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भाव
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भावना का निर्वचन
सन्निवादितो भावोऽन्यभावेन सह निपात्यत इति सम्मत्त-नाण-दसण-सिद्धत्ताई तु साइओऽणतो । संनिपातिकः। अविरोधेन वा द्विकादिनैकत्र मेलकः नाणं केवलवज्जं साई संतो खओवसमो।। सन्निपातकः।
(अनुचू पृ४४) मइअन्नाणाईया भव्वाऽभव्वाण तइयचरमोऽयं । ० एक भाव का दूसरे भाव के साथ निपात-संयोग सम्वो पोग्गलधम्मो पढमो परिणामिओ होइ ।। सान्निपातिक भाव है।
भव्वत्तं पुण तइओ जीवा-ऽभव्वाइं चरमभंगो उ । ० अविरोध रूप से दो, तीन, चार अथवा पांच भावों
भावाणमयं कालो भावावस्थाणओऽणण्णो । का संयोग होना सन्निपात है ।
(विभा २०७७-२०८१)
पांच भावों के चार विकल्प हैं१५. भाव : सादिसपर्यवसित आदि चार विकल्प
१. सादि-सपर्यवसित ३. अनादि-सपर्यवसित जो नारगाइभावो तह मिच्छत्तादओ वि भव्वाणं ।
२. सादि-अपर्यवसित ४. अनादि-अपर्यवसित । ते चेवाभव्वाणं ओदइओ वितियवज्जोऽयं ।
कौन सा भाव किस विकल्प में समवतरित होता है, सम्मत्त-चरित्ताइं साई संतो य ओवसमिओऽयं । यो लिवदाणाइलद्धिपणगं चरण पि य खाइओ भावो ।।
भावों के समवतार का यंत्र संख्या) विकल्प । औदयिक
औपशमिक क्षायिक
क्षायोपशमिक | पारिणामिक सादि नारक आदि भव | औपशमिक | क्षायिक चारित्र, प्रथम चार पुद्गल में | सपर्यवसित
सम्यक्त्व, दान आदि पांच लब्धियां ज्ञान यणुक आदि औपशमिक (भवस्थ केवली की
चारित्र अपेक्षा) सादि
क्षायिक सम्यक्त्व, केवलअपर्यवसित
ज्ञान, केवलदर्शन,
सिद्धत्व अनादि कषाय, तीन वेद,
मति-श्रुत अज्ञान भव्यत्व | सपर्यवसित | अज्ञान, असंयत,
(भव्य जीवों असिद्धत्व, लेश्या
की अपेक्षा) (भव्य जीवों की
अपेक्षा) अनादि कषाय, तीन वेद,
मति-श्रुत अज्ञान जीवत्व, अपर्यवसित अज्ञान, असंयत,
(अभव्य जीवों अभव्यत्व असिद्धत्व, लेश्या
की अपेक्षा) (अभव्य जीवों
की अपेक्षा) भावना -पुनः पुनः अभ्यास । विविध संकल्पों से १. भावना का निर्वचन मन को भावित/वासित करना ।
भाव्यते-आत्मसान्नीयतेऽनयाऽऽत्मेति भावना।
(उशाव प ७१०) १. भावना का निर्वचन
भाव्यत इति भावना ध्यानाभ्यासक्रियेत्यर्थः । २. ज्ञान आदि भावनाएं
(आवहाव २ प ६२) ३. कान्दपी आदि भावनाएं
जो आत्मा को भावित करती है, आत्मसात् करती * अनित्य आदि भावनाएं (द्र० अनुप्रेक्षा) है, वह भावना है। * पच्चीस भावनाएं
(द्र० महाव्रत) ध्यान के योग्य चेतना का निर्माण करने वाली ध्यान
के अभ्यास की क्रिया का नाम है भावना ।
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