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प्रतिक्रमण के पर्याय
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प्रतिक्रमण
१. प्रतिक्रमण का अर्थ
मूलगुणों और उत्तरगुणों में स्खलना होने पर जब नेयं पडिक्कमामि त्ति भूयसावज्जओ निवत्तामि। संवेग की पुन: प्राप्ति होती है, तब मुनि भावना की तत्तो य का निवत्ती ? तदणुमईओ विरमणं जं ॥
विशुद्धि से प्रमाद की स्मृति करता हुआ आत्म-निन्दा (विभा ३५७२)
और गर्दा करता है, वह प्रतिक्रमण है। प्रतिक्रमण का अर्थ है-भूतकाल के सावद्ययोगों मिच्छा मि दुक्कडं का अर्थ से निवृत्ति । यह निवृत्ति अनुमोदनविरमण रूप होती मित्ति मिउमद्दवत्ते छत्ति अ दोसाण छायणे होइ ।
मित्ति य मेराइ ठिओ दुत्ति दुगंछामि अप्पाणं ।। पडिक्कमामि नाम अपुणक्करणताए अब्भुठेमि कत्ति कडं मे पावं डत्तियं डेवेमि तं उबसमेणं । अहारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जामि । (आव २ पृ ४८) एसो मिच्छादुक्कडपयक्खरत्थो समासेणं ।। प्रतिक्रमण का अर्थ है-दोष का पुनः सेवन न करने
(आवनि १५०५, १५०६) का संकल्प और यथायोग्य प्रायश्चित्त का स्वीकरण तथा 'मि' के दो अर्थ हैं--काया की ऋजुता तथा भावों वहन ।
की ऋजुता, 'छा' का अर्थ है-असंयम का स्थगन, 'मि' स्वस्थानाद्यत्परं स्थानं, प्रमादस्य वशाद् गतः । का अर्थ है-मैं चारित्र की मर्यादा में स्थित हूं। 'दु' का तत्रैव क्रमणं भूयः, प्रतिक्रमणमुच्यते ।। अर्थ है-मैं दुष्कृतकारी आत्मा की निन्दा करता हूँ। क्षायोपशमिकाद्वापि, भावादौदयिकं गतः । 'क' का अर्थ है-मैंने पापकर्म किया है। 'ड' का अर्थ तत्रापि हि स एवार्थः, प्रतिकूलगमात् स्मृतः ।। है-मैं उसका अतिक्रमण करता हूं, लंघन करता हूं। पति पति पवत्तणं वा सुभेसु जोगेसु मोक्खफलदेसु । (इसका तात्पर्य है-मैं संयम में स्थित हैं। मेरे निस्सल्लस्स जतिस्सा जं तेणं तं पडिक्कमणं ।। द्वारा जो अनाचीर्ण का आचरण हआ है, उसे मैं काया
(आवचू २ पृ ५२) और भावों की ऋजुता से स्वीकार कर उसका प्रायश्चित्त प्रतिक्रमण का अर्थ है
करता हूं।) १. प्रमादवश पर-स्थान (असंयम) में चले जाने पर पुनः स्वस्थान (संयम) में आना ।
२. प्रतिक्रमण के पर्याय २. औदयिक भाव से क्षायोपशमिक भाव में पडिकमणं पडियरणा परिहरणा वारणा नियत्ती य । लौटना।
निंदा गरिहा सोही पडिकमणं अट्टहा होइ ।। ३. निःशल्य हो अशुभयोग से शुभयोग में प्रवृत्त
(आवनि १२३३) होना।
प्रतिक्रमण, प्रतिचरण, परिहरण, वारणा, निवृत्ति, पडिक्कमणं पुण-पवयणमादिकादिसु आवस्सगाइ- निन्दा, गर्दा और शोधि-ये प्रतिक्रमण के आठ पर्याय क्कमे वा सहसाइक्कमणे पडिचोतितो सतं वा सरिऊण 'मिच्छा दुक्कडं' करेति, एवं तस्स सुद्धी।
आठ दृष्टान्त (दअचू पृ १४)
अद्धाणे पासाए दुद्धकाय विसभोयणतलाए । प्रवचनमाता (समिति-गुप्ति) के आचरण में अथवा आवश्यक में अतिक्रमण होने पर, सहसा अतिक्रमण होने
दो कन्नाओ पइमारिया य वत्थे य अगए य ।।
(आवनि १२४२) पर, दूसरे के द्वारा कहे जाने पर अथवा स्वयं उस अतिक्रमण की स्मृति कर 'मिच्छा मि दुक्कडं-मेरा दुष्कृत
१. प्रतिक्रमण-प्रमादवश संयम से बाहर चले जाने पर मिथ्या हो'-ऐसा उच्चारण करना प्रतिक्रमण है। इससे
पुनः संयम में लौट आना। दोषों की शुद्धि होती है।
एक राजा नगर के बाहर प्रासाद का निर्माण मूलुत्तरावराहक्खलणाए क्खलितो पच्चागतसंवेगे। कराना चाहता था। उसने शुभ तिथि-नक्षत्र में कार्य प्रारंभ विसुज्झमाणभावो पमातकरणं संभरतो अप्पणो णिदण- किया। उस क्षेत्र के संरक्षण के लिए रक्षक नियुक्त कर गरहणं करेति ।
(अनुचू पृ १८) उन्हें कहा- जो इसमें प्रवेश करे, उसे मौत के घाट
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