________________
भाव
४८२
क्षयोपशम चार घातिकर्मों का
१. उदयावलिका में आने योग्य कर्मदलिकों को क्षय और अनूदीर्ण दलिकों का उपशम होता है। विपाकोदय के अयोग्य बना देना।
प्रत्याख्यान और संज्वलन कषाय के देशघाति रसस्पर्धकों २. तीव्ररस का मन्दरस में परिणमन होना ।)
तथा नोकषाय का यथासंभव उदय रहता है। ज्ञानावरण का क्षयोपशम
१०. क्षायोपशमिक भाव के प्रकार निहिएसु सव्वघाईरसेसु फड्डेसु देसघाईणं । खओवसमिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा खओवसमे य जीवस्स गुणा जायंति ओहिमणचक्खुमाईया ।। खओवसमनिप्फण्णे य ।।
(अनु २८३) (नन्दीमवृ प ८०) क्षायोपशमिक भाव के दो प्रकार हैं-क्षयोपशम अध्यवसायों की विशुद्धि से ज्ञानावरणप्रकृतियों के और क्षयोपशम-निष्पन्न । सर्वघाति रसस्पर्धक देशघाति के रूप में परिणत होने पर, खओवसमनिप्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहादेशघाति रसस्पर्धकों के अतिस्निग्ध और मंद रस वाले खओवस मिया आभिणिबोहियनाणलद्धी"खओवसमिया होने पर, उदयावलिका में प्राप्त अंश का क्षय, अनुदीर्ण मइअन्नाणलद्धी "खओवसमिया चक्खुदंसणलद्धी.. का उपशम और विपाकोदय का निरोध होने पर अवधि, खओवसमिया सम्मदंसणलद्धी, खओवसमिया मनःपर्यव आदि ज्ञान उत्पन्न होते हैं-यह ज्ञानावरणीय
मिच्छादसणलद्धी, खओवसमिया सम्ममिच्छादसणलद्धी, कर्म के क्षयोपशम से निष्पन्न अवस्था है।
खओवसमिया सामाइयचरित्तलद्धी....'"खओवसमिया मोह कर्म का क्षयोपशम
दाणलद्धी खओवसमिया सोइंदियलद्धी.."खओवसमिए दसणमोहस्स खतोवसमेण अणंताणबंधिअणुदए
आयारधरे, खओवसमिए सूयगडधरे...''खओवसमिए मिच्छत्तस्स सव्वघातिफड्डगाण उदयक्खते तेषामेव
नवपुव्वी, खओवसमिए दसपुव्वी, खओवसमिए चउद्दससदुवसमे सम्मत्तमोहणीयस्स उदये इति । ""चरित्तमोह
पुव्वी, खओवसमिए गणी, खओवस मिए वायए। से तं खतोवसमे णाम बारसकसायोदयखये सवसमे य ।
खओवसमनिप्फण्णे ।
(अनु २८५) संजलणचउक्कअन्नतरदेसघातिफड्डगोदए णोकसाय
क्षयोपशम-निष्पन्न के अनेक प्रकार हैं
० ज्ञानलब्धि-मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:नवगस्स य यथासंभवोदये इति। चरित्ताचरित्तं पूण
पर्यवज्ञान, मतिअज्ञान,श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान । खओवसमिते चेव, कसायटूगोदयक्खए सदुवसमे य,
० दर्शनलब्धि -चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, पच्चक्खाणकसायसंजलणचउक्कदेसघातिफड्डगोदये णो
___सम्यग्दर्शन, मिथ्यादर्शन, सम्यक्मिथ्यादर्शन । कसायणवगस्स जहासंभवोदये य ।
• चारित्रलब्धि–सामायिकचारित्र, छेदोपस्थापनीय(आवचू १ १९७, ९८)
चारित्र, परिहारविशुद्धिचारित्र, सूक्ष्मसंपरायदर्शनमोह के क्षयोपशम में अनन्तानुबंधी कषाय का
चारित्र, चारित्राचारित्र । अनुदय रहता है। उदयप्राप्त मिथ्यात्व के सर्वघाती
० वीर्यलब्धि-दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य, रसस्पर्धकों का क्षय तथा अनुदीर्ण (बंध आवलिका में
बालवीर्य, पंडितवीर्य बालपंडितवीर्य । विद्यमान विवक्षित वर्तमान समय से आवलिका पर्यन्त जो दलिक उदय में आने योग्य नहीं हैं उन) दलिकों का
० इन्द्रियलब्धि-श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणे
न्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शनेन्द्रिय । उपशम होता है और सम्यक्त्व मोहनीय का उदय चाल रहता है ।
० श्रुतलब्धि -आचारांगधर यावत् दृष्टिवादधर, नवचारित्र मोहनीय के क्षयोपशम में उदय प्राप्त बारह
पूर्वी, दसपूर्वी, चतुर्दशपूर्वी, गणी, वाचक । कषायों का क्षय, अनुदीर्ण दलिकों का उपशम तथा क्षयोपशम चार घातिकर्मों का संज्वलन कषाय और नोकषाय के देशघाति रसस्पर्धकों खओवसमे---चउण्हं घाइकम्माणं खओवसमे णंका यथासंभव उदय रहता है। देश चारित्र के क्षयोपशम नाणावरणिज्जस्स दंसणावरणिज्जस्स मोहणिज्जस्स में अनन्तानुबंधी और अप्रत्याख्यान कषाय के उदय का अंतरायस्स खओवसमे णं ।
(अनु २८४)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org