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भाषा सबंधी विधि-निषेध
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भाषासमिति
प्रकृति
नफा हुआ), यह बेचने योग्य नहीं है, यह बेचने योग्य है, व्यक्ति को देखकर 'यह ऋद्धिमान् पुरुष है' -- ऐसा कहे। इस माल को ले (यह महंगा होने वाला है), इस माल पनि को बेच डाल (यह सस्ता होने वाला है)-इस प्रकार न कहे।
तहेव गंतुमुज्जाणं, पव्वयाणि वणाणि य।
रुक्खा महल्ल पेहाए, नेवं भासेज्ज पन्नवं ।। ___ अल्पमूल्य या बहुमूल्य माल ले लेने या बेचने के प्रसंग में मुनि अनवद्य वचन बोले- क्रय विक्रय से विरत
आसणं सयणं जाणं, होज्जा वा किंचुवस्सए । मुनियों का इस विषय में कोई अधिकार नहीं है इस
भूओवघाइणि भासं, नेवं भासेज्ज पन्नवं ।। प्रकार कहे।
जाइमंता इमे रुक्खा, दीहवा महालया। पयायसाला विडिमा, वए दरिसणि त्ति य ।।
(द ७।२६,२९,३१) तहा नईओ पुण्णाओ, कायतिज्ज त्ति नो वए।
उद्यान, पर्वत और वन में जा वहां बडे वक्षों को नावाहिं तारिमाओ त्ति, पाणिज्ज त्ति नो वए॥
देख प्रज्ञावान् मुनि भूतोपघातिनी भाषा न बोले। जैसे बहुवाहडा अगाहा, बहुसलिलुप्पिलोदगा। ..
-इन वृक्षों में आसन, शयन, यान और उपाश्रय के बहु वित्थडोदगा यावि, एवं भासेज्ज पन्नवं ।।
(द ७।३८,३९)
उपयुक्त कुछ काष्ठ है। नदियां भरी हुई हैं, शरीर के द्वारा पार करने योग्य
प्रयोजनवश कहना हो तो प्रज्ञावान् भिक्षु यों कहे--- हैं, नौका के द्वारा पार करने योग्य हैं और तट पर बैठे
ये वृक्ष उत्तम जाति के हैं, लम्बे हैं, गोल हैं, बहुत विस्तार हुए प्राणी उनका जल पी सकते हैं - मुनि इस प्रकार न
वाले अथवा स्कन्धयुक्त हैं, शाखा-प्रशाखा वाले हैं,
दर्शनीय हैं। कहे । (प्रयोजनवश कहना हो तो) नदियां प्रायः भरी हुई हैं, प्रायः अगाध हैं, बहु-सलिला हैं, दूसरी नदियों के
तहा फलाइं पक्काइं, पायखज्जाइं नो वए । द्वारा जल का वेग बढ़ रहा है, बहुत विस्तीर्ण जल वाली
वेलोइयाई टालाइं, वेहिमाइ त्ति नो वए । हैं -प्रज्ञावान् भिक्षु इस प्रकार कहे।
असंथडा इमे अंबा, बहुनिवट्टिमा फला । वाओ वुटुं व सीउण्हं, खेमं धायं सिवं ति वा । वएज्ज बहुसंभूया, भूयरूव त्ति वा पुणो ।। कया ण होज्ज एयाणि, मा वा होउ त्ति नो वए ।
(द ७।३२,३३) (द ७५१) ये फल पक्व हैं, पकाकर खाने योग्य हैं, (तथा ये वायु, वर्षा, सर्दी, गर्मी, क्षेम, सुभिक्ष और शिव, ये फल) वेलोचित (अविलम्ब तोड़ने योग्य) हैं, इनमें गुठली कब होंगे - ऐसा पछे जाने पर मनि कुछ न कहे तथा ये नहीं पड़ी है, ये दो टुकड़े करने योग्य हैं (फांक करने न हों तो अच्छा रहे - इस प्रकार न कहे।
योग्य हैं)- इस प्रकार न कहे। (प्रयोजनवश कहना हो तहेव मेहं व नहं व माणवं,
तो) ये आम्र-वृक्ष अब फल धारण करने में असमर्थ हैं, न देव देव त्ति गिरं वएज्जा ।
बहुनिवर्तित (प्रायः सम्पन्न) फल वाले हैं, बहु-संभूत सम्मुच्छिए उन्नए वा पओए,
(एक साथ उत्पन्न बहुत फल वाले) हैं अथवा भूतरूप __ वएज्ज वा वुट्ठ बलाहए त्ति ॥
(कोमल) हैं-मुनि इस प्रकार कहे। अंतलिक्खे त्ति णं बूया, गुज्झाणचरिय त्ति य ।
तहेवोसहीओ पक्काओ, नीलियाओ छवीइय । रिद्धिमंतं नरं दिस्स, रिद्धिमतं ति आलवे ।। लाइमा भज्जिमाओ त्ति, पिहखज्ज त्ति नो वए ।।
(द ७।५२,५३) रूढा बहुसंभूया, थिरा ऊसढा वि य । मेघ, नभ और मानव के लिए 'ये देव हैं'- ऐसी गब्भियाओ पसूयाओ, ससाराओ त्ति आलवे ॥ वाणी न बोले । पयोधर सम्मूच्छित हो रहा है -उमड़
(द ७।३४,३५) रहा है, अथवा उन्नत हो रहा है -झुक रहा है, अथवा
औषधियां पक गई हैं, अपक्व हैं, छवि (फली) मेघ बरस पड़ा है - मुनि इस प्रकार बोले। मेघ और वाली हैं, काटने योग्य हैं, भूनने योग्य हैं, चिड़वा बनाकर नभ को अंतरिक्ष अथवा गुह्यानुचरित कहे । ऋद्धिसम्पन्न खाने योग्य हैं—मुनि इस प्रकार न बोले।
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