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द्वीन्द्रिय स के प्रकार
४. उदार त्रस के प्रकार
ओराला तसा जे उ, चउहा ते पकित्तिया । बेइं दियतेइ दिय- चउरो पंचिदिया
चेव ॥
( उ ३६ । १२६)
उदार कायिक जीव चार प्रकार के हैंद्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय | तसा विगलिंदिया पंचेंदिया | विगलिदिया तिविहाबिइंदिया, तिइंदिया, चतुरिंदिया ।
( आवचू २ पृ १०० ) त्रस जीवों के दो प्रकार हैं- विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय |
विकलेन्द्रिय तीन प्रकार के हैं- द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय ।
५. द्वन्द्रिय स के प्रकार
इंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया ।
पज्जत्तमपज्जत्ता
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( उ ३६ । १२७ ) द्वीन्द्रिय जीव के दो भेद हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त ।
किमिणो सोमंगला चेव, अलसा माइवाहया | वासीमुहाय सिप्पीया संखा संखणगा तहा ॥ पल्लोयाणुल्लया चेव, तहेव य वराडगा । जलूगा जालगा चेव, चंदणा य तहेव य ॥ इइ इंदिया एए, णेगहा एवमायओ । लोगेगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ वियाहिया || ( उ ३६।१२८-१३०)
कृमि, सौमंगल, अलस, मातृवाहक, वासीमुख, सीप, शंख आदि अनेक प्रकार के द्वीन्द्रिय जीव हैं । वे लोक के एक भाग में ही प्राप्त होते हैं, समूचे लोक में नहीं ।
एएसि वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । ठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ ( उ ३६ । १३५) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान की दृष्टि से उनके हजारों भेद होते हैं ।
आयुस्थिति कार्यस्थिति अंतरकाल
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वासाई बारसेव उ, उक्कोसेण वियाहिया | इंदिआउठि, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ||
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त्रीन्द्रिय स के प्रकार
संखिज्ज कालमुक्कसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेदिकाठी, तं कायं तु अमुंचओ ॥ अनंतकालमुक्कसं, अंतोमुहुत्तं जहन्नयं । बेइंदियजीवाणं, अंतरेयं वियाहियं ॥ ( उ ३६।१३२-१३४) - जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त्त उत्कृष्टत: बारह
आयु स्थिति
वर्ष ।
कायस्थिति - जघन्यतः
संख्यात काल ।
अंतरकाल जघन्यतः अनंत काल |
६. त्रीन्द्रिय त्रस के प्रकार
अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः
अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्टतः
तेइंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया ।
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पज्जत्तमपज्जत्ता
(उं ३६।१३६)
त्रीन्द्रिय जीव के दो प्रकार हैं- पर्याप्त और अपर्याप्त ।
कुंथुपिवीलिउड्डंसा, उक्कलुद्देहिया तहा । तणहारकट्ठहारा, मालुमा पत्तहारंगा || कप्पासट्ठिमिजा य, तिदुगा उस मिजगा | सदावरी य गुम्मी य, बोद्धव्वा इंदकाइया ॥ इंदगोवगमाईया, गहा लोएगदेसे ते सव्वे, न सव्वत्थ
एवमाओ । वियाहिया ॥
( उ ३६।१३७ - १३९) कुंथु, चींटी, खटमल मकड़ी, दीमक, इन्द्रगोपक आदि अनेक प्रकार के त्रीन्द्रिय जीव हैं । वे लोक के एक भाग में ही प्राप्त होते हैं, समूचे लोक में नहीं ।
एएसि वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । ठाणादेओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ ( उ ३६ । १४४) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान की दृष्टि से उनके हजारों भेद होते हैं ।
आयु स्थिति काय स्थिति- अंतरकाल
एगूणपणहोरत्ता, उक्कोसेण वियाहिया । इंदिय आउठिई, अंतोमुहुत्तं जहन्निया || संखिज्जकालमुक्कोसं, अंतोमुहुतं जहन्नयं । तेइंदियकायठिई, तं कायं तु अचओ ॥
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