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महावीर की देशना
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तीर्थंकर सिद्ध
३७. महावीर को देशना
सात कमल और दो परों के नीचे दो कमल-इस प्रकार उप्पण्णंमि अणते नटुंमि य छाउमथिए नाणे ।
नौ कमल विकूवित थे । भगवान् मध्यमा पावा के महाराईए संपत्तो महसेणवणंमि उज्जाणे ।।
सेनवन उद्यान में पहुंचे । देवताओं ने वहां समवसरण की ..."बीयंपि समोसरणं पावाए मज्झिमाए उ ।।
की रचना की और सूर्योदय के समय तीर्थंकर की स्तुतिजाहे सामिस्स केवलनाणं उप्पन्नं ताहे इंदादीया देवा
पूजा की। यह दूसरा समवसरण था। पहला समवसरण सविड्ढीए हट्ठतुट्ठा णाणुप्पादमहिमं करेंति । तत्थ भगवं
केवलज्ञान की प्राप्ति के समय किया था। इस दूसरे जाणति-णत्थि एत्थ पव्वयंततो, जत्थ नत्थि पव्वयंततो
समवसरण में इन्द्रभूति आदि ग्यारह वेदविद् दीक्षित हुए,
चार तीर्थ की स्थापना हुई। तत्थ ण पवत्तिज्जति । ततो य बारसेहिं जोयणे हिं मज्झिमा नाम नगरी, तत्थ सोमिलज्जो नाम माहणो,
३८. महावीर की शिष्य संपदा सो जन्नं जयइ, तत्थ य एक्का रस अज्झावगा आगता
समणस्स णं भगवतो महावीरस्स इंदभूतिपामोभवियरासी य । ताहे सामी तत्थ मूहत्तं अच्छति जाव
क्खाओ चोद्दससमणसाहस्सीओ, अज्जाचंदणापामोक्खाओ देवा पूर्व करेंति । एस केवलकप्पो किर जं उप्पन्ने नाणे
छत्तीसं अज्जियासाहस्सीओ, संखसतगपामोक्खाणं समणोमुहत्तमेत्तं अच्छियव्वं, ताहे सामी रत्तीय तं वच्चति ।
वासगाणं एगा सयसाहस्सी अउटुिं च सहस्सा, सुलसारेतत्थ वच्चंतो असंखेज्जाहिं देवकोडीहिं परिवूडो देवुज्जो
वतिपामोक्खाणं समणोवासियाणं तिन्नि सयसाहस्सीओ एण सम्बो पंथो उज्जोवितो जथा दिवसो। जत्थ भगवतो
अट्ठारस य सहस्सा, तिन्नि सया चोद्दसपुव्वीणं, तेरस सया
ओहिन्नाणीणं, सत्त सया केवलनाणीण, सत्त सया वेउव्वीणं, पादा तत्थ देवा सत्त पउमाणि सहस्सपत्ताणि णवणीत
पंच सया विउलमतीणं, चत्तारि सया वादीणं, असया फासाणि विउव्वंति। मग्गतो तिन्नि, पुरओ तिन्नि,
अणुत्तरोववाइयाणं। (आवचू १ पृ१५९, १६०) एग पायणिक्कमे। एगे भणंति""मग्गतो सत्त, दो
इन्द्रभूति आदि १४००० श्रमण। पादेसु, एवं नव । एवं जाव मज्झिमाए णगरीए महसेण
चन्दनबाला आदि ३६००० श्रमणियां । वणं उज्जाणं संपत्तो। तत्थ देवा बितियं समौसरणं शंख, शतक आदि १५९००० श्रमणोपासक । करेंति महिमं च सूरुग्गमणे । एगं जत्थ नाणं, बितियं सुलसा, रेवती आदि ३१८००० श्रमणोपासिकाएं । इमं चेव । (आवनि ५३९,५४० चू १पृ ३२४)
चौदहपूर्वी ३०० महावीर की छमस्थ अवस्था का अंत । केवलज्ञान
अवधिज्ञानी १३०० की प्राप्ति । देव-देवेन्द्रों द्वारा ज्ञान-उत्पाद-महोत्सव । केवलज्ञानी ७०० भगवान् ने जान लिया कि यहां कोई प्रव्रजित होने वाला
वैक्रियलब्धिधर ७०० नहीं है। जहां ऐसी स्थिति हो, वहां प्रवचन नहीं करना मनःपर्यवज्ञानी ५०० चाहिये। यहां ( भिकग्राम) से बारह योजन दूर वादी ४०० मध्यमा नगरी है, जहां सोमिल ब्राह्मण यज्ञ कर रहा है। अनुत्तर विमान में उत्पन्न ८०० उस यज्ञ में ग्यारह भवसिद्धिक अध्यापक ब्राह्मण आये हुए ३९. एक साथ कितने तीर्थकर? हैं । अतः मुझे वहां जाना है-यह सोच महावीर मुहूत्ते- पंच भरहाणि पंच एरवयाणि पंच महाविदेहाणि भर वहां ठहरे, किञ्चित् देशना दी। देवों ने अर्चा की। नोमानी
तत्थ उक्कोसपदेणं सत्तरं तीर्थकरसतं, जहण्णपदेणं वीस जहां कैवल्य उत्पन्न हो, वहां मुहूर्तभर ठहरना केवली का तीर्थकरा। एते ताव एगकाले भवंति। अतीताणागता आचार है। रात्रि में ही महावीर वहां से चल पड़े। अणंता तित्थ करे ।
(आवचू २ पृ २५८) संख्यातीत देवों ने मार्ग को दिवस की भांति प्रकाश से पांच भरत. पांच ऐरवत और पांच महाविदेहभर दिया । अर्हत् ने जहां चरणन्यास किया वहां देवों इन पन्द्रह क्षेत्रों में एक साथ उत्कृष्ट एक सौ सत्तर तथा ने पूरे मार्ग में नवनीत से कोमल स्पर्श वाले सात-सात जघन्य बीस तीर्थकर हो सकते हैं। अतीत और अनागत कमलों की रचना की । पार्श्व में तीन कमल, आगे तीन के तीर्थंकर अनंत हैं। कमल और पादक्षेप पर एक-इस प्रकार सात कमल तीर्थंकर सिद्ध-तीर्थंकर होकर मुक्त होने वाले। पूरे मार्ग में विकुर्वित थे। कुछ मानते हैं कि पावं में
(द्र. सिद्ध)
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