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मरण के दो प्रकार
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मरण
मध्यम वय के प्रथम दशक (४० वर्ष) तक शरीर १. मरण के दो प्रकार का उपचय होता रहता है। फिर शरीर की शोभा, शक्ति
संतिम य दुवे ठाणा, अक्खाया मारणंतिया । आदि की हानि प्रारंभ हो जाती है। पचास वर्ष की
अकाममरणं चेव, सकाममरणं तहा ।। अवस्था में इन्द्रियों की शक्ति क्षीण होने लग जाती है।
(उ ५५२) फिर बय के साथ-साथ इन्द्रिय-शक्ति की क्षीणता का
मरण के दो प्रकार हैं -अकाम मरण और सकाम अनुभव होने लगता है । प्रतीत होता है, सबसे पहले चक्षु
मरण । इन्द्रिय की शक्ति क्षीण होती है, फिर श्रोत्र और घ्राण की। अन्त में रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय क्षीण होती
अकाम मरण है। अंतिम वय में इन्द्रियां मूढभाव को पैदा करती हैं। ...अकाममरणं बालाणं"। (उ ५।१७) इसका तात्पर्य है कि इन्द्रियों की शक्ति जैसे-जैसे क्षीण अज्ञानी और अविरत का मरण अकाम मरण (बाल होती है, पुरुष उन इन्द्रिय-विषयों के प्रति अधिक आसक्त मरण) कहलाता है। होता जाता है। बुढ़ापे में प्रायः लोगों का स्वभाव ते हि विषयाभिष्वंगतो मरणमनिच्छन्त एव म्रियन्ते । मूर्खाग्रस्त हो जाता है।
दुष्कृतकर्मणां परलोकाद् बिभ्यतां यन्मरणमुक्तम् । इन्द्रियों के केन्द्रबिन्दु पृष्ठमस्तिष्क में होते हैं।
(उशाव प २४२) इन्द्रियों का प्रज्ञान उनके केन्द्रबिन्दुओं के क्षीण होने पर
जो व्यक्ति विषय में आसक्त होने के कारण मरना क्षीण होता है। उस स्थिति में असमय में भी मृत्यू हो नहीं चाहता, विवशता की स्थिति में मरता है, उस मरण सकती है। श्रोत्र आदि इन्द्रियों के लाखों स्नायू होते हैं। को अकाम मरण कहा जाता है। उनके अभिघात से मृत्यु हो सकती है।)
सकाम मरण मनोगुप्ति मन की प्रवृत्ति का निरोध । असत्
.."सकाममरणं पंडियाणं ॥ (उ ५।१७) चिन्तन से निवर्तन।
संयति का मरण सकाम मरण (पंडित मरण) (द्र. गुप्ति)
कहलाता है। मनोयोग-मन की प्रवृत्ति। (द्र. योग)
सह कामेन ---अभिलाषेण वर्तते इति सकामं । मरण-आयु की समाप्ति ।
सकाममिव सकामं मरणं प्रत्यसंत्रस्ततया, तथात्वं चोत्सवभूतत्वात् तादृशां मरणस्य ।
(उशावृ प २४२) १. मरण के दो प्रकार
जो मृत्युकाल में भयभीत नहीं होता और उसे ० अकाम मरण ० सकाम मरण
उत्सव-रूप मानता है, उसका इच्छामरण सकाम मरण
कहलाता है। २. मरण के सतरह प्रकार
(बाल-मरण के बारह भेद हैं• आवीचि मरण आदि
१. वलय
७. जल-प्रवेश • गृद्धपृष्ठ और वैहायस मरण
२. वशात
८. अग्नि-प्रवेश ३. प्रशस्त मरण * भक्तपरिज्ञा आदि
(द्र. अनशन) ३ अन्तःशल्य
९. विष-भक्षण ४. तद्भव
१०. शस्त्रावपाटन * आयुष्य क्षीण होने के कारण
५. गिरि-पतन * सोपक्रम-निरूपक्रम आयुष्य
११ वैहायस (द्र. कर्म) ६. तरु-पतन
१२. गृद्धपृष्ठ। ४. एक साथ कितने मरण ?
पंडित-मरण के दो भेद हैं -प्रायोपगमन और भक्त५. मरण कितनी बार ?
प्रत्याख्यान । ६. मरण : काल, अंतर आदि
यहां इंगिनीमरण को भक्तप्रत्याख्यान का ही एक . * केवली-मरण
कवला) | भेद स्वीकार किया गया है। देखें- भगवई २०४९ की
वृत्ति ।)
(द्र. कर्म)
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