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मनुष्य
अचल था। उसने कलाचार्य से बहुत कुछ शिक्षा प्राप्त कर ली। शेव राजकुमार स्थिर नहीं थे। वे वैसे ही रह
गए।
मथुरा के अधिपति जितशत्रु की पुत्री का नाम निर्वृति था। जब वह विवाह योग्य हुई, तब राजा के पूछने पर उसने कहा- पिताजी! जो राधावेध कर पाएगा, वही मेरा पति होगा । स्वयंवर की घोषणा हुई। एक अक्ष पर आठ चक और उस पर एक पुतली स्थापित की गई । उसकी आंख को बींधने की शर्त रखी।
इन्द्रदत्त अपने पुत्रों के साथ वहां आया। सभी पुत्रों ने पुतली की आंख को बींधने का प्रयत्न किया, पर सब व्यर्थ । अन्त में अमात्य के कहने पर सुरेन्द्रदत्त आया। उसको स्खलित करने के अनेक प्रयत्न हुए. पर उसने पुतली की आंख को बींध डाला । लोगों ने जय जयकार किया उसे निर्वृति और राज्य प्राप्त । हुआ और शेष पराजित होकर अपने-अपने देश चले गए। जैसे उस पुतली की आंच को बींधना दुष्कर था, वैसे ही मनुष्य जन्म दुष्कर है।
८. चर्म - एक तालाब था । वह पानी से लबालब भरा हुआ था। पूरे तालाब पर सघन शैवाल छाई हुई थी, मानो वह शैवाल रूपी धर्म से अवनद्ध हो एक कछुआ उसमें रहता था । एक बार उसने पानी में तैरते तैरते एक स्थान पर शैवाल में छिद्र देखा । उसने छिद्र में से ऊपर देखा । आकाश में बाद चमक रहा था, तारे टिमटिमा रहे थे। कुछ क्षणों तक वह देखता रहा। फिर सोचा, परिवार के सभी सदस्यों को यहां लाकर यह मनोरम 'दृश्य दिखाऊं वह तत्काल गया और पूरे परिवार के साथ लौट आया। हटी हुई शैवाल पुनः एकाकार हो गई थी। छिद्र नहीं मिला। सभी सदस्य निराश हो लौट गए। क्या पुनः वह कभी छिद्र को पा सकेगा ? ९. युग (जुआ) – एक अथाह समुद्र । समुद्र के एक छोर पर जुआ है और दूसरे छोर पर उसकी कील पड़ी है । उस कील का जुए के छिद्र में प्रवेश होना दुर्लभ है, उसी प्रकार मनुष्य जन्म भी दुर्लभ है।
कील उस अथाह पानी में प्रवाहित हो बहते संभव है वह इस छोर पर आकर जुए
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गई । बहतेके छिद्र में
आर्य क्षेत्र की दुर्लभता
प्रवेश कर ले, किन्तु मनुष्य जन्म से भ्रष्ट जीव का पुनः मनुष्य जन्म पाना दुर्लभ है।
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१०. परमाणु – एक विशाल स्तंभ । एक देव उस स्तम्भ का चूर्ण कर एक नलिका में भर मंदरपर्वत पर जाकर उसे फूंक से बिखेर देता है । स्तम्भ के वे सारे परमाणु इधर-उधर बिखर जाते हैं।
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क्या दूसरा कोई भी व्यक्ति पुनः उन परमाणुओं को एकत्रित कर वैसे ही स्तम्भ का निर्माण कर सकता है ? कभी नहीं। वैसे ही एक बार मनुष्य जीवन को व्यर्थ खो देने पर पुनः उसकी प्राप्ति दुष्कर होती है। (देखें - उशावृ प १४५ - १५० ) १२. आर्य क्षेत्र की दुर्लभता
लक्षूण वि माणुसत्तणं, आरिक्षतं पुणरावि दुलहं । बहवे दवा मिलेक्या
( उ १०।१६)
मनुष्य जन्म दुर्लभ है । उसके मिलने पर भी आर्यत्व पाना और भी दुर्लभ है बहुत सारे लोग मनुष्य होकर भी दस्यु और म्लेच्छ होते हैं।
( आर्य के नौ प्रकार - १. क्षेत्र आर्य
२. जाति आर्य २. कुल आर्य
४. कर्म आर्य
५. शिल्प आर्य
साढ़े पचीस देश क्षेत्रार्य माने गए हैं
९. पांचाल
१. मगध
२. अंग
३. बंग
४. कलिंग
५. काशी
६. कौशल
७. कुरु ८.
कुशावर्त
६. भाषा आर्य
७. ज्ञान आर्य
८. दर्शन आर्य ९. चारित्र आर्य |
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१०. जांगल
११. सौराष्ट्र
१२. विदेह
१३. वत्स
१४. शांडिल्य
१५. मलय
१६. मत्स्य
१७. वरण
१८. दशार्ण
१९. चेदि
२०. सिंधु सौवीर २१. शूरसेन
२२. भंगि
२३. वट्ट
२४. कुणाल
२५. लाढ़
अर्थ कैकय ।
देखें प्रज्ञापना ११९२.९३ )
म्लेच्छ
म्लेच्छा - अव्यक्तवाचो, न यदुक्तमार्येश्वधार्यते, ते च शकयवनशवरादिदेशोद्भवाः येप्यवाप्यापि मनुजत्वं
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