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महाव्रत
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मृषावाद का स्वरूप
साधु-मर्यादा का अतिक्रमण कर प्राणों का अतिपात मुसावाओ य लोगम्मि, सव्वसाहहिं गरहिओ। करना प्राणातिपात है।
अविस्सासो य भूयाणं, तम्हा मोसं विवज्जए । प्राणाः-इन्द्रियादयः तेषामतिपातः प्राणातिपात:--
(द ६।१२) जीवस्य महादुःखोत्पादनं, न तु जीवातिपात एव ।
इस समूचे लोक में मृषावाद सब साधुओं द्वारा
गहित है और वह प्राणियों के लिए अविश्वसनीय है।
(दहावृ प १४४) केवल जीवों को मारना ही अतिपात नहीं है, उनको
अत: निर्ग्रन्थ असत्य न बोले । किसी प्रकार का कष्ट देना भी प्राणातिपात है। ८. सत्य महाव्रत की भावना हिंसा के द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाव
दोच्चे महव्वते मुसावायाओ वेरमणं, तस्स खलु पाणातिपाते चतुम्विहे, तं जहा -दव्वतो खेत्ततो
इमाओ पंच भावणाओ"हासं परियाण ति से निग्गंथे". कालतो भावतो। दव्वतो छस् जीवनिकाएस, खेत्ततो
अणुवीइभासए""क्रोधं परियाणति""लोभं परियाणति.. सव्वलोगे, कालतो दिया वा राओ वा, भावतो रागेण वा ।
भयं परियाणति'..।
(आवच २ पृ १४४) दोसेण वा ।
सत्य महाव्रत की पांच भावनाएं(दअचू पृ८०)
१. हास्य विवेक। प्राणातिपात के चार प्रकार
२. विमर्शपूर्वक बोलना। द्रव्यत:-छह जीवनिकाय ।
३. क्रोध विवेक। क्षेत्रतः-समूचा लोक ।
४. लोभ विवेक। कालतः-दिन-रात ।
५. भय विवेक। भावतः-राग-द्वेष ।
६. मृषावाद का स्वरूप ७. सत्य महाव्रत
मुसावातो नाम असच्चवयणं । साधणमधितं तमसच्चं दोच्चे भंते ! महव्वए मूसावायाओ वेरमणं । सत्तऽहियं असच्चति वयणाओ। किंच अहितं ? जं
सव्वं भंते ! मुसावायं पच्चक्खामि-से कोहा वा लोहा साधुमेरातिक्कमणंति । वा भया वा हासा वा, नेव सयं मुसं वएज्जा नेवन्नेहि मुसं मृषावाद का अर्थ है-असत्य वचन । साधु के लिए वायावेज्जा मुसं वयंते वि अन्ने न समणजाणेज्जा जाव- जो अहितकर है, वह असत्य है । साधु की मर्यादा का ज्जीवाए तिविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि अतिक्रमण ही अहित है। न कारवेमि करतं पि अन्नं न समण जाणामि ।
मुसावाते चउविहे, तं जहा-दव्वतो सव्वदव्वेसु, (द ४ सूत्र १२)
खेत्ततो लोगे वा अलोगे वा, कालतो दिया वा रातो वा,
भावतो कोहेण वा लोभेण वा भतेण वा हासेण वा । भन्ते ! दूसरे महाव्रत में मृषावाद की विरति होती
(दअचू पृ ८२)
मृषावाद के चार प्रकारभन्ते ! मैं सर्व मृषावाद का प्रत्याख्यान करता हैं।
द्रव्यत:-सब द्रव्य । क्रोध से या लोभ से, भय से या हंसी से, मैं स्वयं
क्षेत्रत:--लोक और अलोक । असत्य नहीं बोलूंगा, दूसरों से असत्य नहीं बुलवाऊंगा
कालत:-दिन-रात । और असत्य बोलने वालों का अनुमोदन भी नहीं करूंगा,
भावत:-क्रोध, लोभ, भय और हास्य । यावज्जीवन के लिए, तीन करण तीन योग से-मन से,
मृषावाद के छह कारण वचन से, काया से न करूंगा, न कराऊंगा और करने
क्रोधाद्वा त्वं दास इत्यादि । मानाद्वा अबहुश्रुत एवाहं वाले का अनुमोदन भी नहीं करूंगा।
बहश्रत इत्यादि। मायातो भिक्षाटनपरिजिहीर्षया पादसच्चं-अणुवघायगं परस्स वयणं । (दअचू पृ ११) पीडा ममेत्यादि । लोभाच्छोभनतरानलाभे सति प्रान्तस्यजो वचन दूसरे का उपघात नहीं करता, वह सत्य है। षणीयत्वेऽप्यनेषणीयमिदमित्यादि। यदि वा 'भयात्'
__ (आवचू २ पृ ९३)
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