________________
निक्षेप - चतुष्टयी
१. शिक्षार्थी की बुद्धि को व्युत्पन्न करना । २. सब वस्तुओं के सामान्य, विशेष और उभयात्मक अर्थ का प्रतिपादन करना ।
भाइ घिष्पइ य सुहं निक्खेव पयाणुसारओ सत्यं । ( विभा ९५७ ) नाम आदि निक्षेपों के माध्यम से शास्त्र का प्रतिपादन और ग्रहण सहज हो जाता है ।
अत्थं जो न समिक्ख निक्खेवनयप्पमाणओ विहिणा । तसा जु जुत्तं जुत्तमत्तं व पडिहाइ ॥ ( विभा २२७३ ) जो ज्ञाता निक्षेप, नय और प्रमाण की विधि से अर्थ की समीक्षा नहीं करता, उसके लिए युक्त अयुक्त हो जाता है और अयुक्त युक्त हो जाता है ।
३. निक्षेप - चतुष्टयी
'''''वत्थुभिहाणं नामं ठवणा य जो तयागारो । कारणया से दव्वं, कज्जावन्नं तयं भावो ॥ ( विभा ६० )
वस्तु
वस्तु का अपना अभिधान ' नाम निक्षेप' है । का अपना आकार 'स्थापना निक्षेप' है । जो वस्तु के भूत और भावी पर्याय का कारण है, वह 'द्रव्य निक्षेप' है । कार्यरूप में विद्यमान वस्तु 'भाव निक्षेप' है । नाम निक्षेप
३८५
पज्जायाऽभिधेयं ठिअमण्णत्थे तयत्थनिरवेक्खं । जाइच्छिअं च नामं जावद्दव्वं च पाएण ।। ( विभा २५) जो अपने मूल विवक्षित अर्थ से निरपेक्ष तथा अन्य अर्थ में स्थित होता है, वह नाम निक्षेप है । ( शक्र, पुरन्दर आदि शब्द पर्यायवाची होने पर भी इन्द्र नाम वाले व्यक्ति के अभिधेय नहीं बन सकते । )
जिसका अर्थ अन्यत्र विद्यमान नहीं है, जो स्वेच्छा से रखा गया है, वह भी नाम निक्षेप है । जैसे - डित्थ, डवित्थ ।
नाम प्रायः तब तक रहता है, जब तक उसका वाच्य द्रव्य विद्यमान रहता है। जैसे—द्वीप, समुद्र आदि के
नाम ।
जं वत्णोऽभिहाणं पज्जयभेयाणुसारि तं नामं । पद्मभेयं जं नमए पइभेयं जाइ जं भणियं ॥ ( विभा ९४४ )
Jain Education International
निक्षेप
वस्तु के विविध पर्यायों— अवस्थाओं की वाचकशक्ति का अनुसरण करने वाला शब्द नाम कहलाता है । वह प्रत्येक पर्याय में वाचक के रूप में परिणत होता
I
स्थापना निक्षेप
पुण तयत्यन्नं तयभिप्पाएण तारिसागारं । कीरइ व निरागारं इत्तरमियरं व सा ठवणा ॥ ( विभा २६ ) जो मूल अर्थ से शून्य और उसके अभिप्राय से आरोपित होती है, उसका नाम है स्थापना । वह मूल है। उसके दो प्रकार हैं - अल्पकालिक और यावत्कथिक आकार के सदृश और विसदृश - दोनों प्रकार की होती (दीर्घकालिक ) ।
नाम और स्थापना में अन्तर
नामं आवकहियं ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा । ( अनु ११ ) णामं पायसो आवकथितं, ठवणा इत्तरिया वा होज्जा आवकहिया वा । तत्थ इत्तरिया जथा - अक्खो इंदो वा सरतकालभूसितो, एवमादि । आवकहिता जधा जे देवलोकादिसु घडसुत्थियादिणो चित्तकम्मलिहिया । अहवा इमो विसेसो - जहा ठवणाइंदो अणुग्गहत्थी हिं अभिव्वति ण एवं णामिदोत्ति । ( आवचू १ पृ ५ )
नाम प्रायः यावत्कथिक जीवनपर्यन्त होता है । स्थापना इत्वरिक (अल्पकालिक ) और यावत्क थिकदोनों प्रकार की होती है ।
इत्वरिक स्थापना — जैसे - शरद्काल में विभूषित
अक्ष या इन्द्र |
यावत्कथिक - जैसे -देवलोक में चित्रकर्मलिखित घट, स्वस्तिक आदि ।
नाम और स्थापना में एक अन्तर यह भी है कि जैसे स्थापना इन्द्र की पूजा की जाती है, वैसे नाम इन्द्र की पूजा नहीं की जाती ।
द्रव्य निक्षेप
..... दव्वं भव्वं भावस्स भूअभावं च जं जोग्गं ॥ अनुपयोगो द्रव्यम् (विभा २८ मवृ पृ २२ )
भूत और भावी पर्याय के योग्य वस्तु या व्यक्ति द्रव्यनिक्षेप है । अनुपयोग को भी द्रव्य कहा जाता है । द्रव्यनिक्षेप के भेद (द्र. आवश्यक, मंगल)
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org