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मनुष्य
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मनुष्य के प्रकार
• मनःपर्यवज्ञान विपर्ययज्ञान नहीं होता, केवलज्ञान भी
* लेश्या की स्थिति
(द्र. लेश्या) विपर्ययज्ञान नहीं होता।
* चार प्रकार की सामायिक (द्र. सामायिक) मनःपर्याप्ति-मन के योग्य पुद्गलों का ग्रहण, * अवधिज्ञान का संस्थान (द्र. अवधिज्ञान) परिणमन और उत्सर्ग करने वाली
। १. मनुष्य के प्रकार पौद्गलिक शक्ति की प्राप्ति ।
(द्र. पर्याप्ति) जि मणुया दुविहभेया उ, ते मे कित्तयओ सुण ।
संमुच्छिमा य मणुया, गब्भवक्कंतिया तहा ।। मनुष्य-विकास की सर्वाधिक क्षमता रखने वाला
(उ ३६।१९५) प्राणी।
मनुष्य के दो प्रकार हैं-सम्मूच्छिम और गर्भ
व्युत्क्रान्तिक । १. मनुष्य के प्रकार
गर्भव्युत्क्रान्तिक के निर्वचन २. कर्मभूमिज मनुष्य
___गर्ने व्युत्क्रान्ति:-उत्पत्तिर्येषां ते गर्भव्युत्क्रान्तिकाः, ३. अकर्मभूमिज मनुष्य
अथवा गर्भाद् व्युत्क्रान्तिः-- व्युत्क्रमणं निष्क्रमणं येषां ते ४. अन्तर्वीपज मनुष्य
गर्भव्युत्क्रान्तिकाः, उभयत्रापि गर्भजा इत्यर्थः । ५. अन्तीपज तिर्यच
(नन्दीमव प १०२) ६. छप्पन अन्तःप
१. जिनकी गर्भ में व्युत्क्रांति/उत्पत्ति होती है, वे • क्षेत्रीय वैशिष्ट्य
गर्भव्युत्क्रांतिक/गर्भज हैं। ७. सम्मूच्छिम मनुष्य के उत्पत्ति स्थान
२. जिनका गर्भ से व्युत्क्रमण/निष्क्रमण होता है, वे ८. मनुष्य को आयुस्थिति
गर्भव्युत्क्रांतिक/गर्भज हैं। ० कायस्थिति
गब्भवतिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया। ० अन्तर काल
अकम्मकम्मभूमा य, अंतरद्दीवया तहा ।। • अवगाहना
(उ ३६।१९६) ० संख्यापरिमाण
गर्भज मनूष्य तीन प्रकार के हैं-१. कर्मभूमिज
२. अकर्मभूमिज और ३. अन्तर्वीपज। ९. मनुष्यभव की प्राप्ति का हेतु
पन्नरस तीसइ विहा, भेया अट्ठवीसइं। १०. चार अंग दुर्लभ
संखा उ कमसो तेसि, इइ एसा वियाहिया ।। ११. मनुष्य भव की दुर्लभता : बस दृष्टान्त
(उ ३६।१९७) १२. आर्यक्षेत्र की दुर्लभता
सम्मूच्छिमा-वान्तादिसमुद्भवाः । कर्मभूमका:१३. पूर्ण इन्द्रियों की दुर्लभता
पञ्चदशकर्मभूमिजाताः। अकर्मभ्रमका: --विशदकर्म१४. श्रुति की दुर्लभता और उसके हेतु
भूमिजाताः। अन्तरद्वीपका:-षट्पञ्चाशत् अन्तरद्वीपेषु १५. श्रद्धा की दुर्लभता
जाताः।
(आवमवृ प ४३९) १६. आचरण की दुर्लभता
मनुष्य के चार प्रकार हैं१७. दुर्लभता के अन्य प्रकार
० सम्मूच्छिम –वान्त, उच्चार-प्रस्रवण आदि चौदह • मनुष्य जन्म : दस अंग
स्थानों में उत्पन्न होने वाले। १८. मनुष्य को दस अवस्थाएं
० कर्मभूमिज-पन्द्रह कर्मभूमियों में उत्पन्न होने
वाले। * मनुष्य गति : शुभ नामकर्म (द्र. कर्म)
० अकर्मभूमिज-तीस अकर्मभ्रमियों में उत्पन्न होने * मनुष्य में शरीर
(द्र. शरीर)
वाले। शरीर की अवगाहना का माप (द्र. अंगुल)
० अन्तर्वीपज-छप्पन अन्तर्वीपों में उत्पन्न होने * आयुष्य का माप
(द्र. पल्योपम)
वाले ।
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