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नय
आप क्या काटते हैं ? विशुद्ध नगम नय कहता है प्रस्थक काटता हूं ।
उसे तराशते देखकर कोई कहता है- -आप क्या तराशते हैं ?
विशुद्धतर नैगम नय कहता है— प्रस्थक तराशता
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हूं ।
उसे उकेरते हुए देखकर कोई कहता - आप क्या उकेरते हैं ?
विशुद्धतर नैगम नय कहता है —प्रस्थक उकेरता
हूं ।
उसे लिखते हुए (प्रमार्जित करते हुए) देखकर कोई कहता है - आप क्या लिख रहे हैं ?
विशुद्धतर नैगम नय कहता है - प्रस्थक लिख रहा
हूं ।
इस प्रकार विशुद्धतर नैगम नय नामांकित होने पर उसे प्रस्थ मानता है ।
इसी प्रकार व्यवहार नय भी पूर्वोक्त सभी अवस्थाओं को प्रस्थक मानता है ।
धान्य से व्याप्त और पूरित होने पर मेय समारूढ होता है इसलिए संग्रह नय उसे प्रस्थक मानता है ।
ऋजुसूत्र नय प्रस्थक को भी प्रस्थक मानता है और मेय को भी प्रस्थक मानता है ।
तीन शब्द नय प्रस्थक के अर्थाधिकार को जानने वाले व्यक्ति को प्रस्थक मानते अथवा जिसके बल (प्रस्थकाधिकार को जानने वाले के उपयोग — चैतन्य व्यापार ) से प्रस्थक निष्पन्न होता है, वह प्रस्थक कहलाता है ।
वसति का दृष्टान्त
वस हिदिट्ठतेणं - से जहानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं वज्जा कहिं भवं वसति ? अविमुद्धो नेगमो भणति - लोगे वसामि । विसुद्धो नेगमो भणति - तिरियलोए वसामि । विसुद्धतराओ नेगमो भणतिजंबुद्दीवे “दाहिणड्ढभरहे "पाडलिपुत्ते देवदत्तस्स घरे गभघरे वसामि । एवं विसुद्धतरागस्स नेगमस्स वसमाणो वसइ । एवमेव ववहारस्स वि । संगहस्स संथारसमारूढो बसइ | उज्जुसुयस्स जेसु आगासपएसेसु ओगाढो तेसु वसइ । तिण्हं सद्दनयाणं आयभावे वसई । ( अनु ५५६ ) वसति 'दृष्टान्त के द्वारा प्रतिपादित नय प्रमाण
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प्रदेश का दृष्टांत
कोई पुरुष किसी पुरुष से कहता
- आप कहां रहते हैं ? अविशुद्ध नैगम नय कहता है-लोक में रहता हूं। विशुद्ध नैगम नय कहता है - तिर्यक्लोक में रहता हूं । विशुद्धतर नैगम नय कहता है - जम्बूद्वीप में, दक्षिणार्धभरत, पाटलिपुत्र, देवदत्त के घर, गर्भगृह में रहता हूँ । इस प्रकार विशुद्धतर नैगम नय जो व्यक्ति जिस स्थान में, जब निवास करता है उसे उसमें रहने वाला मानता है । इसी प्रकार व्यवहार नय भी नैगम नय की भांति निवास को मानता है । संग्रह नय बिछौने पर लेटे हुए व्यक्ति को ही निवास करने वाला मानता है ।
ऋजुसूत्रनय व्यक्ति जितने आकाश प्रदेशों में अवगाहन किए हुए रहता है, उनमें निवास करने वाला मानता है ।
तीन शब्द नयों की दृष्टि से व्यक्ति आत्मभाव ( अपने स्वरूप ) में रहता है । प्रदेश का दृष्टान्त
पएसदितेणं - नेगमो भणति छण्हं पएसो, तं जहा -- धम्मपएसो अधम्मपएसो आगासपरसो जीवपएसो बंधपएसो देस एसो । एवं वयंतं नेगमं संगहो भणति - जं भणसि छण्हं पएसो तं न भवइ ।
कम्हा ? जम्हा जो देसपएसो सो तस्सेव दव्वस्स, जहा को दिट्ठतो ? दासेण मे खरो कीओ दासो विमे खरो वि मे, तं मा भणाहि छन्हं पएसो, भणाहि पंचन्हं पएसो, तं जहा -धम्मपएसो अधम्मपएसो । एवं वयं तं संगहं ववहारो भगति -जं भणसि पंचण्हं एसो तं न भवइ ।
कम्हा ? जइ पंचन्हं गोट्ठियाणं केइ दव्वजाए सामण्णे, तं जहा - हिरण्णे वा सुवण्णे वा धणे वा धणे वा तो जुत्तं वतुं जहा पंचन्हं पएसो, तं मा भणाहि पंचण्हं पएसो, भणाहि - पंचविहो पएसो, तं जहाधम्मपएसो अधम्मपएसो । एवं वयं तं ववहारं उज्जुसुओ भणति - जं भणसि पंचविहो पएसो, तं न भवइ । कम्हा ? जइ ते पंचविहो पएसी एवं ते एक्केक्को पएसो पंचविहो - एवं ते पणवीसतिविहो पएसो भवइ, तं मा भणाहि - पंचविहो पएसो, भणाहि - भइयव्वो पएसो - सिय धम्मपएसो । एवं वयं तं उज्जुसुयं संपइ सद्दो भणति - जं भणसि भइयव्वो पएसो, तं न भवइ ।
कम्हा ? जइते भइयव्वो पएसो, एवं ते धम्मपएसो वि - सिय धम्मपएसो सिय अधम्मपएसो सिय आगास
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