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अबहुश्रुत कौन ?
१०. पारांचित -- इसमें क्षेत्र और देश से व्यक्ति को पृथक् कर दिया जाता '
छेद, मूल, अनवस्थाप्य और पारांचित प्रायश्चित्त का प्रयोग देश, काल और पुरुष की शक्ति आदि को ध्यान में रखकर किया जाता है ।
५. प्रायश्चित्त के परिणाम
आराहेइ ।
पायच्छित्त करणेणं पावकम्मविसोहि जणयइ निरइयारे यावि भवइ । सम्मं च णं पायच्छित्तं पडिवज्जमाणे मग्गं चमग्गफलं च विसोहेइ आयारं च आयारफलं च ( उ २९।१७) प्रायश्चित्त करने से जीव पापकर्म की विशुद्धि करता है और निरतिचार हो जाता है । सम्यक् प्रकार से प्रायश्चित्त करने वाला मार्ग ( सम्यक्त्व ) और मार्गफल (ज्ञान) को निर्मल करता है तथा आचार ( चारित्र) और आचारफल (मुक्ति) की आराधना करता है । बंध आत्मा के साथ शुभ-अशुभ कर्मों का ( द्र. कर्म ) बलदेव - दो हजार सिंहों का बल एक अष्टापद में होता है और दस लाख अष्टपदों का बल एक बलदेव में होता है । दो बलदेवों का बल एक वासुदेव में होता है । बलदेव वासुदेव के बड़े भाई होते हैं । इनकी गति है - स्वर्ग या मोक्ष ।
सम्बन्ध ।
( द्र. वासुदेव)
बहुश्रुत-नाना श्रुतग्रन्थों का स्वाध्यायी ।
१. बहुश्रुत कौन ?
२. अबहुश्रुत कौन ?
३. बहुश्रुत को शंख आदि की उपमा
बहुश्रुतता की अर्हता
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( द्र. शिक्षा)
( द्र. पूर्व )
* बहुश्रुत: चतुर्दशपूर्वी
४. बहुश्रुतता के परिणाम
१. बहुश्रुत कौन ?
परिसमत्तगणिपिडगज्झयणस्सवणेण य विसेसेण य
बहुत ।
( अचू पृ २५६ ) जो गणिपिटक ( आचार आदि द्वादशांग ) का विशिष्ट
( उचू पृ १९४)
ज्ञाता है, वह बहुश्रुत है । बहुस्सुओ चोद्दसव्वी । जो चौदहपूर्वी है. वह बहुश्रुत है । बहुश्रुता विविधागमश्रवणावदातीकृतमतयः । ( उशावृ प २५३ ) विविध आगमों के श्रवण-अध्ययन से जिनकी बुद्धि निर्मल हो जाती है, वे बहुश्रुत कहलाते हैं ।
आगमसिद्ध सव्वंगपारओ गोअमुव्व गुणरासी ।" 'संखाईए उ भवे साहइ । तत्थागमसिद्ध किर संयभूरमणेऽवि मच्छगाइया । जं चिट्ठति स भगवं उवउत्तो जाणई तयंपि ॥' ( आवनि ९३५ हावृ १ पृ २७५ ) जो गणधर गौतम की तरह महान् अतिशयसम्पन्न और द्वादशांग का पारगामी है, वह आगमसिद्ध अथवा बहुश्रुत कहलाता है । वह प्राणियों के संख्यातीत भवों को जानता है । वह ज्ञानोपयोगउपयुक्त होने पर स्वयंभूरमण समुद्र के मत्स्य आदि प्राणियों की चेष्टाओं को भी जान लेता है ।
बहुश्रुत
(बृहत्कल्पभाष्य, गाथा ४०२ के अनुसार बहुश्रुत तीन प्रकार के होते हैं
१. जघन्य बहुश्रुत - निशीथ का ज्ञाता ।
२. मध्यम बहुश्रुत कल्प और व्यवहार का ज्ञाता । ३ उत्कृष्ट बहुश्रुत - नौवें और दशवें पूर्व का
ज्ञाता ।
निशीथ भाष्य की चूर्णि, पृ. ४९५ के अनुसार बहुश्रुत के तीन प्रकार ये हैं-
१. जघन्य बहुश्रुत
निशीथ का ज्ञाता ।
२. मध्यम बहुश्रुत निशीथ और चौदह पूर्वो का मध्यवर्ती ज्ञाता ।
३. उत्कृष्ट बहुश्रुत - चतुर्दशपूर्वी । धवला बहुश्रुत कहा गया है ।)
२. अबहुश्रुत कौन ?
८ | ३ | ४१ में बारह अंगों के धारक को
जे यावि होइ निव्विज्जे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे । अभिक्खणं उल्लवई, अविणीए अबहुस्सुए || ( उ ११।२) जो विद्याहीन है, विद्यावान् होते हुए भी जो अभिमानी है, जो सरस आहार में लुब्ध है, जो अजितेन्द्रिय
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