष्मपरिणामी द्रव्यों की एक वर्गणा है । इस प्रकार इन दो वर्गों में संपूर्ण पुद्गला - स्तिकाय का समावेश हो जाता है ।
वर्धमान - अवधिज्ञान का एक प्रकार जो उत्पत्तिकाल से क्रमशः बढ़ता जाता है । वस्त्र - कपास आदि के तंतुओं से निर्मित पट । ( द्र. सूत्र ) वाचना-पढ़ाना, सूत्र व अर्थ प्रदान करना । स्वाध्याय का एक भेद । ( द्र. स्वाध्याय) वाचनाचार्य -वाचना देने वाले आचार्य या ( द्र आचार्य)
उपाध्याय । वाद-मत, दर्शन ।
१. क्रियावाद २. अक्रियावाद
विनयवाद
३. ४. अज्ञानवाद
५. ज्ञानवाद
६. ज्ञान-क्रियावाद
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अंध और पंगु का दृष्टान्त
मार्गज्ञ, नर्तकी और तैराक का दृष्टान्त
कूर्म का दृष्टान्त
० दीपक का दृष्टान्त
१. क्रियावाद -
क्रियां - अस्ति जीव इत्यादिरूपां सदनुष्ठानात्मिकां ( उशावृ प ४४७)
वा ।
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अक्रियावाद
क्रियावाद का अर्थ है - आत्मा के अस्तित्व का स्वीकरण और सत् अनुष्ठान का आचरण ।
क्रियावादिनो नाम येषामात्मनोऽस्तित्वं प्रत्यविप्रतिपत्तिः, किन्तु स विभुरविभुः कर्त्ताऽकर्त्ता क्रियावानितरो मूर्तिमानमूर्तिरित्येवमाद्याग्रहोपहृत प्रीतयस्ते ।
( उशावू प ४४३ ) क्रियावादी आत्मा का अस्तित्व मानते हैं । किन्तु वह व्यापक है या अव्यापक, कर्त्ता है या अकर्त्ता, क्रियावान् है या अक्रियावान्, मूर्त है या अमूर्त – इसमें उन्हें विप्रतिपत्ति रहती
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( क्रियावादी जीव का अस्तित्व मानते हैं । उसका अस्तित्व मानने पर भी वे उसके विषय में एकमत नहीं हैं । कुछ जीव को सर्वव्यापी मानते हैं, कुछ उसे अ-सर्वव्यापी मानते हैं । कुछ मूर्त मानते हैं, कुछ अमूर्त्त । कुछ उसे अंगुष्ठ जितना मानते हैं और कुछ श्यामाक तंदुल जितना । क्रियावाद के चार फलित होते हैं - १. आस्तिकवाद २. सम्यग्वाद ३. पुनर्जन्मवाद ४. कर्मवाद । देखें सूयगडो १।१२।१ का टिप्पण ) २. अक्रियावाद
ये पुनरिहाक्रियावादिनस्तेषामात्मैव नास्ति, न चावक्तव्यः शरीरेण सहैकत्वान्यत्वे प्रति, उत्पत्त्यनन्तरप्रलयस्वभावको वा तस्मिन्ननिणिक्ते च कर्तृत्वादिविशेषमूढा एव । अक्रियां नास्त्यात्मेत्यादिकां मिथ्यादृक्परिकल्पिततत्तदनुष्ठानरूपां वा ।
( उशावृ प ४४३, ४४७)
जो आत्मा के अस्तित्व को नहीं मानते वे अक्रियावादी हैं । कई अक्रियावादी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं परन्तु " आत्मा का शरीर के साथ एकत्व है या अन्यत्व - यह नहीं कहा जा सकता" - ऐसा मानते हैं। कई अक्रियावादी आत्मा की उत्पत्ति के अनन्तर ही उसका प्रलय मानते हैं ।
अक्रियावाद का एक अर्थ है - मिध्यादृष्टि द्वारा परिकल्पित अनुष्ठान
( नास्ति के आधार पर अक्रियावाद की व्याख्या के चार फलित हैं - १. आत्मा का अस्वीकार । २. आत्मा के कर्तृत्व का अस्वीकार । ३. कर्म का अस्वीकार । ४. पुनर्जन्म का अस्वीकार । अक्रयावादी को
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