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तेजस् और वायु त्रस क्यों ?
तीर्थसिद्ध - अर्हत् के द्वारा तीर्थ को स्थापना के पश्चात् मुक्त होने वाले ।
( द्र. सिद्ध) तेजस्काय- -छह जीवनिकाय का तीसरा भेद । ( द्र. जीवनिकाय) तेजोलेश्या - प्रशस्त भावधारा तथा उसकी उत्पत्ति में हेतुभूत रक्त वर्ण वाले पुद्गल । ( द्र. लेश्या )
तेजस शरीर तेजोमय परमाणुओं शरीर ।
त्रस - सुख की प्रवृत्ति और दुःख की लिए गति करने वाले प्राणी ।
१. स का निर्वाचन, परिभाषा
* त्रस : छह जीवनिकाय का एक भेव
२. स के प्रकार
तेजस्काय, वायुकाय, उदारत्रस
३. तेजस् और वायु त्रस क्यों ?
४. उदार त्रस के प्रकार
०
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय
५. द्वीन्द्रिय त्रस के प्रकार
• आयुस्थिति काय स्थिति- अंतरकाल
६. त्रीन्द्रिय स के प्रकार
७. चतुरिन्द्रिय स के प्रकार
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आयुस्थिति काय स्थिति - अंतरकाल
८. पंचेन्द्रिय श्रस के प्रकार
९. अंडज आदि त्रस
(द्र. जीवनिकाय)
आयुस्थिति काय स्थिति- अंतरकाल
त्रसाः ।
से निष्पन्न ( द्र. शरीर ) निवृत्ति के
१. स का निर्वाचन, परिभाषा
त्रस्यन्ति तापाद्युपतप्तौ छायादिकं प्रत्यभिसर्पन्तीति त्रसाः — द्वीन्द्रियादयः । ( उशावृप २४४ )
ताप आदि से संतप्त होने पर जो छाया आदि की ओर गतिशील होते हैं, वे त्रस ( द्वीन्द्रिय आदि जीव ) हैं ।
त्रस्यन्ति – चलन्ति देशाद्देशान्तरं
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संक्रामन्तीति ( उशावृ प ६९३ )
३३३
एक स्थान से दूसरे स्थान में स्वयं गमन करने वाले जीव त्रस कहलाते हैं ।
त्रस
..... जेसि केसिंचि पाणाणं अभिक्कतं पडिक्कतं संकुचियं पसारियं रुयं भंतं तसियं पलाइयं आगइगइविन्नाया ....... । (द ४1९ ) जिन किन्हीं प्राणियों में सामने जाना, पीछे हटना, संकुचित होना, फैलना, शब्द करना, इधर-उधर जाना, भयभीत होना, दौड़ना - ये क्रियाएं हैं और जो आगति एवं गति के विज्ञाता हैं, वे त्रस हैं ।
.... जे य कीडपयंगा, जा य कुंथुपिवीलिया सव्वे बेइंदिया सव्वे ते दिया सब्वे चउरदिया सव्वे पंच सव्वे तिरिक्खजोणिया सव्वे नेरइया सव्वे मणुया सव्वे देवा.......... " एसो खलु छट्टो जीवनिकाओ तसकाओ त्ति पवुच्चई । (द ४1९ )
कीट, पतंग, कुंथु, पिपीलिका, सब दो इन्द्रिय वाले जीव, सब तीन इन्द्रिय वाले जीव, सब चार इन्द्रिय वाले जीव, सब पांच इन्द्रिय वाले जीव, सब तिर्यक् योनिक, सब नैरयिक, सब मनुष्य, सब देव - यह छठा जीवनिकाय काय कहलाता है ।
२. त्रस के प्रकार
ते वाऊ य बोद्धव्वा, उराला य तसा तहा । इच्चेए तसा
तिविहा
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( उ ३६।१०७)
त्रस के तीन प्रकार हैं
तेजस्काय, वायुकाय और उदार त्रस ।
३. तेजस् और वायु त्रस क्यों ?
दुविहा खलु तसजीवा - लद्धितसा चेव गतितसा चेव । ततश्च तेजोवाय्वोर्गतित उदाराणां च लब्धितोऽपि सत्वमिति । तेजोवाय्वोश्च स्थावरनामकर्मोदयेऽप्युक्तरूपं त्रसनमस्तीति त्रसत्वम् । ( उशावृ प ६९३ ) त्रस जीव के दो प्रकार हैं-लब्धि त्रस और गति
त्रस ।
उदार (द्वीन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के ) जीव लब्धि स हैं। अग्नि और वायु गति त्रस हैं । यद्यपि इनके स्थावर नाम कर्म का उदय फिर भी गतिशीलता के
कारण ये त्रस कहलाते हैं ।
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