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औदयिक भाव की परिभाषा
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भाव
रस
६. तीर्थंकर भव्यों के त्राता
८. क्षायिक भाव विकल्पातीत किं व कमलेसु राओ रविणो बोहेइ जेण सो ताई। ९. क्षायोपशमिक भाव की परिभाषा कुमुएसु व से दोसो जं न विबुज्झति से ताई। • ज्ञानावरण का क्षयोपशम जं बोहमउलणाई सूरकरामरिसओ समाणाओ। . . मोहकर्म का क्षयोपशम कमलकुमुयाण तो तं साभव्वं तस्स तेसि च ।।
* दर्शनमोह-क्षयोपशम की प्रक्रिया (द्र. करण) जह वोलगाईणं पगासधम्मा वि सो सदोसेणं । १०.क्षायोपशमिक भाव के प्रकार उइओ वि तमोरूवो एवमभव्वाण जिणसूरो ॥ . क्षयोपशम चार घातिकर्मों का सझं तिगिच्छमाणो रोगं रागी न भण्णए वेज्जो ।
* कर्मों की प्रकृतियां
(द्र. कर्म) मुणमाणो य असझं निसेहयंतो जह अदोसो ॥
११. देशघाति-सर्वघाति प्रकृतियां : एक स्थानक आदि तह भव्वकम्मरोगं नासंतो रागवं न जिणवेज्जो । न य दोसी अभव्वासझकम्मरोगं निसेहंतो ।।
० सर्वघाति रसस्पर्धक देशधाति में परिणत (विभा ११०५-११०९)
• कर्म और चतुःस्थानक आदि बन्ध दिन में कमल विकसित होते हैं, कुमुद विकसित
• उपशम और क्षयोपशम में अन्तर नहीं होते-इसमें सूर्य का कमल के प्रति राग और कुमुद
१२. पारिणामिक भाव की परिभाषा के प्रति द्वेष भाव कारण नहीं है, यह तो उनका अपना
१३. पारिणामिक भाव के प्रकार अपना स्वभाव है। सूर्य की रश्मियां तो दोनों प्रकार के
• सादि पारिणामिक पुष्पों का समान रूप से स्पर्श करती हैं।
० अनादि पारिणामिक सूर्य के उग जाने पर भी उल्ल को तो अपने स्वभाव
१४. सान्निपातिक भाव के कारण अन्धकार ही प्रतिभासित होता है। इसी प्रकार
१५. भाव : सावि-सपर्यवसित आदि चार विकल्प अभव्यों को तीर्थंकर रूप सूर्य मुक्ति का प्रकाश नहीं दे सकते।
१. भाव के प्रकार जैसे एक कुशल वैद्य साध्य रोग की चिकित्सा करता
उदइए, उवसमिए, खइए, खओवसमिए, पारिणामिए, है, असाध्य की नहीं, वैसे ही तीर्थंकर भव्य जीवों को।
सन्निवाइए।
(अनु २७१) कर्मरोग से मुक्त करते हैं, अभव्यों को नहीं। इसमें अर्हत्
भाव के छह प्रकार हैं-औदयिक, औपशमिक, का भव्य के प्रति राग और अभव्य के प्रति द्वेष कारण
क्षायिक, क्षायोपशमिक, पारिणामिक और सान्निपातिक । नहीं है, स्वभाव ही कारण है । अर्हत् वीतराग होते हैं। भाव-होना । कर्म के उदय, उपशम, क्षय और २. औदयिक भाव को परिभाषा क्षयोपशम से होने वाला जीव का स्पन्दन । ____ अट्टविहकम्मपोग्गला संतावत्थातो उदीरणावलिय
मतिक्रान्ता अप्पणी विपागेण उदियावलियाए वट्टमाणा १. भाव के प्रकार
उदिनाओत्ति उदयभावो भन्नति । (अनुच १४२) २. औदयिक भाव की परिभाषा
सत्ता अवस्था में विद्यमान कर्मपुदगल उदीरणा३. औदयिक भाव के प्रकार
वलिका का अतिक्रमण कर अपने परिपाक काल में • उदयनिष्पन्न के प्रकार
उदयावलिका में प्रविष्ट हो उदय में आते हैं-वह ० जीवोदयनिष्पन्न
औदयिक भाव है। उदय आठों कर्म प्रकृतियों का होता • अजीवोदयनिष्पन्न ४. औपशमिक भाव की परिभाषा
उदयः - शुभानां तीर्थकरनामादिप्रकृतीनाम् अशुभाना ५. औपशमिक भाव के प्रकार
च मिथ्यात्वादीनां विपाकतोऽनुभवनं तेन निवृत्तः ६. क्षायिक भाव की परिभाषा
औदयिकः।
(उशावृ प ३३) ७. क्षायिक भाव के प्रकार
तीर्थकरनाम आदि शुभ प्रकृतियों के तथा मिथ्यात्व
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