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दुर्लभता के अन्य प्रकार
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मनुष्य
"""॥
जन्तुरुत्पद्यते, एते च सर्वेऽपि धर्माधर्मगम्यागम्यभक्ष्या- १५. श्रद्धा को दुर्लभता भक्ष्यादि सकलार्यव्यवहारबहिष्कृतास्तिर्यक्प्राया एव ।
___लभ्रूण वि उत्तमं सुइं, सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा ।
(उशावृ प ३३७) मिच्छत्तनिसेवए जणे...." जिसकी भाषा अव्यक्त होती है, जिसका कहा हुआ
(उ १०११९) आर्य लोग नहीं समझ पाते, उन्हें म्लेच्छ कहा जाता उत्तम धर्म की श्रुति मिलने पर भी श्रद्धा होना है। शक, यवन, शबर आदि देशों में उत्पन्न लोगों को अधिक दुर्लभ है। बहुत सारे लोग मिथ्यात्व का सेवन म्लेच्छ कहा गया है। वे आर्यों की व्यवहार पद्धति -धर्म करने वाले होते हैं। अधर्म, गम्य-अगम्य, भक्ष्य-अभक्ष्य से भिन्न प्रकार का
१६. आचरण की दुर्लभता जीवन जीते थे, इसलिए आर्य लोग उन्हें हेय दृष्टि से देखते थे।
धम्म पि हु सद्दहंतया, दुल्लहया काएण फासया ।
इह कामगुणे हि मुच्छिया... १३. पूर्ण इंद्रियों की दुर्लभता
(उ १०.२०) लदधण वि आरियत्तणं, अहीणपंचिदियया ह दुल्लहा। उत्तम धर्म में श्रद्धा होने पर भी उसका आचरण विगलिंदियया ह दीसई..........
करने वाले दुर्लभ हैं। इस लोक में बहुत सारे लोग
(उ १०।१७) कामगुणों में मूच्छित होते हैं। आर्यदेश में जन्म मिलने पर भी पांचों इन्द्रियों से
१७. दुर्लभता के अन्य प्रकार पूर्ण स्वस्थ होना दुर्लभ है। बहुत सारे लोग इन्द्रियहीन दीख रहे हैं।
माणस्स खित्त जाई कुल रूवारोग्ग आउयं बुद्धी।
सवणुग्गह सद्धा संजमो अ लोगंमि दुलहाई॥ १४. श्रुति को दुर्लभता और उसके हेतु
(उनि १५९) अहीणपंचिदियत्तं पि से लहे, उत्तमधम्मसुई हु दुल्लहा।
मनुष्यत्व की दुर्लभता के प्रसंग में बारह दुर्लभ कुतित्थनिसेवए जणे.. ए जण ................................. ॥ वस्तुओं का उल्लेख है(उ १०।१८) १. मनुष्य जन्म
७. आयुष्य पांचों इन्द्रियां पूर्ण स्वस्थ होने पर भी उत्तम धर्म
२. आर्यक्षेत्र
८. बुद्धि
३. आर्यजाति की श्रुति दुर्लभ है । बहुत सारे लोग कुतीथिकों की सेवा
९. धर्म का श्रवण करने वाले होते हैं।
४. आर्यकुल
१०. धर्म का अवधारण आलस्स मोहऽवन्ना थंभा कोहा पमाय किविणत्ता।
५. सुरूपता
११. श्रद्धा भय सोगा अन्नाणा वक्खेव कूऊहला रमणा ।
६. आरोग्य
१२. संयम एएहिं कारणेहिं लक्ष्ण सुदुल्लहपि माणस्सं ।।
इंदियलद्धी निव्वत्तणा य पज्जत्ति निरुवहय खेमं । न लहइ सुइं हिअरि संसारुत्तारिणि जीवो।।
धाणारोग्गं सद्धा गाहग उवओग अट्ठो य॥ (उनि १६०,१६१)
(उशावृ प १४५) श्रुति की दुर्लभता के तेरह कारण ---
ग्यारह वस्तुएं दुर्लभ हैं१. आलस्य ८. भय
१. इन्द्रियलब्धि · पांच इन्द्रियों की प्राप्ति । २. मोह ९. शोक
२. निर्वर्तना --इन्दियों की पूर्ण रचना । ३. अवज्ञा या अश्लाघा १०. अज्ञान
३. पर्याप्ति – पूर्ण पर्याप्तियों की प्राप्ति ।। ४. अहंकार ११. व्याक्षेप
४. निरुपहतता-- अंगविकलता से रहित । ५. क्रोध १२. कुतूहल
५. क्षेम-संपन्न देश की प्राप्ति । ६. प्रमाद १३. क्रीडाप्रियता।
६. ध्राण-भिक्ष क्षेत्र अथवा वैभवशाली क्षेत्र की ७. कृपणता
प्राप्ति।
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