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भाषासमिति
धीर और प्रज्ञावान् मुनि असंयति (गृहस्थ ) को बैठ, इधर आ, (अमुक कार्य ) कर, सो, ठहर या खड़ा हो जा, चला जा - इस प्रकार न कहे ।
स्वप्नफल आदि संबंधी
नक्खत्तं सुमिगं जोगं, निमित्तं मंत भेसजं । गिहिणो तं न आइक्खे, भूयाहिगरणं पयं ॥ (द ८५०)
नक्षत्र, स्वप्नफल, वशीकरण, निमित्त, मंत्र और भेषज - ये जीवों की हिंसा के स्थान हैं, इसलिए मुनि गृहस्थों को इनके फलाफल न बताए । जय-पराजय संबंधी
देवाणं मणुयाणं च तिरियाणं च वुग्गहे । अयाणं जओ होउ मा वा होउ त्ति नो वए । (द ७/५०) देव, मनुष्य और तिर्यञ्चों (पशु-पक्षियों) का आपस में विग्रह होने पर अमुक की विजय हो अथवा अमुक की विजय न हो - इस प्रकार न कहे ।
५. भाषा संबंधी विधि - निषेध
बहुं सुणेइ कण्णेहि, बहुं अच्छी हिं पेच्छइ । न यदिट्ठे सुयं सव्वं, भिक्खू अक्खाउमरिहइ || (द ८२० ) कानों से बहुत सुनता है, आंखों से बहुत देखता है, किन्तु सब देखे और सुने को कहना भिक्षु के लिए उचित नहीं ।
तव संखडि नच्चा, किच्चं तेगं वा वि वज् त्ति, ias Rafs बूया, बहुसमाणि तित्थाणि,
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कज्जं ति नो वए । सुतित्थ त्ति य आवगा ।। पणियट्ठत्ति तेणगं । आवगाणं वियागरे ॥
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(द ७/३६, ३७)
संखड़ी (जीमनवार) और कृत्य —— मृत्युभोज को जानकर -ये करणीय हैं, चोर मारने योग्य है और नदी अच्छे घाट वाली है -मुनि इस प्रकार न कहे ।
( प्रयोजनवश कहना हो तो ) संखड़ी को संखड़ी, चोर पणितार्थ (धन के लिए जीवन की बाजी लगाने वाला) और नदी के घाट प्रायः सम — इस प्रकार कहा जा सकता है ।
भाषा संबंधी विधि-निषेध
संबोधन
अज्जए पज्जए वा वि, बप्पो चुल्ल पिउत्तिय । माउला भाइणेज्जत्ति, पुत्ते नत्तुणिय त्तिय ॥ हे हो हले ति अन्ने त्ति, भट्टा सामिय गोमिए । होल गोल वसुले त्ति, पुरिसं नेवमालवे || नामधेज्जेण णं बूया पुरिसगोत्तेण वा पुणो । जहारिहमभिगिज्भ आलवेज्ज लवेज्ज वा ॥
(द ७१८-२० )
आर्य ! ( दादा !, हे नाना ! ) हे प्रार्थक ! (हे परदादा !, हे परनाना !) हे पिता ! हे चाचा !, मामा ! हे भानजा !, हे पुत्र !, हे पोता !, हल! हे अन्न ! हे भट्ट !, हे स्वामिन्! हे गोमिन् !, होल !, हे गोल !, हे वृषल ! इस प्रकार पुरुष को आमंत्रित न करे । किन्तु ( प्रयोजनवश ) यथायोग्य गुणदोष का विचार कर एक बार या बार-बार उन्हें उनके नाम या गोत्र से आमंत्रित करे ।
पंचिदियाण पाणाणं, एस इत्थी अयं जाव णं न विजाणेज्जा, ताव जाइ त्ति
पुमं । आलवे || (द ७/२१)
पंचेन्द्रिय तिर्यंच प्राणियों के बारे में जब तक - यह स्त्री है या पुरुष — ऐसा न जान जाए तब तक गाय की जाति, घोड़े की जाति इस प्रकार बोले ।
क्रय-विक्रय
सव्वक्कसं परग्धं वा अचक्कियमवत्तव्वं
सुक्कीयं वा सुविक्कीयं अकेज्जं केज्जमेव वा । इमं गेह इमं मुंच पणियं नो वियागरे । अपग्धे वा महग्घे वा, कए वा विक्कए वि वा । पणियट्ठे समुत्पन्ने, अणवज्जं वियागरे ॥ (द ७।४३,४५,४६)
अउलं नत्थि एरिसं । अचितं चेव नो वए ॥
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( क्रय-विक्रय के प्रसंग में) यह वस्तु सर्वोत्कृष्ट है, यह बहुमूल्य है, यह तुलनारहित है, इसके समान दूसरी वस्तु कोई नहीं है, इसका मोल करना शक्य नहीं है, इसकी विशेषता नहीं कही जा सकती, यह अचिन्त्य हैइस प्रकार न कहे ।
पण्य वस्तु के बारे में ( यह माल) अच्छा खरीदा ( बहुत सस्ता आया ), ( यह माल) अच्छा बेचा ( बहुत
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