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नय
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प्रस्थक का दृष्टांत
जावंतो वयणपहा तावंतो वा नया विसद्दाओ ।
रत्नावली के बिखरे मनकों की भांति पृथक-पृथक ते चेव य परसमया सम्मत्तं समृदिया सव्वे ।। नय समस्त वस्तु के गमक नहीं होते । नय समुदित होकर
(विभा २२६५) संयुक्त मनकों की भांति समस्त वस्तु के गमक बन जाते जितने वचन के प्रकार हैं, उतने ही नय हैं, उतने हैं। ही पर-सिद्धान्त हैं। वे समुदित होकर सम्यक्त्व का रूप ।
प्रस्थक, वसति और प्रदेश का दृष्टान्त ले लेते हैं- यथार्थ बन जाते हैं।
नयप्पमाणे तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-पत्थगदिळंनत्थि नएहि विहूणं सुत्तं अत्थो य जिणमए किंचि । . आसज्ज उ सोयारं नए नयविसारओ बूया ॥ तेण वसहिदिठ्ठतेणं, पएसदिट्ठतेणं। (अनु ५५४)
(विभा २२७७) प्रस्थक दृष्टान्त, वसति दृष्टान्त और प्रदेश दष्टान्त जिनवाणी अथवा आगम में जो सत्र और अर्थ का इन तीन दृष्टान्तों से नयप्रमाण का प्रतिपादन होता प्रतिपादन है, वह नयसापेक्ष है। नयविशारद प्रवक्ता श्रोता की योग्यता के अनुसार उनका प्रतिपादन करे। प्रस्थक का दृष्टान्त
देसगमगत्तणाओ गमग च्चिय वत्थुणो सुयाइ व्व । पत्थगदिठतेणं-से जहानामए केइ पुरिसे परसुं सव्वे समत्तगमगा केवलमिव सम्मभावम्मि ॥
गहाय अडविहुत्तो गच्छेज्जा, तं च केइ पासित्ता (विभा २२६८)
वएज्जा-कहिं भवं गच्छसि ? श्रतज्ञान आदि की तरह नय भी वस्तु के एक अंश अविसुद्धो नेगमो भण्णति-पत्थगस्स गच्छामि । के ग्राहक होने पर भी वस्तु के गमक ज्ञापक होते हैं। तं च केइ छिदमाणं पासित्ता वएज्जा--कि भवं सम्यक होने पर सभी नय केवलज्ञान की भांति समस्त टिसि? वस्तु के ज्ञापक बनते हैं।
विसुद्धो नेगमो भणति-पत्थगं छिदामि । १०. नय : विभिन्न दृष्टान्त
तं च केइ तच्छमाणं पासित्ता वएज्जा--किं भवं गज का दृष्टांत
तच्छेसि ? जमणेगधम्मणो वत्थुणो तदंसे च सव्वपडिवत्ती। विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थगं तच्छेमि। अन्धा व गयावयवे तो मिच्छाहिट्रिणो वीस ॥ तं च केइ उक्किरमाणं पासित्ता वएज्जा-किं भवं
(विभा २२६९) उक्किरसि ? हाथी के एक-एक अवयव को सम्पूर्ण हाथी समझने विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थगं उक्किरामि । वाले चक्षहीन व्यक्तियों की भांति जो अनन्त धर्मात्मक तं च केइ लिहमाणं पासित्ता वएज्जा-किं भवं वस्तु के केवल एक धर्म को ग्रहण कर समस्त वस्त की लिहसि ? प्रतिपत्ति मानते हैं, वे मिथ्यादृष्टि कहलाते हैं।
विसुद्धतराओ नेगमो भणति-पत्थगं लिहामि । जं पुण सम्मत्तपज्जायवत्थुगमग त्ति समुदिया तेणं ।
एवं विसुद्धतरागस्स नेगमस्स नामाउडिओ पत्थओ। सम्मत्तं चक्खुमओ सव्वगयावयवगहणे व ॥
एवमेव ववहारस्स वि ।।
एवमव ववहारस्स वि (विभा २२७०)
संगहस्स चिओ मिओ मेज्जसमारूढो पत्थओ। हाथी के समस्त अवयवों के समुदाय को हाथी ,
उज्जुसुयस्स पत्थओ वि पत्थओ, मेज्ज पि पत्थओ। समझने वाले चक्षुष्मान् की तरह वस्तु की समस्त पर्यायों
तिण्हं सद्दनयाणं पत्थगाहिगारजाणओ पत्थओ, जस्स वा
वसेणं पत्थओ निप्फज्जइ। के समुदाय को वस्तु जानने वाला सम्यग्दृष्टि होता है।
(अनु ५५५)
प्रस्थक दृष्टान्त के द्वारा प्रतिपादित नय प्रमाणरत्नावलि का दृष्टान्त
कोई पुरुष कुल्हाड़ी लेकर अटवी की ओर जाता है, उसे न समत्तवत्थुगमगा वीसुं रयणावलीए मणउ व्व । देखकर कोई कहता है - आप कहां जाते हैं ? अविशुद्ध सहिया समत्तगमगा मणओ रयणावलीए व्व ॥ नैगम नय कहता है-प्रस्थक के लिए जाता हूं।
(विभा २२७१) उस (वृक्ष) को काटते हुए देखकर कोई कहता है
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