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बहुश्रुत
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शंख आदि की उपमा
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है, जो बार-बार असम्बद्ध बोलता है, जो अविनीत है, है, उसी प्रकार बहुश्रुत भिक्ष में धर्म, कीर्ति और श्रुत वह अबहुश्रुत कहलाता है ।
दोनों ओर (अपने और अपने आधार के गुणों) से सुणो३. बहुश्रुत को शंख आदि को उपमा
भित होते हैं। जहा संखम्मि पयं, निहियं द्रहओ वि विरायइ ।
___ कम्बोज अश्व-जिस प्रकार कम्बोज के घोड़ों में
कन्थक घोड़ा शील आदि गुणों से आकीर्ण और वेग से एवं बहुस्सुए भिक्खू, धम्मो कित्ती तहा सुयं ।। जहा से कंबोयाणं, आइण्णे कथए सिया।
श्रेष्ठ होता है, उसी प्रकार भिक्षुओं में बहथत श्रेष्ठ
होता है। आसे जवेण पवरे, एवं हवइ बहुस्सुए।
योद्धा जिस प्रकार आकीर्ण (जातिमान्) अश्व पर जहाइण्णसमारूढे, सूरे दढपरक्कमे । उभओनंदिघोसेणं, ............ ........... ||
चढ़ा हुआ दृढ़ पराक्रम वाला योद्धा दोनों ओर बजने वाले
वाद्यों के घोष से अजेय होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत जहा करेणुपरिकिण्णे, कुंजरे सट्ठिहायणे ।
अपने आसपास होने वाले स्वाध्याय-घोष से अजेय होता बलवंते अप्पडिहए,....."
.................... ॥ जहा से तिखसिंगे, जायखंधे विरायई।
गज-जिस प्रकार हथिनियों से परिवृत साठ वर्ष वसहे जहाहिवई,..........
का बलवान् हाथी किसी से पराजित नहीं होता, उसी जहा से तिक्खदाढे, उदग्गे दुप्पहंसए ।
प्रकार बहुश्रुत दूसरों से पराजित नहीं होता। सीहे मियाण पवरे, ... ... ..............।
(साठ वर्ष की आयु तक हाथी का बल प्रतिवर्ष जहा से वासुदेवे, संखचक्कगयाधरे ।
बढ़ता रहता है, उसके बाद में कम होना शुरू हो जाता अप्पडिहयबले जोहे, ............... .......... ||
है। यहां हाथी की पूर्ण बलवत्ता बताने के लिए साठ वर्ष जहा से चाउरते, चक्कवट्टी महिड्ढिए ।
का उल्लेख किया गया है।) चउदसरयणाहिवई, ...... जहा से सहस्सक्खे, वज्जपाणी पुरंदरे ।
वृषभ-जिस प्रकार तीक्ष्ण सींग और अत्यन्त पुष्ट सक्के देवाहिवई,......"
स्कन्ध वाला बैल यूथ का अधिपति बन सुशोभित होता । जहा से तिमिरविद्धंसे, उत्तिद्रुते दिवायरे ।
है, उसी प्रकार बहुश्रुत आचार्य बनकर सुशोभित होता जलते इव तेएण, ....... ........................|| जहा से उडुबई चंदे, नक्खत्तपरिवारिए ।
___ सिंह –जिस प्रकार तीक्ष्ण दाढों वाला पूर्ण युवा पडिपुण्णे पुण्णमासीए, ..........................॥ और दुष्पराजेय सिंह आरण्य पशुओं में श्रेष्ठ होता है, जहा से सामाइयाणं, कोट्ठागारे सुरक्खिए ।
उसी प्रकार बहुश्रुत अन्यतीथिकों में श्रेष्ठ होता है। नाणाधन्नपडिपुण्णे,..... .................||
वासुदेव -जिस प्रकार शङ्ख, चक्र और गदा को जहा सा दुमाण पवरा, जंबू नाम सुदंसणा ।
धारण करने वाला वासुदेव अबाधित बल वाला योद्धा अणाढियस्स देवम्स,........ ...........॥
होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत अबाधित बल वाला होता जहा सा नईण पवरा, सलिला सागरंगमा । सीया नीलवंतपवहा ........" ..................."||
चक्रवर्ती -जिस प्रकार महान ऋद्धिशाली, चतुरन्त जहा से नगाण पवरे, सुमहं मंदरे गिरी। चक्रवर्ती चौदह रत्नों का अधिपति होता है, उसी प्रकार नाणोसहिपज्जलिए,..... ... ...............।। बहुश्रुत चतुर्दश पूर्वधर होता है। जहा से सयंभूरमणे, उदही अक्खओदए । शकेन्द्र जिस प्रकार सहस्रचक्षु, वज्रपाणि और नाणारयणपडिपुण्णे, एवं हवइ बहुस्सुए। पुरों का विदारण करने वाला शक्र देवों का अधिपति
(उ ११११५-३०) होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत दैवी सम्पदा का अधिपति शंख-जिस प्रकार शङ्ख में रखा हुआ दूध दोनों ओर होता है। (अपने और अपने आधार के गुणों) से सुशोभित होता सूर्य-जिस प्रकार अंधकार का नाश करने वाला
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