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भाषा
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द्रव्यभाषा-भावभाषा
की निन्दा करता है, वह मायावी पुरुष किल्बिषिकी |
५. शब्दश्रवण की प्रक्रिया भावना का आचरण करता है ।
६. भाषाद्रव्य की तीव्रतम गति आसुरी भावना
७. भाषाद्रव्य की लोक में व्याप्त होने की प्रक्रिया अणुबद्धरोसपसरो, तह य निमित्तंमि होइ पडिसेवि । । ८. अवगाहना वर्गणा एएहि कारणेहिं, आसुरिय भावणं कुणइ ।। । ९. भावभाषा के प्रकार
(उ ३६।२६६) १०. द्रव्यभावभाषा के प्रकार जो क्रोध को सतत बढ़ावा देता रहता है और ० सत्यभाषा के प्रकार निमित्त कहता है, वह अपनी इन प्रवृत्तियों के कारण ० मृषाभाषा के प्रकार आसुरी भावना का आचरण करता है।
० मिश्रभाषा के प्रकार मोही भावना
० व्यवहार भाषा के प्रकार सत्थग्गहणं विसभक्खणं च जलणं च जलप्पवेसोय।। ११. श्रुतभाव भाषा अणायारभण्डसेवा, जम्मणमरणाणि बंधति ॥
१२. चारित्रमाव भाषा
१९ (उ ३६।२६७)
१३. भाषा के दो प्रकार जो शस्त्र के द्वारा, विष भक्षण के द्वारा, अग्नि में
* वचन के सोलह अंग
(द्र. अनुयोग) प्रविष्ट होकर या पानी में कूदकर आत्म-हत्या करता
* अक्षरश्रुत : श्रुतज्ञान का एक भेव (. श्रुतज्ञान) है और जो मर्यादा से अधिक उपकरण रखता है, वह १. भाषा की परिभाषा जन्म-मरण की परम्परा को पुष्ट करता है-मोही
भाष्यत इति भाषा-वाकशब्दरूपतया उत्सृज्यमाना भावना का आचरण करता है। (मूलाराधना (३।१७९-१८४) तथा प्रवचनसारोद्धार
द्रव्यसन्ततिः । सा च वर्णात्मिका भेरीभाड्रारादिरूपा वा (गाथा ६४१-६४६) में भी इन संक्लिष्ट भावनाओं की
द्रष्टव्या।
(नन्दीमवृ प १८६)
जो बोली जाती है, वह भाषा है। भाषावर्गणा के चर्चा है, जो उत्तराध्ययन से पूर्णतः प्रभावित हैं।)
पुद्गलद्रव्य का ग्रहण और परिणमन के बाद वाणीभावितात्मा-विशिष्ट साधना संपन्न अनगार ।
शब्द के रूप में उत्सर्जन किया जाता है, तब भाषा सम्म{सणेण बहुविहेहि य तवोजोगेहि अणिच्चयादि- बनती है। वह वर्णात्मक होती है अथवा वह भेरी आदि भावणाहि य भावितप्पा।
(दअचू पृ २५६) के भांकार रूप होती है। सम्यक् दर्शन, बहुविध तपोयोग और अनित्य आदि पर्याय भावनाओं से जिसकी आत्मा भावित/वासित होती है,
वक्कं वयणं च गिरा सरस्सती भारतीय गो वाणी। वह भावितात्मा कहलाता है।
भाषा पण्णवणी देसणी य वइजोग जोगे य॥ भाषा-ध्वन्यात्मक और शब्दात्मक प्रयोग ।
(दनि १७२) भावों की अभिव्यक्ति का माध्यम ।
वाक्य, वचन, गिरा, सरस्वती, भारती, गो, वाणी,
भाषा, प्रज्ञापनी, देशनी, वाक्योग और योग-ये भाषा १. भाषा की परिभाषा
के पर्याय हैं। __पर्याय
२. द्रव्यभाषा-भावभाषा २. द्रव्यभाषा-भावभाषा
..."दव्वं तु भासदव्वाइं। भावे भासासहो'" ।। __ * भाषा : अगुरुलघु द्रव्यवर्गणा (द्र. वर्गणा)
दव्ववक्कं वक्कजोग्गा दवा। ताणि चेव वक्कभाव३. द्रव्य भाषा के प्रकार
परिणामिताणि निगिरिज्जमाणाणि तं भावं भावयंतीति ४. भाषाद्रव्य का ग्रहण-निसर्ग और काययोग
भाववक्कं । "परावबोधायिकयाभिप्पायस्स सयमवधा• भाषा के ग्रहण-निसर्ग का कालमान
रितत्थस्स वेदणादिव परं गमं अप्पसवित्तिरूवं वयणपणि• ग्रहण-निसर्ग के क्षण का भेद
धाणं भावभासा। (दनि १७१ अचू पृ १५९)
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