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________________ पोषरिहार ४३० पूर्वगत चौदह पूर्व । दृष्टिवाद का तीसरा भेद | ( द्र. पूर्व ) पूर्वानुयोग दृष्टिवाद का चौथा भेद । (द्र दृष्टिवाद) पृथ्वीकाय- पृथ्वी ही है शरीर जिनका, वे जीव । ( द्र. जीवनिकाय) पोट्टपरिहार - पुन: पुन: उसी शरीर में उत्पन्न होना - 'पउट्टपरिहारो नाम परा वर्त्य तस्मिन्नेव सरीरके उववज्जति । (आवचू १ पृ२९९) सिद्धत्थपुराओ य कुंमग्गामं संपत्थिया । तत्थ अंतरा एगो तिलभओ । तं दट्ठूण गोसालो भणति भगवं ! एस तिलथंभओ कि निप्फज्जिहिति न वत्ति ? सामी भणइ - निष्फज्जिही। एते य सत्त पुप्फजीवा ओदाइत्ता एतस्सेव तिलथंभस्स एगाए सिबलियाए पच्चायाहिति । ते असते अवक्कमित्ता सलेट्ठओ उप्पाडितो । एगंते य एडिओ । वुट्ठं पुष्फा य पच्चायाता । ( आवचू १ पृ २९७) कूर्मग्राम की ओर प्रस्थान पौधा था । गोशालक ने तिल का पौधा निष्पन्न महावीर ने सिद्धार्थपुर से किया । मार्ग में एक तिल का उसे देख पूछा - भगवन् ! यह होगा या नहीं ? महावीर ने कहा - यह पर लगे सात फूलों के जीव फली में पैदा होंगे । निष्पन्न होगा। इस पौधे मरकर इसी पौधे की एक गोशालक महावीर के वचनों पर अश्रद्धा करते हुए ने जड़ सहित पौधे को उखाड़ा और एकान्त में फेंक दिया । उसी समय आकाश में दिव्य बादल आए ।... उससे तिलस्तम्भ का रोपण हुआ। वह अंकुरित हुआ, बद्धमूल हुआ और वहीं पर प्रतिष्ठित हो गया । तिलपुष्प के वे सात जीव मरकर उसी तिलस्तंभ की एक फली में सात तिलों के रूप में उत्पन्न हो गए । अन्नदा सामी कुंमग्गामाओ सिद्धत्यपुरं संपत्थितो । पुणरवि तिलथंभस्स अदूरसामंतेण जाव वतिवयति ताहे पुच्छइ भगवं ! जहा न निष्फण्णो । Jain Education International प्रतिक्रमण भगवता कहितं - जहा निष्फण्णो । तं एवं वणप्फईण पउट्टपरिहारो । (आवचू १ पृ २९९) महावीर ने कूर्मग्राम से सिद्धार्थपुर की ओर प्रस्थान किया । ज्योंही तिल के पौधे के पास से गुजरे कि गोशालक ने पूछा- भगवन् ! तिल का पौधा निष्पन्न नहीं हुआ है । महावीर ने कहा- तिल का पौधा निष्पन्न हो गया है । 'पोट्टपरिहार' केवल बनस्पतिकाय में ही होता है । प्रच्छना - प्रतिप्रश्न करना । भेद । प्रतिक्रमण - असंयम से संयम में लौटना । १. प्रतिक्रमण का अर्थ * प्रतिक्रमण : आवश्यक का एक विभाग ( द्र. आवश्यक) मिच्छामि दुक्कडं का अर्थ २. प्रतिक्रमण के पर्याय ० • आठ दृष्टांत ३. प्रतिक्रमण के प्रकार • दैवसिक रात्रिक प्रतिक्रमण • इत्वरिक यावत्कथिक प्रतिक्रमण • पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण क्यों ? ४. प्रतिक्रमण सूत्र ० ईर्यापथिक प्रतिक्रमण स्वाध्याय का एक ( द्र. स्वाध्याय) ० शय्या अतिचार प्रतिक्रमण * गोचरचर्या - अतिचार प्रतिक्रमण (द्र गोचरचर्या) ० स्वाध्याय प्रतिलेखना अतिचार प्रतिक्रमण ५. प्रतिक्रमण के स्थान ६. अतिचार के हेतु ७. असंभव अतिचारों का प्रतिक्रमण क्यों ? ८. तीन काल का प्रतिक्रमण ९. प्रतिक्रमण की सार्थकता १०. प्रतिक्रमण के परिणाम * प्रतिक्रमण का कल्प ( द्र. शासनभेद ) * प्रतिक्रमण: प्रायश्चित्त का एक भेद ( द्र. प्रायश्चित्त) * प्रतिक्रमण और कृतिकर्म * देवसिक आदि प्रतिक्रमण और ११. प्रतिक्रमण की उपसम्पदा For Private & Personal Use Only ( द्र. वन्दना) लोगस्स परिमाण ( द्र. कायोत्सर्ग) www.jainelibrary.org
SR No.016048
Book TitleBhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimalprajna, Siddhpragna
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages804
LanguageHindi
ClassificationDictionary, Dictionary, Agam, Canon, & agam_dictionary
File Size18 MB
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