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मनुष्य भव की दुर्लभता दस दृष्टांत
के सभी संभ्रान्त कुलों में भोजन प्राप्त कर पुनः आपके प्रासाद में भोजन करूं - यह वरदान दें । राजा बोलायह क्यों ? तुम चाहो तो मैं तुम्हें गांव दे सकता हूं, धन दे सकता हूं। तुम्हें ऐसा बना सकता हूं कि तुम जीवन भर हाथी के होदे पर सुखपूर्वक घूमते रहो। कार्यटिक बोला मुझे इन सब प्रपंचों से क्या ? राजा ने तथास्तु
कहा।
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अब वह बारी-बारी से नगर के घरों में जीमने लगा। उस नगर में अनेक कुलकोटियां थीं। क्या वह अपने जीवनकाल में उस नगर के घरों का अन्त पा सकता था ? कभी नहीं फिर संपूर्ण भारतवर्ष की बात ही क्या ।
संभव है किसी उपाय या देवयोग से वह संपूर्ण भारतवर्ष के घरों का पार पा जाए, किन्तु मनुष्य जन्म को पुनः प्राप्त करना दुष्कर है।
२. पाशक एक व्यक्ति ने स्वर्ण अर्जित करने की एक युक्ति निकाली । उसने जुए का एक प्रकार निकाला और यंत्रमय पाशकों का निर्माण किया । एक व्यक्ति को दीनारों से भरा थाल देकर घोषणा करवाई कि कोई मुझे इस जुए में जीत लेगा, मैं दीनारों से भरा यह थाल उसे दे दूंगा । यदि वह व्यक्ति मुझे नहीं जीत सका तो उसे एक दीनार देना होगा । यंत्रमय पाशक होने के कारण कोई उसे जीत न सका और धीरे-धीरे उसने स्वर्ण के अनेक दीनार अर्जित कर लिए ।
कदाचित् कोई व्यक्ति उसको जीत भी ले, पर मनुष्य जन्म से भ्रष्ट जीव पुनः मनुष्य जन्म सहजता से प्राप्त नहीं कर सकता ।
३. धान्य-धान्य के विविध प्रकारों को मिश्रित कर ढेर लगा दिया । उसमें एक प्रस्थ सरसों के दाने मिला दिए एक वृद्धा उन सरसों के दानों को बीनने । बैठी । क्या वह उन सरसों के दानों को पृथक् कर पाएगी ? देवयोग से पृथक् कर भी ले, फिर भी जीव को पुनः मनुष्य जन्म मिलना दुष्कर है।
४. द्यूत - राजसभा का मंडप एक सौ आठ स्तम्भों पर आधृत था। राजकुमार का मन राज्य लिप्सा से आक्रांत हो गया । उसने राजा को मार डालना चाहा । अमात्य को इसका पता चला। उसने राजा से कहाहमारे वंश की यह परम्परा है कि राजकुमार राज्य प्राप्ति के अनुक्रम को सहन नहीं करता, उसे जुआ
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खेलना होता है और उस जुए में जीतने पर ही उसे राज्य प्राप्त हो सकता है। उसने पूछा - जीतने की शर्त क्या है ? राजा ने कहा एक गांव तुम्हारा होगा, शेष हमारे । एक ही दांव में यदि तुम आठ सौ खेमों के एक-एक कोण को आठ सौ बार जीत लोगे तो तुम्हें राज्य सौंप दिया जाएगा। जैसे यह असंभव है, वैसे ही मनुष्य जन्म भी असंभव है ।
५. रत्न- एक वृद्ध वणिक् के पास अनेक रत्न थे । एक बार वृद्ध देशान्तर चला गया । पुत्रों ने सारे रत्न अन्यान्य व्यापारियों को बेच डाले। बुद्ध देशान्तर से आया और रत्नों के विक्रय की बात सुनकर चिंतित हो गया। उसने पुत्रों से कहा बेचे हुए रत्नों को पुनः एकत्रित करो पुत्र परेशान हो गए, क्योंकि उन्होंने
। सारे रत्न परदेशी व्यापारियों को बेच डाले थे । वे सारे व्यापारी दूर-दूर तक चले गए थे जैसे उनसे रत्न । एकत्रित करना असंभव था, वैसे ही मनुष्य जन्म पुनः प्राप्त होना असंभव है ।
६. स्वप्न एक कार्यटिक ने स्वप्न में देखा कि - उसने पूर्ण चन्द्रमा को निगल लिया है । उसका फल स्वप्नपाठकों से पूछा । उन्होंने कहा - बड़ा घर मिलेगा। उसे मिल गया। दूसरे कार्यटिक ने भी स्वप्न में संपूर्ण चन्द्र मण्डल को देखा। उसने स्वप्नपाठकों से इसका फल पूछा। वे बोले- तुम राजा बनोगे । उस देश का राजा सात दिन के बाद मर गया । अश्व की पूजा कर उसे गांव में छोड़ा। वह उसी व्यक्ति के पास जाकर हिनहिनाया। उसे पीठ पर बिठाकर राजमहल ले आया । वह राजा बन गया ।
पहले कार्यटिक ने सोचा मैं भी ऐसा ही स्वप्न । देखूं वह दूध पीकर सो गया। क्या वैसा स्वप्न पुनः सुलभ हो सकता है ? कभी नहीं। वैसे ही मनुष्य जन्म पुनः सुलभ नहीं होता ।
७. चक्र – इन्द्रदत्त इन्द्रपुर नगर का राजा था । उसके बाईस पुत्र थे। एक बार वह अमात्य की पुत्री में आसक्त हो, उसके साथ एक रात रहा । वह गर्भवती हुई । उसने पुत्र का प्रसव किया। उसका नाम सुरेन्द्रदत्त
रखा ।
राजा के सभी पुत्र और सुरेन्द्रदत्त कलाचार्य के पास शिक्षा ग्रहण करने लगे। सुरेन्द्रदत्त विनीत और
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