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मरण : काल, अंतर आदि
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मरण
(ख) शिथिल संयमी पंडित
एव च प्रशस्तमरणभावादाद व्यवधानमवि देवभवैरा१. जहां दो मरण की एक समय में विवक्षा है, वहां श्रीयते ।
(उनि २३० शावृ प २३९) अवधि और आत्यन्तिक में से एक और किसी अप्रशस्त मरण पंचेन्द्रिय अविरत और देशविरत कारणवश वैहायस और गद्धपृष्ठ में से एक हो जीवों के संख्यात बार तथा पृथ्वी, पानी, अग्नि, वायु, सकता है।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय-इन जीवों के २. कथंचिद शल्य-मरण होने से तीन भी हो जाते हैं। असंख्यात बार और वनस्पति जीवों के अनंत बार हो ३. जहां वलन्मरण होता है, वहां एक साथ चार हो सकता है। इन जीवों की कायस्थिति क्रमश: बहु, बहुतर जाते हैं।
और बहतम होती है। इस कायस्थिति की अपेक्षा से ही ४. छद्मस्थ-मरण की जहां विवक्षा होती है वहां एक यह प्रतिपादन हआ है। प्रशस्त मरण (पंडित मरण) सर्वसाथ पांच मरण हो जाते हैं।
विरत के होता है और वह सात-आठ बार हो सकता है। भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी और प्रायोपगमनमरण चारित्र की प्राप्ति निरंतर नहीं होती, अतः इसमें देवभव विशुद्ध संयम वाले पंडितों के ही होता है। दोनों प्रकार का व्यवधान रहता है। केवलीमरण एक बार ही होता है। के पंडित-मरण की विवक्षा में तदभव-मरण नहीं लिया
६. मरण : काल, अंतर आदि गया है क्योंकि वे देवगति में ही उत्पन्न होते हैं।
मरणे अणंतभागो इक्किक्के मरइ आइमं मोत्तुं । बाल-पंडित की अपेक्षा
अणुसमयाई नेयं पढमचरिमंतरं नस्थि ।। १. जहां दो मरण की एक समय में विवक्षा है, वहां सेसाणं मरणाणं नेओ संतरनिरंतरो उ गमो।
अवधि और आत्यन्तिक में से कोई एक और बाल- साई सपज्जवसिया सेसा पढमिल्लुगमणाइ ॥ पंडितमरण ।
तथा च वृद्धा:-"बालमरणाणि अणाइयाणि वा २. तद्भव-मरण साथ होने से तीन मरण ।
अपज्जवसियाणि वा, अणादियाणि वा सपज्जवसियाणि, ३. वशात-मरण साथ होने से चार मरण ।
पंडियमरणाणि पुण साइयाणि सपज्जवसियाणि' मुक्त्य४. वैहायस अथवा गृद्धपृष्ठ साथ होने से पांच । वाप्तौ तदुच्छित्तिसम्भवादिति भावः। प्रथमकम्-आवीचि
(उशाव प २३७,२३८) मरणम् आदिरहितं प्रवाहापेक्षयेतिभावः, प्रतिनियतायु:५. मरण कितनी बार ?
पुद्गलापेक्षया तु साद्यपि सम्भवति, उपलक्षणत्वाच्चास्याबालाणं अकामं तु मरणं असई भवे ।
पर्यवसितं च अभव्यानां, भव्यानां पूनः सपर्यवसितमपि । पंडियाणं सकामं तु उक्कोसेण सइं भवे ।।
(उनि २३१, २३२ शावृ प २४०) (५३) (उ ॥३)
आवीचिमरण सिद्धों के अतिरिक्त सब जीवों के बाल जीवों के अकाम मरण बार-बार होता है।
भी होता है। सिद्ध अनंत हैं, इसलिए आवीचिमरण के स्वामी
ह पंडितों (केवलियों) के सकाम मरण उत्कृष्टत: एक बार
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सब ज
सब जीवों से अनंत भाग न्यून हैं। होता है।
शेष प्रत्येक मरण के स्वामी सब जीवों की अपेक्षा संखमसंखमणता कमो उ इक्किक्कगमि अपसत्थे।
अनंत भाग ही हैं। सत्तट्टग अणबंधो पसत्थए केवलिंमि सइं।। समय-आवीचिमरण जीवनपर्यंत अनुसमय-सतत होता सामान्येन पञ्चेन्द्रियाविरतदेशविरतौ च सङ्खचाता:,
है, शेष मरण आयु के अंतिम समय में ही होते हैं। शेषाः पृथिव्युदकाग्निवायद्वीन्द्रियत्रीन्द्रियचतुरिन्द्रियाः अंतर-आवीचिमरण निरंतर होता है, अत: वह सांतर/ असंख्याताः, वनस्पतयोऽनन्ता, एते हि कायस्थित्यपेक्षया व्यवहित नहीं है। केवलीमरण चरमशरीरी के होता यथाक्रमं बहुबहुतरबहुतमस्थितिभाज इति कृत्वा । प्रशस्ते
है, वह अंतिम मरण है, उसका पुनः मरण नहीं कति वारा म्रियत इत्याह"सप्त वा अष्ट वा वारा
होता, अतः केवली मरण भी सांतर नहीं है। म्रियते, क्व? प्रशस्तके सर्वविरतिसम्बन्धिनि पण्डित- शेष अवधि आदि पन्द्रह मरण सांतर और निरंतरमरणे, इह च चारित्रस्य निरन्तरमवाप्त्यसम्भवात् तद्वत दोनों प्रकार के हो सकते हैं।
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