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निक्षेप
निक्षेप-प्रयोग के प्रयोजन
तब मैं अपना और दूसरों का तथा सभी-त्रस और
० नाम और स्थापना में अन्तर स्थावर जीवों का नाथ हो गया।
• द्रव्य निक्षेप अप्पा कत्ता विकत्ता य, दुहाण य सुहाण य ।
० भाव निक्षेप अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्टियसुपट्टिओ।
• नाम, स्थापना और द्रव्य में अभेद दुष्प्रस्थितो हयात्मा समस्तदुःखहेतुरिति वैतरण्यादि
० नाम, स्थापना और द्रव्य में तीन भेद रूपः सुप्रस्थितश्च सकलसुखहेतुरिति कामधेन्वादिकल्पः ।
• द्रव्य-भाव : कारण-कार्य तथा च प्रव्रज्याऽवस्थायामेव सूप्रस्थितत्वेनात्मनोऽन्येषां
४. चार निक्षेप अवश्य करणीय च योगकरणसमर्थत्वान्नाथत्वम् ।
५. उत्तर शब्द का निक्षेप (उ २०।३७ शावृ प ४७७)
६. निक्षेप और नय आत्मा ही दुःख-सुख की करने वाली और उनका
__* आवश्यक के निक्षेप (द. आवश्यक) क्षय करने वाली है । सत्प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा ही ___ * निक्षेप : अनुयोग का एक द्वार (द्र. अनुयोग) मित्र है और दुष्प्रवृत्ति में लगी हुई आत्मा ही शत्रु है।
दुष्प्रवृत्त आत्मा सब दुःखों का हेतु होने से वैतरणी १. निक्षेप का निर्वचन नदी के सदृश है । सुप्रवृत्त आत्मा सब सुखों का हेतु होने निक्खिप्पइ तेण तहिं तओ व निक्खेवणं व निक्खेवो। से काम सदृश है। प्रव्रज्या की अवस्था में ही नियओ व निच्छिओ वा खेवो नासो त्ति जं भणियं ॥ सुप्रस्थित आत्मा अपना और दूसरों का संरक्षण करने में
(विभा ९१२) समर्थ होती है-यही उसकी सनाथता है।
पद को निश्चित अर्थ में स्थापित करना-अमुकतुझं सुलद्धं खु मणुस्सजम्म,
अमुक अर्थ के लिए अमुक-अमुक शब्द का निक्षेपण करना लाभा सुलद्धा य तुमे महेसी !। निक्षेप है। वह क्षेपण नियत या निश्चित होता है, अतः तुब्भे सणाहा य सबंधवा य,
उसे न्यास कहा जाता है। जं भेठिया मग्गे जिणुत्तमाणं ।। निक्खेवो अत्थभेदन्यासः । (अनुचू पृ १९)
(उ २०१५५) अर्थ की भिन्नता का विज्ञान निक्षेप है। सम्राट ने कहा-हे महर्षि ! तुम्हारा मनुष्य जन्म निक्षेप की परिभाषा सुलब्ध है-सफल है। तुम्हें जो उपलब्धियां हई हैं, वे
नामाइ भेअसहत्थबुद्धिपरिणामभावओ निययं । भी सफल हैं। तुम सनाथ हो, सबान्धव हो, क्योंकि तुम
जं वत्थुमत्थि लोए चउपज्जायं तयं सव्वं ।। जिनोत्तम (तीर्थंकर) के मार्ग में अवस्थित हो।
(विभा ७३) नामकर्म-शरीर और जीवन के पौद्गलिक जिस वस्तु के नाम आदि भेदों में शब्द, अर्थ और घटकों की प्राप्ति का हेतूभत कर्म। बुद्धि का परिणमन होता है-वाचक, वाच्य और ज्ञान
इन तीनों की परिणति होती है, वह निक्षेप है। सर्व वस्तु निक्षेप-प्रासंगिक अर्थ का बोध कराने वाला लोक में निश्चित ही नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव
शब्दन्यास । शब्द और अर्थ में संबंध इन चार पर्यायों से युक्त है। स्थापित करने की शक्ति ।
२. निक्षेप-प्रयोग के प्रयोजन
नामादिचतुष्टय एव सर्वनिक्षेपाणामन्तर्भावात्तदेवाभि१. निक्षेप का निर्वचन
धेयं, तत इहान्यत्र च यन्नामादिचतुष्टयाधिकनिक्षेपाभि० परिभाषा
धानं तच्छिष्यमतिव्युत्पादनार्थं सामान्यविशेषोभयात्म२. निक्षेप-प्रयोग के प्रयोजन
कत्वख्यापनार्थं च सर्ववस्तूनाम् । (उशाव प ४) ३. निक्षेप चतुष्टयो
____ नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव-इन चार निक्षेपों • नाम निक्षेप
में सब निक्षेपों का समावेश हो जाता है। जहां कहीं इनसे ० स्थापना निक्षेप
अधिक निक्षेपों का प्रयोग होता है, उसके दो प्रयोजन हैं--
म)
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