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मरण
किसी कारणवश किए जाने वाले ये दो प्रकार के मरण- गूढपृष्ठमरण तथा वैहायसमरणमुनि के लिए अनुज्ञात हैं ।
हाथी, ऊंट आदि वृहदकाय पशुओं के कलेवर में प्रविष्ट होने पर उस कलेवर के साथ-साथ उस जीवित शरीर को भी गीध, चील, श्रृंगाल आदि जानवर नोंचकर मार डालते हैं। उस समय वह अनुप्रविष्ट जीवित मनुष्य उनको निवारित नहीं करता । गृद्धपृष्ठ का अर्थ है - गीध आदि के द्वारा खाये जाने वाले शरीर के पीठ, उदर आदि अवयव । इस प्रकार का मरण अत्यन्त साहसी और सत्त्वशाली व्यक्ति ही स्वीकार कर सकता है, सामान्य व्यक्ति नहीं। यह कर्मनिर्जरा का एक प्रधान साधन है ।
गले में रस्सी बांधकर वृक्ष की शाखा पर लटकने, पर्वत से गिरने, प्रपात से झंपा लेने से होने वाले मरण को वैहायसमरण कहा जाता है।
ये दोनों प्रकार के मरण दर्शन आदि की मलिनता के प्रसंग उपस्थित होने पर अथवा ऐसे ही किसी कारणवश तीर्थंकरों तथा गणधरों द्वारा अनुज्ञात हैं। उदायी राजा के मरण का अनुसरण कर एक आचार्य ने इन दोनों में से किसी एक मरण को स्वीकार किया था ।
( आवारी ६५८ में ब्रह्मचर्य की सुरक्षा के लिए मुनि को वैहायसमृत्यु के प्रयोग की स्वीकृति दी गई है। ठाणं २०४१३ में शीलरक्षा आदि प्रयोजन होने पर मुनि के लिए दो प्रकार के मरण अनुमत हैं - वैहायसमरण तथा गृद्धस्पृष्टमरण | देखें - आचारांगभाष्यम् पृ. ३७८,३७९ ।) गृधपृष्ठस्य वैहासिकेऽन्तर्भावः केवलमल्पसरध्यवसातुमशक्तास्थापनार्थमस्य भेदेनोपन्यासः ।
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( उणावुप २३४)
गृधपृष्ठमरण का वैहायसमरण में अन्तर्भाव हो जाता है। अल्प शक्ति वाले व्यक्ति इसे स्वीकार करने में असमर्थ होते हैं, इसलिए इसका पृथक् ग्रहण किया गया है ।
३. प्रशस्त मरण
एतपसत्था तिणि इत्थ मरणा जिणेहि पण्णत्ता । मतपरिण्णा इंगिणी पाउवगमणं च कमजिट्ठे ।। ( उनि २३४)
तीन मरण एकांत प्रशस्त हैं
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एक साथ कितने मरण ?
भक्तपरिज्ञा, इंगिनी और प्रायोपगमन ये तीनों मरण उत्तरोत्तर उत्कृष्ट हैं । (द्र. अनशन)
४. एक साथ कितने मरण ?
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दुन्नि व तिन्निव चत्तारि पंच मरणाइ अवीइमरणमि । कइ मरइ एगसमयं सि विभासावित्यरं जाने ॥
सव्वे भवत्थजीवा मरंति आवीइअं सया मरणं । ओहि आइअंतिय दुनिवि एयाइ भयणाए । च ओहि च आइअंतिम बाल तह पंडियं च मीसं च । छउमं केवलिमरणं केवलिमरणं अन्नुन्नेणं विरुज्यंति ||
( उनि २२७-२२९ )
एक समय में जितने मरण हो सकते हैं, वे बाल, बालपंडित और पंडित मरण की अपेक्षा से इस प्रकार हैं
बाल की अपेक्षा --
१. एक समय में दो मरण-अवधि और आत्यन्तिक में से एक और दूसरा बाल-मरण ।
२. एक समय में तीन मरण - जहां तीन होते हैं वहां तद्भवमरण और बढ़ जाता है।
३. एक समय में चार मरण-जहां चार होते हैं वहां वशार्तमरण और बढ़ जाता है।
४. एक समय में पांच मरण वैहायस और गुडपृष्ठ में से कोई एक बढ़ जाता है । वलन्मरण और शल्यमरण को बाल-मरण के अन्तर्गत स्वीकार किया गया है । पंडित की अपेक्षा
पंडित मरण की विवक्षा दो प्रकार से की गई हैदृढ़ संयमी पंडित और शिथिल संयमी पंडित । (क) दृढ़-संयमी पंडित
१. जहां दो मरण एक समय में होते हैं, वहां अवधि - मरण और आत्यन्तिक-मरण में से कोई एक होता है क्योंकि दोनों परस्पर विरोधी हैं। दूसरा पंडित
मरण ।
२. जहां तीन मरण एक साथ होते हैं, वहां छद्मस्थमरण और केवल मरण में से एक बढ़ जाता है । ३. जहां चार मरण की विवक्षा है, वहां भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनी और प्रायोपगमन में से एक बढ़ जाता है ।
४. जहां पांच मरण की विवक्षा है, वहां वैहायस और गृद्धपृष्ठ में से एक मरण बढ़ जाता है ।
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