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________________ बहुश्रुत ४६७ बाहुबली उगता हुआ सूर्य तेज से जलता हुआ प्रतीत होता है, उसी बालपंडितमरण-संयमासंयमी अवस्था में होने प्रकार बहुश्रुत तप के तेज से जलता हुआ प्रतीत होता वाली मृत्यु । (द्र. मरण) बालमरण--असंयमी अवस्था में होने वाली मृत्यु । प्रतिपूर्ण चन्द्र-जिस प्रकार नक्षत्रपरिवार से (द्र. मरण) परिवृत ग्रहपति चन्द्रमा पूर्णिमा को प्रतिपूर्ण होता है, बाहुबली-भगवान् ऋषभ के पुत्र । उसी प्रकार साधुओं के परिवार से परिवृत बहुश्रुत सकल बाहबलिकोवकरणं निवेअणं चक्कि देवया कहणं । कलाओं से परिपूर्ण होता है।। नाहम्मेणं जुज्झे दिक्खा पडिमा पइण्णा य ॥ ___ कोष्ठागार-जिस प्रकार सामाजिकों (समुदायवृत्ति (आवनि ३४९) वालों का कोष्ठागार सुरक्षित और अनेक प्रकार के धान्यों से परिपूर्ण होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत नाना पढमं दिट्ठीजुद्धं वायाजुद्धं तहेव बाहाहिं । मुट्ठीहि अ दंडेहि अ सव्वत्थवि जिप्पए भरहो । प्रकार के श्रुत से परिपूर्ण होता है। सो एव जिप्पमाणो विहरो अह नरवई विचितेइ । जम्बू वृक्ष-जिस प्रकार अनादत देव का आश्रय कि मनि एस चक्की ? जह दाणि दुब्बलो अहयं ।। सुदर्शना नाम का जम्बू वृक्ष सब वृक्षों में श्रेष्ठ होता है, संवच्छरेण धूअं अमूढलक्खो उ पेसए अरिहा । उसी प्रकार बहुश्रुत सब साधुओं में श्रेष्ठ होता है। हत्थीओ ओयरत्ति अ वृत्ते चिन्ता पए नाणं ।। शीता नदी-जिस प्रकार नीलवान पर्वत से निकल (आवभा ३२-३४) कर समुद्र में मिलने वाली शीता नदी सब नदियों में महाराज ऋषभ के भरत आदि सौ पुत्र और ब्राह्मीश्रेष्ठ है, उसी प्रकार बहुश्रुत सब साधुओं में श्रेष्ठ होता सुंदरी दो पुत्रियां थीं । भरत की माता का नाम सुमंगला और बाहुबली की माता का नाम सुनन्दा था। दोनों मन्दर पर्वत-जिस प्रकार अतिशय महान् और पुत्रियां-ब्राह्मी और सुन्दरी तथा शेष ९८ पुत्र भगवान् अनेक प्रकार की औषधियों से दीप्त मंदर पर्वत सब ऋषभ के पास प्रवजित हो गए । भरत चक्रवर्ती बना। पर्वतों में श्रेष्ठ है, उसी प्रकार बहथत सब साधुओं में उसने बाहुबली के पास दूत भेजकर स्वयं को प्रभ मानने श्रेष्ठ होता है। की बात कही । बाहुबली ने जब यह जाना कि शेष ९८ स्वयंभूरमण समुद्र जिस प्रकार अक्षय जल वाला भाई भरत के भय से प्रवजित होकर भगवान् की शरण स्वयंभूरमण समुद्र अनेक प्रकार के रत्नों से भरा हुआ में चले गए हैं, तब उसे बहुत रोष आया । उसने दूत से होता है, उसी प्रकार बहुश्रुत अक्षय ज्ञान से परिपूर्ण कहा- मेरे अन्य भाई नादान थे, कमजोर थे। मैं युद्ध होता है। करने में समर्थ हूं। तुम जाओ और भरत से कहो कि मेरे पर विजय प्राप्त किए बिना कैसा चक्रवर्तित्व ! ४. बहुश्रुतता का परिणाम युद्ध में ज्ञात हो जाएगा कि मैं राजा हूं या भरत राजा समुद्दगंभीरसमा दुरासया है ? दोनों सेनाएं देश के प्रत्यन्त भाग में मिलीं। बाहुबली अचक्किया केणइ दुप्पहंसया । ने भरत से कहा-'निरपराध प्राणियों को मारने से सुयस्स पुण्णा विउलस्स ताइणो, क्या प्रयोजन ? मैं और तुम दोनों परस्पर लड़ें। खवित्तु कम्म गइमुत्तमं गया । भरत ने यह बात स्वीकार कर ली। पांच प्रकार (उ ११॥३१) के युद्ध निश्चित हुए-दृष्टियुद्ध, वाक्युद्ध, बाहुयुद्ध, समुद्र के समान गम्भीर, दुराशय-जिनके आशय मुष्टियुद्ध और दंडयुद्ध । प्रथम चारों प्रकार के युद्धों तक पहुंचना सरल न हो, अशक्य--जिनके ज्ञान सिन्धु में भरत शामिन को को लांघना शक्य न हो, किसी प्रतिवादी के द्वारा अपरा- स्वयं को पराजित होते देख, भरत ने सोचा--ओह ! जेय और विपुलश्रत से पूर्ण बहुश्रुत मुनि कर्मों का क्षय यह क्या ! क्या चक्रवर्ती यह है या मैं हं ? मैं इतना करके उत्तम गति (मोक्ष) में गए। दुर्बल कैसे हो गया ? उसने संकल्प किया। देवता ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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